तमिलनाडु में 2600 साल पुराने एक शहर के राज़ खोले

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Nitin Thakur

वैगई नदी के तट पर, तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में एक छोटा सा गाँव है- कीज़हादी (कीलड़ी)। आज ये गाँव दुनिया भर के इतिहासकारों की नज़रों में है, क्योंकि यहाँ की मिट्टी ने 2600 साल पुराने एक शहर के राज़ खोले हैं। ये कोई साधारण खोज नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास की किताबों को फिर से लिखने वाली कहानी है। कीज़हादी की खुदाई 2014 में शुरू हुई थी जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस इलाके में तमिल संगम काल के अवशेषों की तलाश शुरू की। अब तक सात चरणों की खुदाई में जो मिला वो हैरान करने वाला है।

कार्बन डेटिंग से पता चला कि ये शहर 580 ईसा पूर्व यानी छठी सदी ईसा पूर्व का है। इससे साबित हुआ कि तमिल संगम साहित्य पहले के अनुमानित समय से 300 साल पुराना है। ये खोज बताती है कि तमिल भाषा और संस्कृति दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक थी।
शहर की संरचना बताती है कि यहाँ के लोग शहरी प्लानिंग में माहिर थे। खुदाई में 4 मीटर चौड़ी सड़कें, ईंटों से बने घर, और जल निकासी की व्यवस्था मिली। एक जगह पर 13 मीटर लंबी दीवार के अवशेष भी मिले, जो शायद किसी बड़ी इमारत का हिस्सा थी। ये सब दर्शाता है कि कीज़हादी एक समृद्ध और व्यवस्थित समाज था जो मेसोपोटामिया और मिस्र की समकालीन सभ्यताओं से कम नहीं था।

खुदाई में पंद्रह हज़ार से ज़्यादा वस्तुएँ मिली हैं जिनमें ब्राह्मी लिपि वाले मिट्टी के बर्तन सबसे खास हैं। इन बर्तनों पर आनन, कुविअ, और सनन जैसे शब्द लिखे हैं, जो प्राचीन तमिल नाम हो सकते हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि ये लिपि व्यापार के हिसाब-किताब या मालिकाना हक दर्शाती थी। इसके अलावा टेराकोटा से बने खिलौने, मछली और कछुए की छोटी मूर्तियाँ और शतरंज जैसे खेल के प्यादे मिले।

कीज़हादी (कीलड़ी) का व्यापारिक नेटवर्क भी कमाल का था। यहाँ मिले काले और लाल मिट्टी के बर्तन (ब्लैक एंड रेड वेयर) और रंग-बिरंगे मनके गुजरात, महाराष्ट्र और यहाँ तक कि दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों से मिलते-जुलते हैं। कुछ मनकों का डिज़ाइन रोम और दक्षिण पूर्व एशिया के व्यापारिक केंद्रों से मेल खाता है। इससे पता चलता है कि कीज़हादी न सिर्फ़ स्थानीय बल्कि वैश्विक व्यापार का हिस्सा था। वैगई नदी, जो शहर के पास बहती थी शायद व्यापार का मुख्य रास्ता थी।

एक रहस्य जो सभी को हैरान करता है वो है धार्मिक स्थलों का ना मिलना। इतने बड़े शहर में कोई मंदिर, वेदी या पूजा से जुड़ा अवशेष नहीं मिला। क्या इसका मतलब ये था कि कीज़हादी (कीलड़ी) के लोग धर्म से ज़्यादा व्यापार, कला, और सामाजिक जीवन पर ध्यान देते थे? या फिर वो अवशेष अभी मिट्टी में दफ़न हैं? कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ये सभ्यता धर्म के बजाय सामुदायिक और आर्थिक गतिविधियों पर केंद्रित थी जो इसे और अनोखा बनाता है।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

 

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