पगडंडियां, पेड़ और खिड़की के बीच जीवन की आभा

उनके यहां कोई एक रंग नहीं अनंत रंगों की श्रृंखला मूर्त रूप में उभर जाती है। जीवन का प्रतीक रचते हुए कवि संसार को जीवन प्रियता का उत्साह का उमंग का और एक बच्चे की किलक का रंग सौंप जाती है। उनके यहां गति है। यह गति चलने के क्रम में टहलने के क्रम में संसार से संवाद करती रहती है।

prayag shukla
चित्र प्रसिद्ध कवि और कला आलोचक प्रयाग शुक्ल

– विवेक कुमार मिश्र-

(एसोसिएट प्रोफेसर हिंदी)

प्रयाग जी मूलत कवि कलाकार और चलते फिरते चिंतक मनीषी के रूप में संसार से बात करते हैं। बात करने के क्रम में वे रुक जाते हैं और यह रुकना सौंदर्य का एक टटका बिंब होता है। अचानक खिली हुई दुनिया आंखों के आगे आ जाती और कवि कलाकार का मन जाते जाते ठहर जाता है। रंग से फूल से पत्तियों से और इन सब से बनती हुई एक दुनिया से मन बात करने लगता है। यह बात करना यूं ही नहीं शुरू हो जाता वल्कि संसार से लगाव के कारण ही हम बात करते हैं। कलाकार की आंखें दर्शन, जीवन – जगत तक चला जाता है। यह संसार क्यों है और इस संसार में हमारी उपस्थिति के क्या मायने हैं ? हम क्या देखना चाहते हैं और क्या कुछ देख रहे हैं और क्या कुछ बनाना चाहते हैं इन बातों से साहस के साथ टकराने का काम उनका कवि मन करता है।

डॉ. विवेक कुमार मिश्र

वह बराबर अपने समय का रंग रचते हैं समय में किस तरह से फूल खिलते हैं वनस्पतियां किस तरह से बात करती हैं। सूरज की किरणों के साथ जल लहरियों का कैसे संवाद होता है और किस तरह से सूरज की किरणें पत्तियों के बीच से झिरते-झिरते धरती पर आ जाती है और नए सिरे से एक नया सुनहरा रंग बिखेर जाती है जो मनुष्य के लिए सौंदर्य का सृजन का और उसके अस्तित्व का प्रतीक होता है। इस तरह से उनके यहां कोई एक रंग नहीं अनंत रंगों की श्रृंखला मूर्त रूप में उभर जाती है। जीवन का प्रतीक रचते हुए कवि संसार को जीवन प्रियता का उत्साह का उमंग का और एक बच्चे की किलक का रंग सौंप जाती है। उनके यहां गति है। यह गति चलने के क्रम में टहलने के क्रम में संसार से संवाद करती रहती है। संवाद के क्रम में सहज प्रेम होता है। जो प्रिय होता उससे उठते बैठते बात करते हैं उसे अनंत रंगों और रूप में देखते हैं। यह देखना ही जीवन पथ हो जाता। कवि कलाकार और रंग दर्शन में रमने वाले प्रयाग जी इसी तरह संसार में होते हैं। बातों के बीच से जीवन की गहराई और दर्शन में भी सहजता और सरलता का पाठ रचनात्मक दुनिया से रचते रहते हैं। यह रचना ही जीवन है और जीवन ही रचना ही उन्हें कविता, कला और चिंतन के साथ कला आलोचना तक ले जाती हैं। यहां उनका एक चित्र है ‘शाम की पगडंडी’ जो शहर की ओर लेकर जाती है। पगडंडियों से हम सब जीवन की राह निकालतें हैं। इस राह में गति है, रंग है, दिशा है और आकृतियां हैं जो कि जीवन को रचने गढ़ने का काम करती रहती हैं। शाम गहराती रात में ढ़लने से पहले रंगों में खिल जाती है।
शाम की पगडंडी शहर की ओर ले जाती है। शहर जो व्यवस्थित रहते हैं एक जगमग रोशनी को रचते हैं और शाम के साथ बिजली की कौंध, चमक एक दुनिया की ओर ले जाती है। इस तरह शाम का रंग जीवन की ओर ले जाती है। शाम थोड़ा सा सोचने के लिए, विचार की जगह के लिए भी छोड़ देती है। शाम रंग के साथ खिल जाती है और उदास मन में भी नये सिरे से रंग भरने का काम करने लगती है। पगदंडी शहर की हो या गांव की वह जीवन के घर का रास्ता दिखाती है और मनुष्य अपने साहस से नित नये रंग की पगदंडी बुनता रहता है । रंग का झिलमिल सितारों सा झरना जीवन जीने का प्रतीक है , जब जीते हुए चलते हैं तो खुशियां कितने सारे रंगों में उतरती है इसे शाम में , बादलों के बीच उभर रही आकृतियों में देखा जा सकता है । इस चित्र में अनंत रंगों का झरना उतरता है और इसी हिसाब से आकृति बनती है और अपनी ओर खींचती है । प्रयाग शुक्ल जी जब चलते हैं तो साथ में जीवन प्रियता , प्रकृति और रंग के चढ़ने उतरने की बारीक क्रियाएं भी चलती रहती हैं । वे वैसे नहीं टहलते जैसे कि कोई निकल पड़े , सहसा चल पड़े , वे तो ठहर कर, देख कर , थोड़ा पढ़ते , थोड़ा गुनते देखते चलते हैं । कहीं भी पहुंच जाने की जल्दबाजी उनके यहां नहीं है। न रंग में, न कला में न विचार में और इस तरह वे ऐसे चलें जाते हैं कि सारे रंग उनसे बतिया रहे हों और सब साथ हो और सब कुछ मुक्त । किसी से कुछ भी नहीं लेना किसी का कोई बकाया नहीं और इस तरह एक खुशहाल जिंदगी हमारी आंखों में बसा जाते हैं। शाम का रंग और सुबह का रंग दोनों ही प्रिय संसार से निकलते हैं और इन्हीं के बीच घूमते पगदंडियां बनती और रंगती रहती हैं। शाम को चलते चलते दिन के डूबने का जहां एहसास होता है वही एक अनुभव बनता है कि आज क्या-क्या हमने किया ? क्या करना था जो रह गया । जो रह गया उसे कैसे करें। कैसे जीये ? शाम के रंगों से बातें करते हुए चले जा रहे हैं कि फिर कुछ और रंगों के साथ कुछ और जीवन की हलचलों के साथ जुड़ेंगे।
पेड़, पत्तियों से होते हुए फूलों की दुनिया जीवन चक्र की तरह उनके यहां घूमती रहती है। यहां केवल वाह्य सौंदर्य की बात नहीं है, इससे आगे एक आंतरिक दुनिया चलती रहती है जिसके साथ ही सारा जगत खिलता है। पेड़ के रंग फूल और जीवन हमारे ही जीवन और मन है । तृण से लेकर वट तक कितना आश्चर्य है कि जीवन और कविता का संपूर्ण अर्थ समा जाता है। पेड़ जो दिखता है वह हममें खिलता है रंग भरता है और हमसे बातें भी करता है । जो नहीं दिखता वह पेड़ के लिए ही दाना पानी इकट्ठा करता है। पेड़ अपने रंग, अपने फूल, फल और तने के साथ आता है और पेड़ का बहुत सारा हिस्सा जड़ों के रूप में धरती के भीतर चला जाता और पोसता रहता पेड़ को। पेड़ सच में देखें तो जीवन की संस्कृति हैं। पेड़ और मनुष्य की दुनिया के बीच आवाजाही सांस दर सांस चलती रहती है। यह बाहर की जो दुनिया है वह हमारे भीतर के संसार से मन की खिड़की और वास्तविक खिड़की से जुड़ने का काम करती है । इस तरह हमारे संसार को और मन को आंखों के रास्ते, खिड़कियों से प्रयाग जी बराबर जोड़ते रहते हैं। जीवन बराबर रंग के साथ बादलों के बीच उभरती आकृतियों और सूरज की किरणों के रंग के साथ जीवन का रंग भी हम खेलते हुए देखते हैं । प्रकृति इस समय रंग जाती है। आसमान से रंग की बारिश होती है और धरती की वनस्पतियों के साथ रंग और जीवन का जुड़ाव इस तरह से एक सुनहरी दिशा में जाता है जहां से सब कुछ सुंदर सा खिल जाता है। पगडंडियों पर मनुष्य एक दंपत्ति के रूप में जा रहा है। उसके साथ उसकी संतति भी हैं और इस तरह से भविष्य को अपने रंग की बरसात में ले जा रहा है। रंग में डूबे हुए आदमी को लेकर खिला हुआ रंग लिए जा रहा है। यह भी कहा जा सकता है की जो रंग प्रकृति में है और जिसे हम देखना चाहते हैं वह हमारे भीतर भी चलता रहता है। एक रंग बाहरी दुनिया में होता है और एक रंग हमारी आंतरिक दुनिया में होता है । इन्हीं रंगों के साथ प्रकृति में जब से यह पृथ्वी है तभी से मनुष्य प्रकृति के साथ वनस्पतियों के साथ चलता चला जा रहा है। वह रुकता नहीं है वह बस चल रहा है और जीवन के रंग अनगिनत अनंत दिशाओं की ओर लेकर जाते हैं । यहां कत्थई जामुनी और सुनहरे रंगों के बीच जल का रंग हरापन आसमानीपन और थोड़ा सा सफेदपन भी लिए हुए हैं । यह रंग ही तो जीवन है और इन्हीं रंगों की बीच जो पगडंडी की आभा है वह पीले रंग से पूरी गई है और यह किताब रंग जीवन की आश्वस्ति का बोध कराता है।
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कवि – लेखक

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