कोटा के अधिवक्ताओं ने मुख्यमंत्री के विरुद्ध न्यायालय में मानहानि का प्रकरण दर्ज कराया

कोटा। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा पत्रकार वार्ता के दौरान ज्यूडिशियरी और अधिवक्ताओं के भ्रष्ट होने सम्बन्धी टिप्पणी के विरुद्ध पूरे राजस्थान के अधिवक्ताओं में आक्रोश व्याप्त है। अभिभाषक परिषद कोटा के पूर्व उपाध्यक्ष हरीश शर्मा, पूर्व महासचिव रामबाबू मालव व सदस्य हेमंत शर्मा एडवोकेट ने संयुक्त रूप से अशोक गहलोत के विरुद्ध स्थानीय न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर कार्यवाही की मांग की है।

परिवादी पूर्व उपाध्यक्ष हरीश शर्मा एडवोकेट ने बताया कि मुख्यमंत्री जैसे गरिमामयी और संवैधानिक पद पर रहते हुये मुख्यमंत्री ने न्यायापालिका और अधिवक्ताओं के विरुद्ध की गई टिप्पणी से ना केवल न्यायपालिका की प्रतिष्ठा बल्कि विधि व्यवस्था की कार्य प्रणाली को भी बाधित करने का कुत्सित प्रयास किया है और इन कथनों से संपूर्ण न्याय पालिका पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर इसकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई है और साथ ही उन निष्ठावान व्यक्तियों की ईमानदारी पर भी सवाल खड़े किये हैं जो कि आम नागरिक को न्याय प्रदान करने का अथक प्रयास और परिश्रम कर रहे हैं।

परिवाद में कहा गया है कि भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने के साथ ही इसका एक लिखित संविधान भी है जो सभी व्यक्तियों और संस्थाओं से उपर है। जहां न्यायिक समीक्षा की शक्ति न्यायालयो में निहित है। भारत देश में न्यायालयों की सर्वाेच्चता एवं स्वतंत्रता विश्व के किसी अन्य देशो की तुलना में अधिक महत्व रखती है भारत की न्याय पालिका की बुनियाद उसकी निर्भिक एवं निष्पक्ष न्याय प्रदान करने की क्षमता है जिसमें लोगों का अटूट विश्वास है। मुख्यमंत्री ने अपने कथनो से इस बुनियाद की नींव को हिलाने, न्यायालयों के कामकाज में आमजन का अविश्वास, अंसतोष और अनादर पैदा करने का प्रयास किया है।
भारतीय न्यायपालिका को देश के नागरिक सर्वाेच्च सम्मान की दृष्टि से देखते हैं जब किसी नागरिक को कहीं भी न्याय नहीं मिल पाता तो न्यायपालिका को ही आखिरी उम्मीद माना जाता है ऐसे में गहलोत जी ने अपने उपरोक्त कथनो द्वारा न केवल भारतीय न्यायपालिका की क्षमता, निष्पक्षता, गरिमा, महिमा व प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाई है बल्कि न्यायपालिका के प्रति आदर, विश्वास और सम्मान का भाव रखने वाले असंख्य व्यक्तियों का न्यायालयों के प्रति विश्वास को हिलाने व नष्ट करने,आमजन का न्यायालयों के प्रति अविश्वास पैदा करने, उसकी गरिमा, सम्मान व महत्व को क्षति पहुंचाने का प्रयास किया है और उक्त कथनों से हमारे संवैधानिक ढांचे की आधारशिला को नष्ट करने, समाज में कानून के शासन को खत्म करने, साथ ही आमजन में ज्यूडिशियल सिस्टम के प्रति असंतोष भड़काने का प्रयास किया है।
भारतीय समाज में वकालत का व्यवसाय एक नोबेल प्रोफेशन माना जाता है और एक अधिवक्ता की समाज में काफी प्रतिष्ठा, महत्व, आदर, सम्मान है। साथ ही अधिवक्ता भारतीय न्यायिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग एवं नींव है अधिवक्ता, समुदाय को भी भ्रष्ट बताकर उसकी प्रतिष्ठा और छवि को धूमिल किया है तथा उसके प्रति असम्मान और अनादर और विद्वेष का भाव उत्पन्न किया है और मानहानि की है।
माननीय न्यायालय में प्रस्तुत उक्त परिवाद को न्यायालय द्वारा सुनवाई हेतु कल की पेशी नियत की गई है।

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