
-मनु वाशिष्ठ-

संतान की प्रत्येक दंपति की चाहत होती है, और यह कर्तव्य भी है। मां बनकर ही स्त्री पूर्णता का अनुभव करती है, वहीं पुरुष के लिए संतान पितृ ऋण से मुक्ति प्रदान करने वाला माना जाता है। शास्त्रों में चार ऋण माने गए हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण एवं मनुष्य ऋण और इन्हें उतारना प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य माना गया है। कहते हैं संतान न होने का दुख बहुत ज्यादा, होकर मृत्यु होने पर और भी ज्यादा दुख, और संतान होने के बाद उसका नालायक निकल जाना तो मातापिता को जीवन भर टीसता रहता है। श्रीमद् भागवत में धुंधकारी का प्रसंग इसका एक उदाहरण है, ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। इसीलिए इस दौरान नव विवाहित इस ओर अपना ध्यान अवश्य दें, प्राचीन भारतीय संस्कृति इस तरह के उदाहरणों से भरी हुई है। अभिमन्यु की कथा से तो सब भलीभांति परिचित हैं, कि किस प्रकार उसने गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन रणनीति को सीख लिया था। भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों के क्रम में बच्चा होने से पूर्व ही, गर्भाधान को प्रथम संस्कार माना गया है। गर्भ धारण के पश्चात तीसरे महीने में पुंसवन संस्कार किया जाता है। गृहस्थ आश्रम में मनुष्य जीवन के साथ विभिन्न कर्तव्य जुड़ जाते हैं, उसमें उत्तम संतान का जन्म एवं परवरिश भी एक है। माना जाता है, कि सद्गुणों से युक्त संस्कारवान संतान माता पिता एवं पूर्वजों को यश प्रदान करने वाली होती है। रघुकुल में उत्पन्न सगर ने गंगा को लाकर अपने पूर्वजों का उद्धार किया। सभी श्रवण, राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, भरत, ध्रुव, प्रह्लाद, शिवाजी, गार्गी, मैत्रेयी, झांसी की रानी या आधुनिक युग में किरण बेदी, कल्पना चावला, सरोजिनी नायडू जैसी अनेकोंअनेक विदुषी/ महापुरुषों (योगी/संत/वैज्ञानिक/चिकित्सक/इंजीनियर/नेता/अभिनेता/ समाज सुधारक/शिक्षक/ व्यापारी) को अपने अपने चाहत अनुसार, संतान के रूप में कामना करते हैं, लेकिन एक बार अपने स्वयं का भी आकलन कर देखिए। अधिकतर परवरिश की जिम्मेदारी मां की ही मानी जाती है। लेकिन आजकल पिता भी अपनी जिम्मेदारी समझने लगे हैं, परिवार तो सहायक है ही, मातापिता मिलकर जब अच्छी तरह परवरिश करते हैं तो बच्चे बहुत अच्छा और जल्दी सीखते हैं।
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बच्चे होते हैं
प्रेम की अभिव्यक्ति
यह सच है
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अनेक बार
हादसों के अंजाम
भी होते बच्चे
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— मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान
आज की भागमभाग जिंदगी में मां बाप के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं मिलता है. बच्चों को ,उनकी मांग के अनुसार सुख सुविधा की सामग्री मुहैया करा दी जातीहै लेकिन संतान को संस्कारित करने जरूरत परिजनों को नहीं होती है , बच्चे अल्पायु में मोबाइल एप से जिंदगी की वह रंगीनियां देख लेते हैं, जिसके लिए उम्र बाकी होती है. मीडिया रिपोर्टों में ओवैसी घटनाएं आम देखने ज्ञको मिलती हैं