
-देवेन्द्र यादव-

हरियाणा चुनाव में कांग्रेस अभी तक भारतीय जनता पार्टी के जाल में नहीं फंस रही थी बल्कि कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी को अपने जाल में फंसा रही थी। मगर क्या मतदान के ठीक पहले 3 अक्टूबर को महेंद्रगढ़ में डॉक्टर अशोक तंवर को वापस पार्टी में शामिल कर कांग्रेस भाजपा के जाल में फंस गई। अशोक तंवर पहले कांग्रेस में थे लेकिन बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे।
राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी के अभियान की कमान सीधे अपने हाथ में ले रखी है। जब से राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा की कमान अपने हाथ में ली है, कांग्रेस की जीत की गारंटी पक्की मानी जा रही है। जब कांग्रेस हरियाणा में बड़े आराम से जीत ही रही है तो फिर अशोक तंवर को कांग्रेस में लाने की क्या जरूरत आन पड़ी। हरियाणा में कांग्रेस के पास पहले से ही दो मजबूत और जन आधार वाले दलित नेता हैं। ये प्रदेश अध्यक्ष उदयभान सिंह और कुमारी शैलजा हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि हरियाणा में कांग्रेस को तीसरे दलित नेता की जरूरत क्यों पड़ी। क्या इससे जाट और दलित नेता खुश होंगे। ऐसा लगता नहीं है कि अशोक तंवर के आने के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा और उदयभान खुश होंगे, क्योंकि अशोक तंवर का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने की प्रमुख वजह भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही थे। दोनों के बीच में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर झगड़ा था। अब सवाल वही पर आकर खड़ा हो गया। यदि हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कौन होगा। अशोक तंवर के कांग्रेस में शामिल होते ही मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए एक और नाम जुड़ गया। क्या अशोक तंवर की कांग्रेस में वापसी हरियाणा के पर्यवेक्षक अजय माकन ने करवाई है। यह वही अजय माकन हैं जो हरियाणा से राज्यसभा का चुनाव हार गए थे।
सवाल यह है कि चुनाव के ठीक पहले अशोक तंवर को कांग्रेस में शामिल कर राहुल गांधी ने सेल्फ गोल कर लिया। अशोक तंवर के कांग्रेस में आने से भारतीय जनता पार्टी को ज्यादा नुकसान नहीं होगा बल्कि अब नुकसान कांग्रेस को होगा क्योंकि राहुल गांधी ने ही कहा था कि जो नेता बुरे वक्त में कांग्रेस को छोड़कर गए थे अब उन्हें कांग्रेस में जगह नहीं मिलेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)