नाज़ो-अंदाज़ भूल बैठे सब। अब वो शोख़ी नहीं बहानों में।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

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शकूर अनवर

*
अज़्म* रखते हैं जो उड़ानों में।
वो परिंदे हैं आसमानों में।।
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बर्क़* ने सब ठिकाने फूॅंक दिये।
रह गई राख आशियानों में।।
*
सीधे-सादे फ़रिश्ता जैसे लोग।
अच्छे लगते हैं दास्तानों में।।
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नाज़ो-अंदाज़ भूल बैठे सब।
अब वो शोख़ी नहीं बहानों में।।
*
तेरे आगे सितारे फीके पड़े।
तुझ सा गौहर* नहीं ख़ज़ानों में।।
*
कौन-महमिल नशीं*निकलता है।
एक चुप सी है सारबानों* में।।
*
कश्तियाँ जल-जला के राख हुईं।
वो लगी आग बादबानों* में।।
*
खो चुके हम मुहावरे “अनवर”।
ज़ंग आने लगा ज़ुबानों में।।
*

अज़्म*हौसला
बर्क़*बिजली
गौहर*मोती
महमिल-नशीं*ऊॅंट के होदे में बैठने वाला
सारबानों*ऊॅंट चलाने वाले
बादबानों*नाव कश्ती।

शकूर अनवर
9460851271

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