
-देवेंद्र यादव-

राजस्थान में अभी तक जाट मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने के बारे में प्रदेश में आवाज अब धीरे-धीरे तेज होती दिखाई दे रही है। प्रदेश की दो मुख्य पार्टी भाजपा और कांग्रेस के लिए आने वाले 2028 के विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बनेगा। यह मुद्दा दोनों ही प्रमुख दलों के सामने राजनीतिक संकट खड़ा करेगा। भाजपा और कांग्रेस के भीतर बैठे गैर जाट समुदाय के चतुर राजनीतिक खिलाड़ी नेताओं ने अपनी अपनी पार्टियों के हाई कमान को अभी तक जाट समुदाय को मार्शल कौम बता कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपना हक और रौब जमाया है।
प्रदेश में जाट समुदाय के प्रभावशाली और जनता के बीच लोकप्रिय नेता रहे हैं। ये ज्यादातर नेता कांग्रेस के रहे हैं और प्रदेश में लगातार कांग्रेस को सत्ता में रखा है। कुंभाराम आर्य, नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, पूनम चंद्र बिश्नोई, परशुराम मदेरणा, श्रीमती सुमित्रा सिंह, श्रीमती कमला बेनीवाल, शीशराम ओला, रामनारायण चौधरी जैसे मजबूत नेता कांग्रेस के साथ रहे। इन नेताओं की राजनीतिक ताकत की वजह से कांग्रेस सत्ता में रही मगर कांग्रेस ने इन नेताओं को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष तो बनाया मगर मुख्यमंत्री नहीं बनाया। जिसका मलाल जाट समुदाय में आज भी है। मगर अब जाट समुदाय किसी भी प्रकार के मुगालते में नहीं रहना चाहता। जाट समुदाय को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए जाने की आवाज बुलंद कर रहा है।
भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार जाट समुदाय के नेता सतीश पूनिया को राजस्थान प्रदेश भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष बनाया था मगर पूनिया को मुख्यमंत्री नहीं बनाया। वर्तमान में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी जाट समुदाय से आते हैं। डोटासरा से पहले भी लगभग दर्जन भर जाट नेता राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं मगर कांग्रेस ने भी जाट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया। राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के चतुर राजनीतिक खिलाड़ी प्रदेश के जाट समुदाय को ही नहीं बल्कि गुर्जर और मीना समुदाय को भी मार्शल कौम बता कर मुख्यमंत्री की कुर्सी से वंचित करते आए हैं। 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी तब लगभग तय था कि सचिन पायलट राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे मगर, प्रदेश कांग्रेस के चतुर राजनीतिक खिलाड़ी ने हाई कमान के सामने दलील रखी कि गुर्जर मार्शल कौम है, और सचिन पायलट को भी पार्टी हाई कमान ने खारिज कर दिया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने। 2018 की तरह जब अशोक गहलोत पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे तब राज्य का मुख्यमंत्री जाट समुदाय के नेता का बनना तय था, और इस रेस में परसराम मदेरणा नजर आ रहे थे। मगर जाट समुदाय को मार्शल कौम बताकर जाट समुदाय के नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी से वंचित कर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह संभाग में कांग्रेस हमेशा मजबूत रहती थी और उसकी वजह जाट समुदाय के प्रभावशाली और मजबूत नेता थे, मगर कांग्रेस के भीतर जाट नेताओं की राजनीतिक उपेक्षा के कारण मारवाड़ में अब कांग्रेस कमजोर दिखाई दे रही है। मारवाड़ के नेता अशोक गहलोत राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे, पांच बार जोधपुर से सांसद रहे और तीन बार राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे मगर वह कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ मारवाड़ को भी मजबूत नहीं रख पाए।
मजेदार बात तो यह है कि जब-जब भी प्रदेश में कांग्रेस संकट में आती है तब कांग्रेस प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष जाट नेता को बनती है और जब मुख्यमंत्री बनाए जाने की बात आती है तब जाट को मार्शल कौम बता कर मुख्यमंत्री की कुर्सी से वंचित कर देती है।
सवाल यह भी है कि प्रदेश के तीन बड़े जातीय समुदाय जाट, गुर्जर और मीना यदि एकजुट हो जाएं और एक पार्टी बना लें तो प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस का क्या होगा। पूर्व में भाजपा नेता किरोड़ी मीणा ने अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा था और उन्हें विधानसभा की सीट भी मिली थी। जाट नेता हनुमान बेनीवाल ने अपनी अलग पार्टी बना रखी है जिसके वह सांसद हैं। यदि तीनों जातियों के नेता मिलकर प्रदेश में नया जातीय गठबंधन तैयार कर 2028 का विधानसभा चुनाव लड़े तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टिया प्रदेश में अपनी राजनीतिक साख भी नहीं बचाने के लाले पड़ जाएंगे। जिस जाट, गुर्जर और मीना को मार्शल कौम बता कर राजनीतिक मलाई खा रहे नेता भी इन तीनों जातियों के मतदाताओं के समर्थन के बगैर स्वयं भी चुनाव नहीं जीत पाएंगे। कुल मिलाकर प्रदेश में यदि मार्शल कौम अपना राजनीतिक गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ी तो देश की दोनों पार्टियों पर राजनीतिक रूप से मार्शला लग जाएगा। कांग्रेस और भाजपा दोनों अपनी दम पर प्रदेश में सरकार भी नहीं बना पाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)