
कहते हैं कि सर्दी का अहसास भी उन्हें ही होता है जो कुछ करते धरते नहीं है बस पड़े रहते हैं । सर्द हवाएं चींख चींख कर कहती हैं कि पड़े मत रहो निकलों, कुछ करों, कुछ आगे बढ़ों सब कुछ ठीक हो जाएगा । हर मौसम का अपना ही आनंद और समय होता है । ऐसे में इन सर्द हवाओं का आप आनंद लें। इस समय का आनंद यह है कि आग जलाकर अलाव पर अपने को सेंक लें।
– विवेक कुमार मिश्र

कोहरा छंटने का नाम ही नहीं ले रहा है, इधर से हटता है तो उधर से आ जाता है । सब तरफ से कोहरे की मार पड़ रही है, शीतलहर इस तरह से पड़ रही है कि दिखता कुछ नहीं धुंध छायी हुई है । पेड़ पौधे सभी पर एक बर्फीली चादर सी छा जाती । ठंडी हवाओं का जोर इतना है कि हाथ पांव काम ही नहीं करते । आदमी थर थर कांप रहा है । इस समय हाथ पांव पसार भी नहीं सकते, जो जहां है वहीं पर दुबक कर बैठा है कहीं भी जाने से हवाएं रोक लेती हैं । इस मौसम यदि ढ़ंग से आपने अपने को ढंका नहीं तो सर्द हवाएं मार खाने को दौड़ रही हैं । हवाओं से बचने का उपाय यही है कि अलाव जला लें । अलाव के साथ ही राहत मिलती है ।
सब कुछ गड़बड़ हो गया है कहीं जाने लायक नहीं है । बस बैठे रहिए पर बैठे रहने से भी तो काम नहीं चलने वाला है । ठंड के मारे उंगलियां अकड़ जाती हैं और कहती हैं कि अब कोई काम नहीं होता , पहले हाथ सेंक लो फिर कुछ सोचों । हाड़ कंपाने वाली ठंड चैन से सोने भी नहीं देती , हवाएं न जाने कहां से चली आती हैं , और ऐसे लगता है जैसे कि कोई बड़ा कट लग गया हों, एक दर्द एक चींख सी निकल जाती है । सर्द हवाएं इस तरह चल रही हैं कि लगता है कि जान लेकर ही मानेंगी । रात की तीखी हवाएं तो जान पर ही भारी पड़ जाती है । इन हवाओं का जोर इतना है कि इसके आगे कुछ भी नहीं सूझता । दिन पूरा निकल गया है पर पता ही नहीं चलता है कि दिन है कि रात है । चारों तरफ कोहरा छाया है, हवाएं काट खाने को दौड़ रही हैं ऐसे में भला आदमी क्या करें कहां जाएं । पानी बर्फ की तरह जमा आ रहा है, हाथ पांव धोने का भी मन नहीं करता पर ऐसे ही आदमी कब तक पड़ा रहेगा । पड़े रहने से काम भी नहीं चलेगा । संसार में हैं तो कदम बढ़ाना ही पड़ेगा । अब तो आदमी के पास एक नहीं दो दो कंबल है पर गलन इतनी बढ़ गई है दो नहीं चार कंबल भी ओढ़ ले तो भी ठंडी हवाएं न जाने कहां से आ ही जाती हैं । यह समय ठंडी हवाओं के मारे कांप रहे लोगों का समय है जो जहां है जैसे है बस वैसे ही पड़ा रहना चाहता है । इस समय कोई कहीं भी जाना नहीं चाहता ? घर से बाहर निकलना दुभर हो रहा है पर निकलना तो पड़ेगा ही, काम धाम करना ही पड़ेगा । कहते हैं कि सर्दी का अहसास भी उन्हें ही होता है जो कुछ करते धरते नहीं है बस पड़े रहते हैं । सर्द हवाएं चींख चींख कर कहती हैं कि पड़े मत रहो निकलों, कुछ करों, कुछ आगे बढ़ों सब कुछ ठीक हो जाएगा । हर मौसम का अपना ही आनंद और समय होता है । ऐसे में इन सर्द हवाओं का आप आनंद लें। इस समय का आनंद यह है कि आग जलाकर अलाव पर अपने को सेंक लें । अभी जो हाल है जैसा मौसम है उसके हिसाब से अपना बचाव करते हुए कदम बढ़ाते चलों, जो चलता है वहीं आगे बढ़ता है ।
इस मौसम में आग ही सहारा है । कंबल – रजाई से बाहर निकलो अलाव जलाओं , दो चार लकड़ी इकठ्ठा करों फिर तीली माचिस की सहायता से आग को पकड़ने दो । जब आग पकड़ लेगी तो सब आ जायेंगे । अलाव के पास ही सहारा मिलता है सर्द मौसम में । यद्यपि अब अलाव की जगह हीटर , ब्लोवर आदि आ गये हैं, दिखते रहते हैं… पर जो सुख अलाव का है वह कहीं और नहीं है । देशज साधन सीधे सीधे देश की मिट्टी और देश के मन से जोड़ देते हैं । यहां अलाव जलाने में जो मेहनत, जो हिकमत और जो श्रम लगता है वहीं बाद में सुख का कारक बन जाता है ।
जहां लकड़ी और आग के बीच से एक सोंधी सोंधी महक निकलती है और आंच तन मन को एक साथ स्पर्श करती है वह हीटर ब्लोवर में कहां है ? वैसे भी हीटर ब्लोवर एक आदमी को सुख पहुंचाते हैं पर अलाव तो आसपास के सभी लोगों को न केवल सुखकारी लगता है बल्कि सबकी स्मृतियों को भी खोल देता है और सब अलाव सुख के अपने अपने किस्से कहानियों और विचार को लेकर अलाव पर जम जाते हैं कि पूरा का पूरा दिन पूरी की पूरी रात निकल जाये और न तो आग कम होती न बातें कम होती न ठंडी हवाओं का दौर कम होता पर सब कुछ पुरसुकून से चलता ही रहता है। अलाव दुनियादारी से, सामाजिकता से और मनुष्य को अपने परिवेश से बहुत गहरे जोड़ देती है यहां उसकी पूरी दुनिया होती है । इसीलिए बराबर से यह कहा जाता है कि अलाव पर हाथ पांव सेंको और दुनियादारी में जुत जाओं । खाली बैठे रहने से काम चलने वाला नहीं है । दो चार लकड़ी और फिर आग सुलग जाए, फिर तो सिलसिला चल पड़ता है बातों का , बहस का और आग और धुएं के मेल से एक गर्माहट आ ही जाती है । यह आग केवल आदमी के लिए ही नहीं है इसकी गर्माहट से पालतू जानवरों को भी राहत मिलती है, इस समय देखने में आता है कि अलाव के आसपास ही पिल्ले, बैठे मिलते हैं, आग है तो ठीक नहीं तो आग की राख से भी अपने को गर्म रखते हैं यहां गर्माहट का अहसास बना रहता है, और जब आग जलती है तो हथेलियों में जान और गर्माहट आ जाती है । इस सर्द मौसम में कुछ करें या न करें पर अलाव की व्यवस्था करते हुए चलें आप तो एक नहीं दो-दो कंबल ओढ़े जा रहे हैं पर बहुत से ऐसे लोग भी हैं जिनके चेहरे को गर्माहट कंबल से नहीं आग से ही मिलती है । यह मौसम शितम ढ़ा रहा है साहब । कितने दिन हो गए सूरज के दर्शन ही नहीं हुए , जब सूरज नहीं निकलता तो आग ही सहारा होती है । इस आग के सहारे ही दिन रात काट लिया जाता है ।