
कहो तो कह दूं।
-बृजेश विजयवर्गीय-
आजकल कोचिंग के नाम से प्रसिद्ध कोटा शहर में बढ़ती आत्महत्याओं के लिए मुख्यमंत्री से लेकर प्रशासन तक चिंतित है लेकिन अभी भी की जा रही कवायद सिर्फ दिखावटीपन ही कही जाएगी। आत्महत्या कोचिंग छात्र की हो किसी जवान की या फिर किस अन्य की उनके कर्म पर गौर किया जाए तो सामाजिक व्यवस्था कम राजनीतिक व्यवस्था ज्यादा जिम्मेदार है। युवा वर्ग को आधुनिक शिक्षा में अपना भविष्य अंधकार में दिखाई दे रहा है। कुछ चंद सफलताओं के उदाहरण से बड़ी आबादी को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। इसके लिए सरकार और प्रशासन को अपनी कृत्य में आमूल चूल परिवर्तन करना पड़ेगा। कोटा कार्निवल मनोवैज्ञानिकों के विश्लेषण और प्रशासन द्वारा कोचिंग संस्थानों और हॉस्टलों पर फौरी समीक्षा बैठकें आयोजित करना समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
यदि सरकार में बैठे जिम्मेदार लोग वास्तव में समस्या का समाधान करना चाहते हैं तो जातिगत आरक्षण व्यवस्था को सिरे से खत्म कर चयन प्रक्रिया में इस व्यवस्था को तुरंत बंद करना होगा तभी प्रतिभावान युवकों को अपनी प्रतिभा के अनुसार जॉब मिल सकता है। कर्ज लेकर पढ़ाई करवाना युवा वर्ग में असंतोष का प्रमुख कारण है। इस पर कभी किसी माननीय ने गौर नहीं किया। क्या कारण है कि मुख्यमंत्री महोदय को यह कहना पड़ रहा है कि आईआईटियन तो सिर्फ राजनीतिक पार्टियों के सर्वे करते हैं या मैं खुद डॉक्टर बनना चाहता था लेकिन केंद्रीय मंत्री और तीन बार मुख्यमंत्री बन गया। मुख्यमंत्री महोदय का यह कथन उत्साहवर्धन के लिए तो ठीक हो सकता है लेकिन समस्या का समाधान यह उदाहरण नहीं हो सकते। इसके लिए पिछले कई दिनों से लगातार हो रहे विचार विमर्श में यह बात निकलकर सामने आ रही है कि युवा वर्ग को रोजगार की गारंटी देना सरकार का प्राथमिक कर्तव्य होना चाहिए। यह व्यवस्था अभी नहीं है। स्टार्टअप और बैंकों के लोन युवाओं को बहुत अधिक आकर्षित नहीं कर रहे। खेती देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है लेकिन किसी क्षेत्र में रोजगार के अवसर क्यों घट रहे हैं यह चीज सरकार को स्पष्ट करनी होगी। आजादी के समय बताया गया था कि अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि क्षेत्र है जो 80 प्रतिशत से घटकर 60 प्रतिशत पर टिक गया है। कृषि क्षेत्र में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है ऐसे में कौन युवा कृषि कार्य से जुड़ेगा। इस यक्ष प्रश्न का जवाब सरकार में बैठे जिम्मेदारों को देना ही। होगा। केवल अभिभावकों की महत्वाकांक्षा और कोचिंग संस्थानों की लापरवाही उनके अध्ययन की प्रणाली टेस्ट सीरीज एवं हॉस्टल प्रबंधक वर्ग की छात्रों से निरंतर तनातनी एक कारण हो सकता ह। कोचिंग छात्रों के प्रति बढ़ते अपराध को रोकने की जिम्मेदारी प्रशासन में बैठे अधिकारियों की क्यों नहीं है इस पर मुख्यमंत्री महोदय को प्रसंज्ञान लेना ही पड़ेगा। मुख्यमंत्री महोदय की चिंता स्वाभाविक है। लेकिन जब तक यह चिंता धरातल पर नहीं उतरेगी और जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी खुद को सक्रिय नहीं करेंगे एवं आत्महत्या और अन्य प्रकार के अपराधों को एक दिन के मनोरंजक कार्यक्रमों की कालीन के नीचे दबाने से यह गंदगी दूर नहीं होगी बल्कि और तेजी से सड़ांध मारेगी।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)
केन्द्र सरकार,राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन कोचिंग छात्रों की बढ़ती आत्म हत्याओं को मीडिया के माध्यम से चिंता प्रकट कर लेता है और कुछ निर्देश जारी हो जाते हैं लेकिन स्कूल कालेजों में शिक्षा की गुणवत्ता में अमूलचूक सुधार की ओर कोई सोचता भी नहीं है.कोचिंग संस्थान इसका पूरा लाभ उठाकर अपनी जेबें भर रहे हैं.