
-सुनील कुमार Sunil Kumar
आंध्रप्रदेश के तिरुपति जिले की एक खबर है कि एक बहुत गरीब आदिवासी महिला ने तमिलनाडु के एक साहूकार के पास अपने 12 बरस के बेटे को गिरवी रखकर कर्ज लिया, और जब वह कुछ हफ्ते बाद पैसे चुकाने लौटी तो पता चला कि उसके बेटे की हत्या करके उसे दफन कर दिया गया है। यह साहूकार बत्तख पालने का काम करता था। यह कर्ज लेने की नौबत भी इसलिए आई थी कि पति की मौत के बाद वहीं के एक दूसरे आदमी ने इस महिला पर दावा किया था कि परिवार पर उसका कर्ज है, इस कर्ज चुकाने के लिए दूसरे साहूकार ने परिवार के किसी सदस्य को मजदूरी करने के लिए बंधक रखने की शर्त रखी थी, और इसीलिए इस महिला को अपने बेटे को वहां बंधुआ मजदूर या गिरवी रखना पड़ा था।
यह आंध्रप्रदेश की गरीब आदिवासी महिला का हाल है जहां के मुख्यमंत्री दुनिया में किसी भी प्रदेश की सबसे महंगी राजधानी बनाने जा रहे हैं, यह वही आंध्रप्रदेश है जहां के तिरुपति के भगवान की कमाई दुनिया के किसी भी हिन्दू मंदिर में सबसे अधिक है, यह वही आंध्रप्रदेश है जहां पर मुख्यमंत्री चन्द्राबाबू नायडू देश की साइबर या सिलिकॉन राजधानी बनाना चाहते हैं। उस प्रदेश की आदिवासी महिला का यह हाल बताता है कि देश में दलितों और आदिवासियों का क्या आम हाल चल रहा है। हमने लिखा था कि किस तरह गुजरात में एक दलित नौजवान अपने इलाके की दुकान पर सामान खरीदने गया, और बातचीत में उसने ओबीसी दुकानदार के बेटे को बेटा कहकर संबोधित कर दिया। बस इतनी सी बात पर उसे पीट-पीटकर मार डाला गया। कल दलित की बारी आई थी, और आज इस आदिवासी महिला की खबर आई है।
देश में हिन्दू धर्म के तहत आने वाली सभी जातियों को एक करने की बातें बहुत से लोग बोलते हैं, आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत ने कई मौकों पर कहा है कि जात-पात को खत्म करने की जरूरत है, खासकर मंदिर और श्मशान जैसी जगहों पर सभी के लिए बराबरी रहनी चाहिए। लेकिन कदम-कदम पर जाति व्यवस्था की हिंसा दिखती है। जिस आदिवासी महिला की हम चर्चा कर रहे हैं, हो सकता है कि उसके आदिवासी होने की वजह से ही उसके साथ यह हिंसा न हुई हो, लेकिन यह बात तो सच है ही कि देश में दलित और आदिवासी तबके आर्थिक और सामाजिक रूप से सबसे ही कमजोर हैं, और सबसे अधिक जुल्म के शिकार भी हैं। ऐसे में अगर मंदिर और श्मशान जैसी जगहों पर बराबरी की सोच सामने रखी भी जा रही है, तो उस पर कोई अमल नहीं हो रहा है।
आंध्र के इस मामले को लेकर सरकारों को, और देश की बैंकिंग व्यवस्था को भी इस आत्मविश्लेषण की जरूरत है कि सबसे कमजोर ऐसे लोगों की मदद में ये सब असफल क्यों हो रहे हैं? जगह-जगह लोग फर्जी फाइनेंस कंपनियों में पूंजीनिवेश कर रहे हैं, और उनका पैसा डूब रहा है। केन्द्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ आरबीआई जैसी बैंक रेगुलेटरी संस्था क्यों समय रहते इस तरह की फाइनेंस कंपनियों पर रोक नहीं लगा पाती हैं, इस पर भी सोचना चाहिए। लोग न सिर्फ अपनी सीमित पूंजी ऐसी कंपनियों में लगाते हैं, बल्कि सोने के गहनों पर लोन देने वाली बहुत सी कंपनियां भी बाजार में हैं, और उनके खिलाफ भी तरह-तरह की जालसाजी की शिकायतें आती रहती हैं। कई किस्म के साहूकार बाजार में हैं, और उनका कारोबार प्रचार के बिना चलता नहीं है। देश के कुछ सबसे बड़े फिल्म कलाकार ऐसे गोल्ड लोन का इश्तहार करते हुए दिखते हैं। वे सुबह एक बड़ी कंपनी के गहनों को खरीदने का इश्तहार करते हैं, और शाम तक वे गोल्ड लोन फाइनेंस कंपनी में गहने गिरवी रखने को बढ़ावा देते हैं।
आज देश भर में सहारा इँडिया जैसी बड़ी फाइनेंस कंपनी भी सुप्रीम कोर्ट तक में कार्रवाई झेल रही है, दूसरी तरफ छोटी-मोटी अनगिनत कंपनियां हर प्रदेश की अदालतों में कटघरे में हैं। कहने के लिए तो गांव-गांव तक बैंक पहुंच गए हैं, और हर गरीब के जन-धन खाते में खुल गए हैं, खासकर आदिवासियों के लिए कई और किस्म की योजनाएं चल रही हैं, लेकिन 21वीं सदी में आकर भी अगर इस देश के सबसे विकसित राज्यों में बच्चे को गिरवी रखना पड़ रहा है, और साहूकार उसका कत्ल कर दे रहा है, तो यह सरकारों के मुंह पर तमाचा है।
हम आदिवासी मुद्दे से परे होकर भी देखें, तो यह बात साफ है कि समाज में एक अकेली रह गई महिला को लूटने वाले कई लोग इकट्ठे हो जाते हैं। हम छत्तीसगढ़ में देखते हैं कि अकेली महिला से उसकी देह लूटने, या उसके जमीन-मकान को हड़पने के लिए आसपास के लोग उसे टोनही बताकर प्रताडि़त करना शुरू कर देते हैं, ताकि उस पर कब्जा किया जा सके। कई जगह देह शोषण के लिए तैयार न होने पर वैसी महिला को मौतों के लिए जिम्मेदार टोनही कह दिया जाता है, और उसका हर तरह से बहिष्कार होता है, उसके साथ हिंसा होती है। इस एक ताजा घटना के कई पहलू हैं। लेकिन इनमें से हर किसी के बारे में सोचना तो सरकार को ही पड़ेगा। साहूकारी और हिंसा राज्य की कार्रवाई के विषय हैं, और बैंकिंग की जरूरत को पूरा करना केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र का मामला है। इस एक मामले को लेकर सबको अपने-अपने इंतजाम को परख लेना चाहिए कि कहां क्या कमी रह गई, कहां क्या चूक हुई, और ऐसी नौबत दुबारा न आए उसके लिए क्या किया जा सकता है।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)