चाय के चौराहे पर

hot tea

– विवेक कुमार मिश्र

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

चाय सुबह के होने का अहसास कराती है
दिन उग जाता है चाय की भाप के साथ
चाय का मग जैसे भर लाता हो
उत्साह , उर्जा और अनंत बातों का सिलसिला
जो कहीं और नहीं बस चाय पर ही उतरती हैं

चाय की दुनिया सुबह से ही रंग में आ जाती है
हो सकता है जो चाय न पीता हो
उसके लिए चाय का कोई अर्थ न हो
या चाय की कथाएं उससे दूर ही रहती हों
पर यह तय है कि आप चाय पीते हों या न पीते हों
पर चाय कथा में आनंद का सेतु इस तरह बुना रहता है कि
हर कोई कहीं न कहीं से अपने को चाय कथा से जोड़कर रखता है

एक चाय कथा घर घर में चलती रहती है
सुबह से ही सबको इस बात का इंतजार रहता है कि
आज जो चाय उबलेगी
उससे उठे भाप में कहां का किस्सा होगा
यदि चाय के साथ कोई किस्सा न सुना तो
साथ साथ चाय पीने का अर्थ ही क्या हुआ

इससे अच्छा तो अकेले ही छानकर चाय पी जाते
और चाय के भाप में किस्से की पुड़िया से
जो उड़ती हवा आती है
उसी में जीने का अंदाज ढ़ूढ़ लेते
पर क्या पता दुनिया कहां जा रही है
किसी को कुछ पता नहीं
पर सब खबर सेकेंडों की रखतें हैं और रात दिन
स्क्रीन पर स्क्राल करते रहते हैं कि दुनिया कहां पहुची

पर यह भी सच है कि यदि बिना कुछ सोचे समझे भी
चाय पर आ जाते तो न केवल तरो-ताजा हो जाते
बल्कि दुनिया की हर गति को नजदीक से देख समझ लेते
यह चाय की दुनिया बिना किसी शोरगुल के दुनिया भर का
ज्ञान ऐसे रखती है कि मानों दुनिया कहीं और नहीं
इसी चाय के चौराहे पर बैठी हों और चाय की कहानियां
यहीं से उड़ते उड़ते दुनिया को जानने का दावा करती रहती हैं ।
– विवेक कुमार मिश्र

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