
-राजेन्द्र गुप्ता-

हर वर्ष आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि के अगले दिन कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। इस दिन देवों के देव महादेव के पुत्र भगवान गणेश की पूजा की जाती है। साथ ही गणपति बाप्पा के निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक के आय, सुख और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है। साथ ही सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके लिए साधक श्रद्धा भाव से कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा करते हैं। आइए, कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी की तिथि, शुभ मुहूर्त एवं योग जानते हैं-
शुभ मुहूर्त
======
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 25 जून को देर रात 01 बजकर 23 मिनट पर शुरू होगी और अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक 25 जून को ही रात 11 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि से तिथि से गणना की जाती है। अतः 25 जून को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी। साधक 25 जून को भगवान गणेश के निमित्त व्रत रख गजानन की पूजा-उपासना कर सकते हैं। आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को चंद्र दर्शन का शुभ समय 10 बजकर 27 मिनट पर है।
पंचांग
====
सूर्योदय – सुबह 05 बजकर 25 मिनट पर
सूर्यास्त – शाम 07 बजकर 23 मिनट पर
चंद्रोदय- रात 10 बजकर 27 मिनट पर
चंद्रास्त- सुबह 08 बजकर 29 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 05 मिनट से 04 बजकर 45 मिनट तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से 03 बजकर 39 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त – शाम 07 बजकर 21 मिनट से 07 बजकर 42 मिनट तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12 बजकर 04 मिनट से 12 बजकर 44 मिनट तक
शिववास योग
========
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी पर शिववास योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। इस दिन देवों के देव महादेव देर रात 11 बजकर 10 मिनट तक कैलाश पर विराजमान रहेंगे। इसके बाद भगवान शिव नंदी पर विराजमान रहेंगे। भगवान शिव के कैलाश और नंदी पर आरूढ़ रहने के दौरान शिवजी की पूजा करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस समय में भगवान शिव का अभिषेक करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175
Advertisement