मानवीय चेतना के उच्चतम शिखर – स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के विचार मूलत मानवीय चेतना के जागरण के विचार हैं । यहां पर युवा ऊर्जा के साथ मानव मन की उस अथाह ऊर्जा को संयोजित करने का प्रस्ताव है जिसमें भविष्य का भारत , युवा भारत अपने को नियोजित करता है।

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सफल और स्वस्थ मस्तिष्क के विकास में कोई और नहीं युवा मन का निवास होता है। युवा ऊर्जा की भूमिका समाज में हर स्तर पर होती है । आप एक सिरे से सोच कर देखें कि हमारे आसपास कौन हैं जो आगे हैं या कौन विकास कर रहा है ? तो एक बात खुलकर सामने आती है कि विकास करने के लिए… सफल होने के लिए युवा मन के साथ कार्य करने की जरूरत होती है । इस स्तर पर कोई बहाना नहीं चलता।

– विवेक कुमार मिश्र

vivek kumar mishra
विवेक कुमार मिश्र

स्वामी विवेकानंद युवा संन्यासी और आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र थे । भारतीय मेधा और चिंतन को समझने के लिए भारतीयता में आस्था रखने के लिए हमें स्वामी जी के विचारों को जानने की जरूरत है । मानवीय चेतना के उच्चतम शिखर को समझने के लिए स्वामी विवेकानंद के विचारों में डूबना होगा । यह जानना जरूरी है कि हम चेतना के किस स्तर पर हैं और अपनी चेतना को जागृत करने के लिए हमें क्या करना होगा ? चेतना के पथ पर चलना आवश्यक ही नहीं है अपितु अनिवार्य है । हम केवल पदार्थ के संयोजन से बने पुतले भर नहीं हैं वल्कि हमारे भीतर पदार्थ और चेतना का ऐसा संयोजन है जिसके सहारे हम अपनी चेतना का पूर्ण विकास कर सकते हैं । चेतना पथ पर चलते हुए ही अपनी मानवीय सोच व विज्ञानमय दशा को अपनी वैज्ञानिक चेतना को और अपनी पूरी सामर्थ्य को समझते हैं जिससे हमारा पूर्ण विकास होता है । जब हम मन व मस्तिष्क और चेतना की ओर आकर्षित होते हैं तो स्वाभाविक रूप से हम मानवीय मन को बहुत नजदीक से देखने की कोशिश करते हैं । चेतना के स्तर पर ही हर मनुष्य के भीतर स्वतंत्र सोच व समान बंधुत्व की भावना को देखते हुए उसके पूर्ण विकास को रेखांकित करने की कोशिश करते है । चेतना के धरातल पर बैठा मनुष्य वैज्ञानिक वोध के साथ अपनी चेतना को उच्चतम शिखर पर ले जाने में समर्थ होता है ।
स्वामी विवेकानंद के विचार मूलत मानवीय चेतना के जागरण के विचार हैं । यहां पर युवा ऊर्जा के साथ मानव मन की उस अथाह ऊर्जा को संयोजित करने का प्रस्ताव है जिसमें भविष्य का भारत , युवा भारत अपने को नियोजित करता है। स्वामी विवेकानंद चेतना के जागरण की बात करते हैं । जो भी चेतना को अवरुद्ध करने वाली बातें हैं या संदर्भ हैं उससे मुक्त होने की जरूरत है । चेतना का विकास हमारी सोच व आध्यात्मिक जागरण पर निर्भर करती है । हमें मनुष्य मात्र की ऊर्जा को चेतना के स्तर को स्वीकार करने की जरूरत है । ऊर्जा का अखंड स्वरूप कहीं बाहर नहीं हमारे भीतर ही है । इसे पाने के लिए हमें अपने भीतर जाने की जरूरत है । अपने मूल स्वरूप को समझने की जरूरत है । मनुष्य मात्र में ब्रह्म की अखंड ज्योति है । वह सांसारिक मायाजाल में कहीं खो गई है और इसी खोई हुई चेतना को उसे वापस दिलाना मूलतः आध्यात्मिक जागरण की ओर जाना है । ऊर्जा के स्वरूप को और अपनी शक्ति को पहचानने की जरूरत है । ऊर्जा का स्रोत कहीं बाहर नहीं है । वह हमारे भीतर हमारी चेतना के स्वरूप और स्तर पर है । यदि हम अपनी चेतना को समझ रहे हैं और चेतना का सही ढंग से प्रकटीकरण कर पा रहे हैं तो हमें कहीं भी परेशान होने की या भड़कने की जरूरत नहीं है। चेतना के स्तर पर अपनी शक्ति को पहचानें। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें अपने आसपास के साधनों को एकत्रित कर सही दिशा में एकजुट होकर कार्य करें । अध्ययन , मनन , चिंतन और विचार सही दिशा में करने की जरूरत है । अपना निर्माण स्वयं करें । कोई और नहीं आएगा । अपना निर्माण करने के लिए स्वयं जागना होगा। स्वयं सचेत होना होगा तभी सही मायने में आप अपना निर्माण कर पाएंगे । मानव मन व युवा चेतना को सही दिशा में संयोजित करने के कारण ही विवेकानंद का यह मानना था कि युवा ही सही मायने में राष्ट्र के निर्माता होते हैं । किसी भी राष्ट्र के निर्माण में मानव मन की व युवा चेतना की व्यापक भूमिका होती है । राष्ट्र की संकल्पना में युवा ऊर्जा व युवा दिशा की सबसे बड़ी भूमिका होती है । यह मानव मन सही दिशा में वैज्ञानिक चेतना के साथ जब काम करता है तो सही मायने में हम स्वयं का और राष्ट्र का विकास करते हैं । युवा चेतना का निर्माण और युवा मन ही सही मायने में ऊर्जा के स्रोत के रूप में हमारे सामने होते हैं । युवा ऊर्जा के संकल्प ही पूरे होते हैं । युवा मन का सवाल केवल उम्र से ही नहीं है । यह गिनती नहीं है । बल्कि अपने भीतर ऊर्जा को महसूस करने के साथ-साथ गतिमान बने रहने की संकल्प चेतना का सूत्र है । आप उम्र से युवा है पर जब भी कार्य करने की बारी आती है तो टालमटोल करने लगते हैं या यह कोशिश करते हैं कि उनके बदले कोई और कर ले तो तय मानिए कि उनके भीतर ऊर्जा और युवा मन की कमी है । अपना बचाव करते हुए किसी और का नहीं अपना ही नुकसान करते हैं । जब आप कार्य करते हैं तो आपके भीतर खुशी का भंडार खुलता है । मन मस्तिष्क में ऊर्जा और चेतना का विकास एक साथ होता है । सफल और स्वस्थ मस्तिष्क के विकास में कोई और नहीं युवा मन का निवास होता है । युवा ऊर्जा की भूमिका समाज में हर स्तर पर होती है । आप एक सिरे से सोच कर देखें कि हमारे आसपास कौन हैं जो आगे हैं या कौन विकास कर रहा है ? तो एक बात खुलकर सामने आती है कि विकास करने के लिए… सफल होने के लिए युवा मन के साथ कार्य करने की जरूरत होती है । इस स्तर पर कोई बहाना नहीं चलता । अक्सर यह देखने में आता है कि आदमी खुद कि सफलता असफलता न देखकर दूसरों की सफलता को देखने की कोशिश करता है । हम बराबर से दूसरों को ही देखते हैं कि … दूसरे सफल हो गए या कौन कहां से कहां पहुंच गया और हम कहां रह गए ? ज्यादातर लोग इस बात की ही गणित लगाते रह जाते हैं कि कौन कहां है ? क्या कर रहा है ? कौन कैसे हैं ? किसके यहां क्या पक रहा है ? कोई खुद के भीतर झांक कर नहीं देखता कि वह क्या कर रहा है ? कर भी रहा है या नहीं । युवा मन और युवा ऊर्जा को संयोजित करने के लिए कुछ विचार सूत्र बनाए जा सकते हैं …जिस पर चलते हुए सफलता के साथ सार्थकता की अनुभूति कर सकते हैं –
1. सफल होने के लिए अपनी समस्त ऊर्जा व चेतना शक्ति को लगा दें ।
2. आपके भीतर जो विशेषता है वह आपकी निजी है उसे अपनी शक्ति मानते हुए कार्य करिए ।
3. लक्ष्य को कभी मत भूलें । अपनी प्रतिभा क्षमता और चेतना को पूर्ण रूप से लक्ष्य प्राप्ति के लिए लगा दें ।
4. अपनी चेतना का अधिकतम उपयोग करें ।
5. अपने कर्मपथ और चेतना पथ को एक साथ संयोजित करते हुए सफलता के लिए कदम आगे बढ़ा दें ।
6. किसी भी स्तर पर रुके नहीं । अपने भीतर नकारात्मक विचार न आने दे । अपने मन को मस्तिष्क को इतना मजबूत करें कि कोई भी आपके आगे टिक ना सकें ।
7. अपने ढंग से अपना कार्य करें किसी की भी नकल करने की जरूरत नहीं है ।
8. अपनी मौलिक व सर्जनात्मक क्षमता के साथ कदम बढ़ाते हुए चलें ।
9. मुश्किल से मुश्किल रास्ते भी कोई और नहीं मनुष्य ही पार करता है । इसलिए कोई भी मुश्किल घड़ी आपके लिए मुश्किल नहीं है ।
10. एक अडिग भाव रखें कि हां हमें इस पथ पर चलना है । समय के साथ अपनी स्थिति को जांचते परखते हुए चलें कि क्या करना है ? क्या नहीं करना है ?
इस तरह एक बात साफ है कि यदि आपने ठान लिया है कि मुझे यह करना है तो कोई ताकत नहीं है जो आपको रोक सकें । युवा ऊर्जा व युवा चेतना को अपने भीतर संयोजित करते हुए आप कदम बढ़ाएं – और इस तरह चलें कि हर मंजिल, हर लक्ष्य आपके लिए बना है । कोई भी कार्य क्षेत्र आपकी पहुंच से बाहर नहीं है । यह सब तभी संभव होता है जब आप अपने आसपास की शक्तियों को एक साथ संयोजित करते हुए आगे बढ़ते हैं तो सफलता अवश्य मिलती है । उस सफलता में सार्थकता की अनुभूति होगी क्योंकि इसे अपने स्वयं के प्रयासों से खोजा है ।
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लेखक हिंदी के प्रोफेसर हैं

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