
दुनिया में कितने दुःख दर्द हैं यदि इसका हिसाब लगाने चलें तो समंदर का पानी भी कम पड़ जायेगा। लोग-बाग न जाने कहां कहां जाने की कह रहे हैं। जिसे देखिए वहीं बस जा रहा है यह अलग बात है कि वह कहां और क्यों जा रहा है यह उसे पता नहीं है और इसे वह जानना भी नहीं चाहता । वह बस इसलिए जाना चाह रहा है कि लोग जा रहे हैं तो वह भला कैसे यहां रह जाएं किसी से क्या बताएं कि वह कहीं नहीं जा सकता या उसकी क्षमता नहीं है कहीं जाने की या वह आलसी टाईप का आदमी है।
– विवेक कुमार मिश्र

हां हेलो ! हेलो ! क्या कर रहे हैं ? एक तरफ से आवाज आती है और दूसरी तरफ से यह आवाज चली जाती है कुछ नहीं ऐसे ही बैठे हैं । यह कथन बस यूं ही चलता रहता है । इस कथन को बोलने में बहुत गंभीरता नहीं होती न ही कोई भी सोचकर बोलता। सब बस यूं ही बोल देते हैं। हर कोई बस ऐसे ही बोल देता कि कुछ नहीं बैठे हैं । यदि आप कोई काम बोल दें तो हजार काम बता देंगे और हजारों तरह के बहाने । अब आपको यदि यह लगे कि आपने इनसे किसी कार्य के बारे में जिक्र किया तो क्यों किया । उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किसी बात या किसी कार्य को लेकर परेशान हैं या वह कार्य आप नहीं कर पा रहे हैं तो कोई और कर लेगा । ऐसा कुछ नहीं है वे बैठे रहेंगे और यह भी सच है कि ऐसे ही बैठे रहेंगे पर आपने काम बता दिया तो बैठना छोड़कर वे नाचने भी लगे तो यह कम नहीं होगा । उनके हिसाब से नाचता हुआ आदमी बिना कुछ किए भी इतना व्यस्त दिखता है कि उससे कोई कुछ कहने की स्थिति में रहता ही नहीं । आजकल चारों तरफ ऐसी ही स्थितियां बन रही हैं कि आदमी कुछ करें या न करें पर कार्य का बोझ लेकर ऐसे बैठे रहते हैं कि उन्हीं के उपर दुनिया टिकी हो । यह दुनिया भर का भार लेकर आदमी ऐसे चलता है कि बस सारा काम उसी के हाथों से होना है । दुनिया का भार ढ़ोता आदमी बड़ा सुंदर दिखता है । सबकी यही कोशिश रहती है कि वह दुनिया में है तो दुनिया उसी की वजह से चल रही है । चलते चलते हर आदमी अपनी ही चलाने में लगा रहता है । अब आप यदि यह पूछे कि दुनिया कहां है या दुनिया कहां जा रही है तो इसका उसे कुछ भी पता नहीं होगा पर वह ज्ञान बघाड़ना नहीं छोड़ेगा । क्या ऐसे ही दुनिया चलती है । केवल बैठे रहने भर से दुनिया चलती है क्या ? दुनिया को चलते देखना भी बड़ा दिलचस्प काम होता है । आप हैं और दुनिया है, इसके आगे भी बहुत सारे लोग होते हैं जो कुछ करते धरते नहीं हैं पर हर गति का हिसाब लगाते रहते हैं। उनके हिसाब से यह दुनिया उतनी ही चलती है जितना वे चल पाते हैं इसीलिए हर समय वे अपने कदमों का हिसाब लगाते रहते हैं। दुनिया की गति में वे अपनी गति मान लेते हैं । दुनिया के हिसाब से चले या उनके हिसाब से उन्हें इससे कोई खास लेना देना नहीं होता। वे तो बस इसी तरह दुनिया में अपने को शामिल मान लेते हैं।
यदि ऐसा ही होता तो दुनिया का भार किसी को महसूस ही नहीं होता। पर दुनिया में कितने दुःख दर्द हैं यदि इसका हिसाब लगाने चलें तो समंदर का पानी भी कम पड़ जायेगा। लोग-बाग न जाने कहां कहां जाने की कह रहे हैं। जिसे देखिए वहीं बस जा रहा है यह अलग बात है कि वह कहां और क्यों जा रहा है यह उसे पता नहीं है और इसे वह जानना भी नहीं चाहता । वह बस इसलिए जाना चाह रहा है कि लोग जा रहे हैं तो वह भला कैसे यहां रह जाएं किसी से क्या बताएं कि वह कहीं नहीं जा सकता या उसकी क्षमता नहीं है कहीं जाने की या वह आलसी टाईप का आदमी है । कहीं जाना ही नहीं चाहता या यह कहें कि उसे तो कहीं नहीं जाना है। वह जहां है वहीं ठीक है पर यह भी आसानी से कहां कहा जा सकता है कि वह ठीक है । ठीक ठाक होना भी कहां आसान है। ज्यादातर लोग ठीक ही तो नहीं है और ठीक होना चाहते हैं इसलिए जहां कहीं जैसे भी जुगत लगा जाती बस चल देते हैं । बहुत सारे लोग इसलिए भी कहीं चले जाते हैं कि क्या करें कुछ काम-धाम नहीं है कब तक ऐसे ही बैठे रहे कोई काम नहीं है तो चलों कहीं हो ही आते हैं । कुछ दिन इस हो आने में निकल जायेगा और कुछ दिन इस हो आने की कहानी सुनाने में कट जायेगा । वैसे भी दुनिया में न तो सुनने वालों की कोई कमी है न ही सुनाने वाले कम हैं । सब एक दूसरे को खोजते ही रहते हैं कि कोई मिल जाएं फिर पूरा का पूरा उड़ेल कर रख दें । यह सब संभव भी तभी हो पाता है जब आपके पास कहीं से कहीं आने-जाने का अनुभव होता है । जब आप दुनिया को देखने में व्यस्त रहते हैं तो आपके पास अनुभव कथा भी जुड़ जाती है और सुनाने के लिए आपके पास तथ्य और तर्क भी जुट जाते हैं । आजकल लोग तथ्य और तर्क को जुटाने में लगे रहते हैं । जरूरी नहीं कि तर्क के लिए कुछ पढ़ें ही , हो सकता है कि इधर उधर से आये ज्ञान को ही लोग तथ्य की तरह से ऐसे इस्तेमाल करते हैं कि वह सत्य ही हो और इस विश्वास के साथ बोलते हैं कि सारा साक्षात्कार इन्होंने कर ही लिया है । पूछो कि आप कहां से यह बात कह रहे हैं तो उत्तर बस यही होगा कि मोबाइल में ऐसा मैसेज आया था । आजकल धड़ल्ले से मैसेज परोसा जा रहा है । बिना आगे पीछे सोचें ही कुछ भी कहा जा सकता है । किसी भी स्तर पर कुछ भी लिखा और पढ़ा कहा जा सकता है । आजकल चर्चित होने के फार्मुले चल रहे हैं । जिसे देखो वही यह समझाने में लगा है कि ज्ञान उसी के पास हैं । यदि उसे नहीं सुना गया तो न जाने कहां दुनिया चली जाएगी । तुरंत होने वाले ज्ञान के लिए वह कहीं और नहीं तकनीकी दुनिया में ही जाना पड़ेगा और आजकल सब कुछ मोबाइल के रास्ते ही आ रहा है । बिना किसी ठोस आधार के कुछ भी कहा जा सकता है । किसी भी लेवल पर किसी तरह की प्रतिक्रिया दी जा सकती है । यह सब मोबाइल की महिमा से ही संभव होता है । यहां जो ज्ञान है वह एक ही धरातल से एक ही तरह से सब जगह परोसा जा रहा है । मोबाइल वही कहता है जो इस समय पापुलर हो रहा है। उसके लिए जरूरी नहीं है कि कोई ठोस आधार हो या यह भी संभव नहीं है कि आप मोबाइल के पास गए और सारी ज्ञान सरिता मोबाइल के सहारे चल पड़ती है । अब मोबाइल में क्या चल रहा है ? क्या कुछ उल्टा सीधा परोसा जा रहा है इसे कोई भी समझदार आदमी समझ सकता है पर मोबाइल की दुनिया से किसी को भी किस कदर प्रभावित किया जा सकता है कि वह कुछ समझने की स्थिति में रहता ही नहीं । जो कुछ जैसा भी परोस दिया जा रहा है उसे बस वह स्वीकार कर लें रहा है । एक तरफ से ज्ञान के नाम पर कुछ भी रख दिया जा रहा है । बिना किसी तर्क के बस स्वीकार करने की स्थिति ही खतरनाक होती जा रही है जो इस तेज गति से भाग रही दुनिया में सब एक दूसरे को बस फालोवर बनाना चाहते हैं ।
जिधर भी देखिए उधर भागम भाग मची है । लोग इधर से उधर जाने के लिए हैरान परेशान भटक रहे हैं। कई लोगो को लगता है कि भटकने में ही दुनिया का अनुभव सीखने को मिलता है और ऐसे लोग अक्सर इस तरह का दावा करते रहते हैं कि वहां गया तो वहां यह देखा और वहां की दुनिया ऐसी है तो वहां ऐसे लोग रहते हैं । यहां तो कुछ खास है ही नहीं और इस तरह के कथन हर संसार में हर संसार के मनुष्य द्वारा समय समय पर कहा जाता है । किसी
साहित्य और संस्कृति को समझने के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है हमें अपने ही आसपास एक दुनिया मिल जाती है । यदि सब ऐसे ही चलते रहे तो कुछ भी समझ में आने वाला नहीं है । पता नहीं कहां हम अपनी दुनिया को लेकर जा रहे हैं एक होड़ मची हुई है कि कौन क्या कर रहा है । किसी को इससे मतलब नहीं है कि कौन क्या कर रहा है या क्या सही है क्या ग़लत सब बस भाग रहे हैं सब एक दूसरे की देखा-देखी भाग रहे हैं। दुनिया भागने के लिए नहीं बनी है यह दुनिया जीने के लिए और संसार को समझने के लिए बनी है। आप दुनिया को संभालते चलें । यह संसार किसी एक के द्वारा नहीं बनता इसे तो सब मिलकर रचते रहते हैं। और अनंत के छोर पर सब अपनी अपनी दुनिया को ऐसे देखते हैं कि यह सब कुछ उसी ने तो रचा है । आप कहां हैं क्या कर रहे हैं किस पद पर हैं यह उतना महत्वपूर्ण नहीं होता जितना कि दुनिया को अपने और अन्य के लिए रहने लायक आप यदि बनाते चलते हैं तो यह दुनिया तय मानिए कि दी हुई दुनिया से भी बहुत सुंदर हो जाती है जिसमें सभी अपने अनुभव संसार को साझा करते हुए बड़े होते हैं । यहां सभी के पास करने और कहने के लिए इतना कुछ होता है कि जैसे पूरा जीवन संसार सामने ही पड़ा हों।