
-देवेंद्र यादव-

गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जिग्नेश मेवानी के बयान के बाद, एक बार फिर से सवाल खड़ा हो गया कि क्या राहुल गांधी की बात को पार्टी के नेता तवज्जो नहीं देते हैं। यह बात में लंबे समय से अपने ब्लॉग मैं लिख रहा हूं कि क्या राहुल गांधी कांग्रेस के भीतर आज भी अकेले हैं और उनकी बात पर कांग्रेस के नेता अमल नहीं करते हैं और ना ही उनके द्वारा कहीं बात को गंभीरता से लेते हैं। इसकी वजह क्या है, इसको शायद राहुल गांधी भी अभी तक नहीं समझ पाए हैं।
दरअसल कांग्रेस के भीतर जिलों से लेकर प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर चुनिंदा नेताओं ने अपना एक मजबूत गठबंधन बना रखा है। इन नेताओं ने जिला और प्रदेश कांग्रेस पर अपना कब्जा कर रखा है। सवाल यह है कि नेताओं के द्वारा कांग्रेस पर किए गए कब्जे पर बुलडोजर चलाए कौन। क्योंकि बुलडोजर की चाबी भी राष्ट्रीय स्तर पर उन नेताओं के हाथों में है जिनके दम पर नेता जिला और प्रदेश कांग्रेस पर कब्जा जमा कर बैठे हुए हैं। जिला और प्रदेश में कब्जा जमा कर बैठे नेता इतने साधन संपन्न है कि आर्थिक तंगी से जूझ रही कांग्रेस के पास इन नेताओं से कांग्रेस का कब्जा छुड़ाने के लिए कोई रास्ता ही नजर नहीं आता है। देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र की सत्ता पर लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस के सामने बड़ा आर्थिक संकट क्यों और कैसे आया। यह संकट भाजपा सरकार की वजह से नहीं आया है बल्कि जिन नेताओं ने जिला और प्रदेश में कांग्रेस पर कब्जा कर रखा है उन नेताओं की राजनीति रणनीति के कारण कांग्रेस पर आर्थिक संकट आया है। यह नेता लंबे समय से पीढ़ी दर पीढ़ी कांग्रेस की सत्ता और संगठन पर कब्जा जमा कर आर्थिक रूप से साधन संपन्न हुए। इन नेताओं ने स्वयं को साधन संपन्न किया और कांग्रेस को महरूम रखा। जब कांग्रेस के सामने आर्थिक संकट आया तब कांग्रेस हाई कमान ने इन नेताओं के दरवाजे खटखटाए। इन नेताओं ने पार्टी हाई कमान से सत्ता और संगठन का सौदा किया। यदि हाई कमान इन नेताओं के सामने आर्थिक मजबूरी के चलते नहीं झुकती तो राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आज कांग्रेस की सरकार होती। 2023 के विधानसभा चुनाव में इन तीनों राज्यों में कांग्रेस अपनी सरकार नहीं बन पाई। लेकिन जिन नेताओं के कारण कांग्रेस की सरकार नहीं बन पाई थी वह नेता आज भी कांग्रेस के भीतर मजबूती के साथ डटे हुए हैं। राहुल गांधी भले ही कांग्रेस के भीतर भाजपा से संबंध रखने वाले स्लीपर सेल को बाहर निकालने की बात करते हैं मगर उन्हें निकाले कौन। क्योंकि वह नेता तो निकलने के लिए भी तैयार हैं, मगर सवाल वही खड़ा होता है कि कांग्रेस के पास संगठन को चलाने के लिए धन देगा कौन। साधन संपन्न नेता तो वही है जिन्हें कांग्रेस का स्लीपर सेल समझा जा रहा है। लंबे समय से सत्ता और संगठन की मलाई इन नेताओं ने ही खाई है। राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है। यदि कांग्रेस के सामने आर्थिक संकट नहीं होता तो शायद राहुल गांधी कांग्रेस के भीतर बड़े-बड़े फैसले लेते और उन्हें नकारने की किसी नेता की हिम्मत भी नहीं होती। जब वक्त था बदलाव का तब, इन नेताओं ने श्रीमती सोनिया गांधी को ढाल बनाकर राहुल गांधी के तीरों को बेअसर कर दिया। अब यह नेता इतने मजबूत है कि राहुल गांधी के तीरों का इन पर कोई असर ही नहीं हो रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)