श्रेष्ठ व्यंग्यकार, साहित्यकार के रूप में जीवंत रहेंगे डॉ ओंकारनाथ चतुर्वेदी

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डॉ ओंकारनाथ चतुर्वेदी

-प्रो अनिता वर्मा

anita verma
डॉ अनिता वर्मा

आदरणीय गुरूजीस्व. डॉ ओंकारनाथ चतुर्वेदी जी की प्रथम पुण्यतिथि पर स्मरण करते हुए…..!!!
समय कितनी द्रुत गति से भागता है अभी कल की सी बात है। डॉ ओंकारनाथ सर की आत्मीयता और अपनापन मुझे भुलाए नहीं भूलता। राजकीय महाविद्यालय कोटा का हिन्दी विभाग अत्यन्त समृद्ध रहा है। प्रो रेवड़ी लाल, प्रो हरिनारायण गौतम, प्रो जगदीश खींची को भी स्मरण करती हूँ। आप सबने मिलकर हम विद्यार्थियों को गढ़ा। डॉ ओंकारनाथ चतुर्वेदीजी का व्यवहार मेरे प्रति पुत्रीवत रहा। झालवाड़ से कोटा मै उन्हीं के स्थान पर आई थी। एक बार हम विद्यार्थियों को पिकनिक पर नौका विहार करवाया गया। मुझे पानी से डर लगता है इसलिए संकोच कर रही थी गुरूजी ने प्रेम से नौका में अपने पास बिठाया कहा मैं हूँ न।इसी तरह आपने अपने विद्वतापूर्ण व्याख्यान से सबको भाव विभोर किया है। सूर्यमल्ल मिश्रण पर बूंदी में आपने राष्ट्रीय संगोष्ठी करवाई। यह उल्लेखनीय कार्य रहा। कई बार आपसे कक्षा में विद्यार्थियों के विशेष आग्रह पर ‘कान्हा बरसाने में आ जइयो….! गाकर वातावरण को संगीतमय आनंदमय बना दिया। कहाँ गए वे दिन बहुत याद आते है। संत साहित्य पर आपने बड़ा काम किया। भक्तिकाल पर जब आप बोलते तो सब मंत्रमुग्ध होकर आपको सुनते। महाविद्यालय कोटा के हिन्दी विभाग की अनेक स्मृतियाँ जीवंत हो उठी है। आपका निवास स्टेशन की मुख्य सड़क की विद्याविहार कॉलोनी में है। आपसे मिलकर आत्मीयता अपनापन सब मिला कॉलेज से लौटते समय अक्सर भोजन गुरूजी के यहाँ होता। खूब बातें होती गुरूजी ने अपने व्यंग्य संग्रह। मुझे दिए कहा तुम मेरी प्रिय शिष्या और सही उत्तराधिकारी हो सदुपयोग करना । डॉ अतुल चतुर्वेदी, डॉ झा हमेशा उनकी बातचीत का हिस्सा रहते थे। मेरे प्रथम लघुकथा संग्रह ‘दर्पण झूठ न बोले’ की शानदार भूमिका सर ने लिखी और पुस्तक विमोचन में हिस्सा रहे। सर के जाने से एक स्नेहिल आत्मीयता से भरे व्यक्तित्व की कमी मुझे खलती है। कभी बहुत दिन हो जाने पर खुद अपनी पोती मौलश्री से फोन करवाते कहते ..’कहाँ हो भई डॉ अनिता तुम्हारी अम्मा याद कर रही है.!! उनकी पुत्रवधू दीप्ति चतुर्वेदी अम्मा जी, पुत्र डॉ गौरव चतुर्वेदी, पोती टिन्ना जो मुझे हमेशा कार तक छोड़ने आती रही है।सबका मुझसे पारिवारिक जुड़ाव रहा आज भी है। बस गुरूजी नहीं है..कई बार समस्याएं आती है मन विचलित होता है तो सर याद आते हैं। उनका आशीर्वाद मेरे ऊपर हमेशा रहा। कई बार अधिकार पूर्वक उनसे नाराज भी हुई कुछ समय बाद सब सहज हो जाता था। उनसे बात करके मानो सारी समस्याओं का समाधान हो जाता था। आज उनकी कमी महसूस होती है। साहित्य सृजन में दिशा बोधक पथप्रदर्शक के रूप में सदैव स्व डॉ ओंकारनाथ सर का पाथेय मिला। आपके आशीर्वाद सान्निध्य से मैं एक अच्छी शिक्षक बन पाई । महाविद्यालय की प्राचार्य बनने पर आपने मुझे खूब आशीर्वाद दिया। मेरी तकलीफ मेँ आप सदैव साथ रहे। ऐसे महान साहित्यकार की प्रथम पुण्य तिथि पर गुरूजी को शत शत नमन पुण्य स्मरण वे सदैव हम सबकी स्मृतियों में ,साहित्य में ,एक श्रेष्ठ व्यंग्यकार वरिष्ठ साहित्यकार प्रभावी जादुई व्यक्तित्व के रूप में जीवंत रहेंगे।

शत शत नमन पुण्य स्मरण🙏

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