
-सुनील कुमार Sunil Kumar
ओडिशा के जगन्नाथपुरी में सालाना रथयात्रा दुनिया का एक सबसे भीड़भरा मौका रहता है जब एक रथ को खींचने के लिए लाखों लोग इकट्ठे होते हैं, और यह समारोह कई दिनों तक चलते रहता है। जगन्नाथ की पूजा के विधि-विधान कई दिनों तक चलते हैं, इस बीच भगवान कभी मौसी के घर जाते हैं, कभी बीमार पड़ते हैं, और हर रीति-रिवाज से लाखों भक्त जुड़े रहते हैं। इस रथयात्रा के लिए लकड़ी का जो विशेष रथ बनाया जाता है, उसे लेकर अंग्रेजी भाषा में एक शब्द भी जोड़ा गया है। जो अतिविशाल गाडिय़ां या वाहन रहते हैं, उन्हें अंग्रेजी में जगरनॉट कहा जाता है। यह शब्द जगन्नाथ के रथ से लिया गया है। ऐसी रथयात्रा के दौरान इतवार की सुबह मुंहअंधेरे भगदड़ मची, और तीन भक्तों की मौत हो गई, 50 लोग घायल हो गए। इसके पहले भी भीड़ में दबने और दम घुटने से सैकड़ों लोगों को अस्पताल में भर्ती किया गया, जिनमें से कई की हालत खराब बताई गई थी। राज्य के मुख्यमंत्री मोहन माझी ने लोगों से माफी मांगी है, और लिखा है कि यह लापरवाही अक्षम्य है, सुरक्षा में कमी की तत्काल जांच होगी, और जिम्मेदारों के खिलाफ उदाहरणीय कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने आगे लिखा कि रथयात्रा के दिन प्रभु जगन्नाथ के रथ को खींचने में बेहिसाब देरी को महाप्रभु की इच्छा करार देना, एक शर्मनाक बहाना है, जो प्रशासन की जिम्मेदारी से पल्ला झाडऩे की कोशिश है।
हादसा तो हो चुका है, लेकिन उसके बाद सबसे अच्छी बात यही हो सकती है कि घायलों की मदद की जाए, और घटना से सबक लिया जाए। इसके साथ-साथ यह भी जरूरी रहता है कि जिम्मेदार लोगों को हटाया जाए, और सरकार अपनी जिम्मेदारी माने। ओडिशा के भाजपा मुख्यमंत्री की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि उन्होंने खुलकर सरकार की बदइंतजामी और लापरवाही, दोनों को माना है, कलेक्टर और एसपी को तुरंत बदला है, जांच के आदेश दिए हैं, और खुलकर माफी मांगी है। हम इतनी उम्मीद और करते हैं कि सरकार इससे एक सबक भी लेगी। इसके पहले भी कभी-कभी रथयात्रा के दौरान ऐसे हादसे हुए हैं, और अपार बेकाबू भीड़ में कुछ मौतें भी हुई हैं। हादसे का यह पहला मौका नहीं है, लेकिन इस बार जो कुछ पहलू सामने आ रहे हैं, उनकी भी जांच करने की जरूरत है, और अगली बार से ऐसा न हो, इसके लिए एक लिखित निर्देश अभी से जारी होने चाहिए।
इस बार की रथयात्रा में एक अलग ‘वीआईपी कल्चर’ देखने मिला, और ओडिशा के विपक्षी नेताओं से परे, बहुत से चश्मदीद गवाहों ने भी इसका जिक्र किया है। लोगों का कहना है कि घटना के एक दिन पहले शनिवार सुबह अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी के लिए अलग इंतजाम किया गया, ताकि वे रथ को खींच सकें, इसके लिए रथ के रास्ते को खाली कराया गया। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि शुक्रवार की शाम जान-बूझकर तीनों रथों को बीच रास्ते रोक दिया गया था, ताकि शनिवार सुबह अडानी को रथ खींचने का मौका दिया जा सके। एक अलग समाचार बताता है कि भगदड़ के वक्त भक्तों के निकलने के गेट को बंद कर दिया गया था, क्योंकि वहां से ‘वीआईपी’ लोगों को भीतर ले जाया जा रहा था, और इसमें भीड़ बढ़ती चली गई, और बाद में भगदड़ हुई। जो भी हो, भारत के धर्मस्थलों पर अरबपतियों, नेताओं, और बड़े अफसरों या जजों के लिए अलग से इंतजाम कोई अनोखी बात नहीं है, और जिस तिरुपति में लोगों को 24-24 घंटे लाईन में लगने के बाद सिर्फ पलक झपकने जितनी देर के लिए प्रतिमा के दर्शन हो पाते हैं, उसी तिरुपति में देश के सबसे संपन्न लोगों के पहुंचने पर पूरा ट्रस्ट उनके साथ पूजा की वर्दी में चलकर फोटो खिंचवाता है, और देव प्रतिमा के सामने से बाकी भक्तों को हटवाता है। यह देश के अधिकतर तीर्थस्थानों पर होता है, और देवस्थानों से परे भी।
कल का ही एक वीडियो यूट्यूब, और फेसबुक पर देखने मिल रहा है जिसमें उत्तर भारत में कहीं पर एक पुल की मरम्मत चल रही है, बैरियर पर मरम्मत का बैनर लगाकर गार्ड खड़े हैं, वहां से निकलने वाले एक शव वाहन को रोक दिया गया है, और परिवार के लोग शव को पैदल ले जा रहे हैं, और वहां पहुंचे विधायक महोदय की गाड़ी को रास्ता देने के लिए बैरियर हटाया जा रहा है, लाश पैदल जा रही है, और विधायक की बड़ी सी गाड़ी उसी मरम्मत-पुल पर जाने दी जा रही है। यह जगह-जगह देखने मिलता है। कई जगह तो नेताओं के काफिले में एम्बुलेंस फंसती है, मरीज मर जाते हैं। कई जगह चौराहों पर नेताओं के काफिले रोके जाते हैं, और बारिश में भीगते हुए बाकी लोग खड़े रहते हैं। भारतीय लोकतंत्र में यह सामंती मिजाज और इंतजाम बड़ा ही आम हैं, और हर खास व्यक्ति अपने वक्त को अधिक कीमती मानते हुए आम लोगों को गुठली की तरह इस्तेमाल करते हैं।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से भी किसी दखल की उम्मीद हम नहीं करते क्योंकि जब सुप्रीम कोर्ट के जज भी किसी तीर्थस्थान पर पहुंचते हैं, तो आम लोगों की कतार को रोककर उन्हें इस अंदाज में पहले दर्शन करवाए जाते हैं कि मानो खुद ईश्वर जज साहब के दर्शनाभिलाषी हों। कभी-कभी लगता है कि जो कोई तथाकथित वीआईपी इस हड़बड़ी में ईश्वर तक जाते हैं, उनकी हड़बड़ी देखकर उन्हें ईश्वर कतार तोडक़र अपने पास क्यों नहीं बुला लेते? अगर सुप्रीम कोर्ट में कोई जज अपने ऐसे सामंती-वीआईपी विशेषाधिकार को छोडऩे तैयार हो, तो वे ऐसी घटना से खुद होकर एक मामला दर्ज कर सकते हैं, और देशभर से धर्मस्थानों से जवाब मांग सकते हैं कि उनके यहां तथाकथित वीआईपी लोगों के लिए कौन से ऐसे इंतजाम हैं जो कि आम लोगों के हक छीनते हैं, उन्हें लेट करते हैं? देखना है कि इस देश की न्यायपालिका को इसकी जरूरत महसूस होती है या नहीं। पूरे देश में ऐसे नियम बनाए जाने चाहिए कि भीड़ की जगहों पर, लोगों की कतार की नौबत में किसी भी धार्मिक या आध्यात्मिक जगह पर, या कार्यक्रम में बारी से परे किसी को दर्शन न कराया जाए। अगर तीर्थस्थान या कार्यक्रम किसी को बहुत ही बड़ा मान रहे हों, तो फिर ईश्वर से बात करके ईश्वर को ही ले जाकर सर्किट हाऊस या होटल में इन तथाकथित वीआईपी के दर्शन करवा देने चाहिए, ताकि भगदड़ में आम लोग न मरें। हर प्रदेश में ऐसी जगहें, और ऐसे मेले या दूसरे कार्यक्रम अच्छी तरह जाने-पहचाने रहते हैं, और हर प्रदेश के हाईकोर्ट भी सरकार को नोटिस देकर ऐसे इंतजाम में भेदभाव के खिलाफ हलफनामा ले सकते हैं, लेकिन उसके लिए हाईकोर्ट जज का भी नास्तिक होना जरूरी होगा।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)