चम्पक द्वादशी आज

-राजेन्द्र गुप्ता
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ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को चंपक द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष चम्पा द्वादशी 07 जून 2025 को मनाई जाएगी। इस तिथि में भगवन श्री विष्णु का पूजन होता है और भगवान की चंपा के फूलों से पूजा होती है। श्री कृष्णा को चंपा के फूल अति प्रिय हैं और इस दिन उनका श्रृंगार करने से वो प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
चम्पा द्वादशी के अन्य नाम
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हर महीने दो द्वादशी तिथि आती है। जिनमें से एक द्वादशी को भगवान श्री विष्णु जी के पूजन से जोड़ा गया है। द्वादशी तिथि को विष्णु द्वादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन शास्त्रों में भगवान विष्णु के भिन्न-भिन्न रुपों की पूजा आराधना करने का महत्व बताया गया है। इसलिए श्रद्धालुओं को इस दिन भगवान श्री विष्णु के कृष्ण रुप की पूजा करने से सुख-संपत्ति, वैभव और एश्वर्य की प्राप्ति होती है।
चम्पा द्वादशी को राघव द्वादशी और रामलक्ष्मण द्वादशी के नाम से भी संबोधित किया गया है। इस दिन विष्णु के अवतार श्रीराम और श्री लक्ष्मण की मूर्तियों का पूजन भी होता है। राम और लक्ष्मण की पूजा करने के बाद एक घी से भरा हुआ घड़ा या कलश दान करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। पाप समाप्त होते हैं, मोक्ष पद की प्राप्ति होती है।
उदया तिथि के साथ व्रत का प्रारंभ होता है। सर्वप्रथम ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा के लिए आसन पर बैठना चाहिए। धरती पर कुछ अनाज रखकर उसके ऊपर एक कलश की स्थापना करें। कलश में पूजा के लिए एक भगवान विष्णुजी की प्रतिमा को डाल दें। अबीर, गुलाल, कुमकुम, सुगंधित फूल, चंदन से भगवान की पूजा करें। भगवान को खीर का भोग लगाना चाहिए। ब्राह्मण भोजन का आयोजन करना चाहिए। ब्राह्मणों वस्त्र, दक्षिणा आदि का दान करना चाहिए। मान्यता है कि त्रयोदशी तिथि को प्रतिमा को किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर करना उत्तम होता है।
चंपक द्वादशी पूजा विधि
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चंपक द्वादशी तिथि के दिन भगवान श्री कृष्ण का स्मरण करते हुए दिन का आरंभ करना चाहिए।
दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर, पूजा का संकल्प करना चाहिए।
श्री कृष्ण का पूजन करना चाहिए। भगवान श्री विष्णु के कृष्ण रुप की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।
इस दिन श्री विष्णु के राम अवतार का भी पूजन करना चाहिए।
श्री रामदरबार को सजाना चाहिए।
चंदन, अक्षत, तुलसी दल व पुष्प को भगवान श्री विष्णु के कृष्ण नाम व श्री राम नाम को बोलते हुए भगवान को अर्पित करने चाहिए।
भगवान की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए। इसके पश्चात प्रतिमा को पोंछ कर सुन्दर वस्त्र पहनाने चाहिए।
भगवान को दीप, गंध , पुष्प अर्पित करना, धूप दिखानी चाहिए।
अगर चम्पा के फूल उपलब्ध ना हों तो पीले-सफेद फूलों का उपयोग कर सकते हैं। साथ ही चंदन को अर्पित करना चाहिए।
आरती करने के पश्चात भगवान को भोग लगाना चाहिए।
भगवान के भोग को प्रसाद रुप में को सभी में बांटना चाहिए। सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए व दान-दक्षिणा इत्यादि भेंट करनी चाहिए।
चंपक द्वादशी व्रत में एकादशी से ही व्रत का आरंभ करना श्रेयस्कर होता है। अगर संभव न हो सके तो द्वादशी को व्रत आरंभ करें। पूरे दिन उपवास रखने के बाद रात को जागरण कीर्तन करना चाहिए। और दूसरे दिन स्नान करने के पश्चात ब्राह्मणों को फल और भोजन करवा कर उन्हें अपनी क्षमता अनुसार दान देना चाहिए। जो पूरे विधि-विधान से चम्पा द्वादशी का व्रत करता है। वह बैकुंठ को पाता है। इस व्रत की महिमा से व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। और वह सभी सांसारिक सुखों को भोग कर पाता है।
चंपा के फूलों का पूजा में महत्व
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चंपा द्वादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण के पूजन में चम्पा फूलों का मुख्य रुप से उपयोग होता है. एक अन्य मान्यता है कि चंपा के पुष्प का संबंध शिव भगवान से भी रहा है। लेकिन ज्येष्ठ मास की द्वादशी के दिन श्री विष्णु पूजन में इन पुष्पों का उपयोग विशेष आराधना और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए होता है।
चंपा के फूलों के विषय में एक पौराणिक मान्यता भी बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार चंपा के फूलों पर न ही कोई भंवरा और न ही तितली, मधुमक्खी बैठते हैं. एक कहावत है कि ’’चम्पा तुझमें तीन गुण-रंग रूप और वास, अवगुण तुझमें एक ही भँवर न आयें पास’’। रूप तेज तो राधिके, अरु भँवर कृष्ण को दास, इस मर्यादा के लिये भँवर न आयें पास।।
मान्यताओं अनुसार चम्पा को राधिका और कृष्ण को भंवरा और मधुमक्खियों को गोप और गोपिकाओं के रूप में माना गया है। राधिका कृष्ण की सखी होने के कारण मधुमक्खियां चम्पा पर कभी नहीं बैठती हैं।
वास्तुशास्त्र में भी इस पुष्प को अत्यंत शुभ माना गया है। यह सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। इसे घर पर लगाने से धन संपदा का आगमन होता है।
इस फूल में परागण नहीं होता जिस कारण तितली अथवा भवरे इत्यादि इस पर नहीं आते हैं। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है। कि चंपा फूल वासना रहित माना होता है यह सभी गुणों से मुक्त होते हुए भी त्याग की भावना को दर्शाता है। इसलिए भगवान श्री विष्णु जी को इन फूलों की माला, कंगन, पैर के कड़े इत्यादि आभूषण बना कर शृंगार किया जाता है। इस दिन इन पुष्पों से भगवान को सजाने एवं उनका पूजन करने से वह शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
चंपक/ चम्पा द्वादशी महत्व
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ऐसी मान्यता है कि चम्पा द्वादशी के दिन चंपा के फूलों से विधिवत भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। चम्पा द्वादशी की कथा श्रीकृष्ण ने माहाराज युधिष्ठिर को बतलाई थी। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था कि, हे युधिष्ठिर ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को जो भक्त उपवास करके श्री कृ्ष्ण , राम नाम से मेरी आराधना करता है, उनको एक हजार गो के दान के बराबर फल प्राप्‍त होता है। चम्पा द्वादशी का व्रत कर विधि-विधान से पूजा करने पर मानव की सभी इच्छाएं इस लोक में पूरी होती है और विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175
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