
– विवेक कुमार मिश्र

चाय पीने के दिन आ गये
गुलाबी गुलाबी सर्दी के दिनों में
चाय की महक कुछ ज्यादा ही तैरती है
मन आप से आप कहने लगता है तो
चाय पी लिया जाएं
चाय के साथ ही मन को तरोताजा करने
और अपने भीतर गर्माहट महसूस करने के लिए
कदम बढ़ा लेते हैं
यह समय चाय का ही होता है
आदमी चाय पर ही पूरी तरह से खिलता है
चाय न मिले तो लोग-बाग खोपड़ी को नोचते हुए
इधर से उधर ऐसे भटकते हैं कि…
दुनिया में कुछ हो ही न और वे किसी काम के नहीं हैं
अब आप ही बताइए
चाय न मिले तो भला आदमी क्या करेगा
कैसे कुछ कर पायेगा जब ताजगी ही नहीं आयेगी
जब मन ही ठीक नहीं होगा
जब कुछ करने का मन ही नहीं करेगा
तो चाहे जो कर लें कुछ भी परिणाम निकलने वाला नहीं है
चाय हर मौसम में मन मस्तिष्क को एक निश्चित बिंदु पर
खींच कर लाती है और आदमी चाय पीते ही
दुनियादारी से ऐसे जुड़ जाता है कि
उससे बड़ा दुनियादार कोई और हो ही नहीं
और इस तरह सर्दियों में चाय पीते…
वह अपना गला सेंक रहा होता है
कहते हैं कि सर्दियों के दिन चाय पीने के होते हैं
जैसे जैसे सर्द हवाएं चलती हैं
वैसे वैसे चाय की महक हवा में घुलने लगती है
और लोग-बाग चाय की थड़ियों पर रुकने लगते हैं
और इच्छानुसार चाय बनवाते हैं
यह बात दीगर है कि किसी को अदरक वाली
तो किसी को काली मिर्च लौंग और इलायची वाली
चाय पसंद है पर जो हो जैसे हो
सब चाय पर आ ही जाते हैं
लोग-बाग तरह तरह की चाय के बीच
कुछ और नहीं देखते
बस चाय और चाय की भाप पर
उस मानवीय ऊष्मा को देखते हैं
जो चाय के साथ आ जाती है
– विवेक कुमार मिश्र