तंबाकू का धुआं नहीं, स्वस्थ जीवन की हवा चाहिए

तंबाकू केवल स्वास्थ्य ही नहीं, आर्थिक दृष्टि से भी देश के लिए भारी नुकसान का कारण बनता है। तंबाकू सेवन से उत्पन्न बीमारियों के इलाज पर भारत में हर वर्ष लगभग एक लाख अस्सी हज़ार करोड़ रुपये खर्च होते हैं। यह राशि यदि शिक्षा, पोषण और स्वच्छता में निवेश की जाए तो देश की दिशा और दशा दोनों में सुधार आ सकता है। यह भी विचारणीय है कि तंबाकू से संबंधित बीमारियाँ व्यक्ति की कार्यक्षमता को कम कर देती हैं जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

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-विश्व तंबाकू निषेध दिवस 31 मई पर विशेष

डॉ. सुरेश पाण्डेय, डॉ विदुषी शर्मा

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डॉ. सुरेश पाण्डेय                        डॉ विदुषी शर्मा

हर वर्ष 31 मई को पूरे विश्व में विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है ताकि लोगों को तंबाकू और निकोटिन उत्पादों के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक किया जा सके। तंबाकू केवल एक व्यसन नहीं, बल्कि जीवन को धीरे-धीरे खत्म कर देने वाला जहर है। वर्ष 2025 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस की थीम है – “आकर्षण की परतें हटाना: तंबाकू और निकोटिन उत्पादों पर उद्योग की रणनीतियों को उजागर करना”। यह विषय विशेष रूप से युवाओं को जागरूक करने हेतु तय किया गया है, क्योंकि तंबाकू कंपनियाँ युवाओं को आकर्षित करने के लिए नए-नए प्रलोभनों, पैकेजिंग और प्रचार माध्यमों का सहारा लेती हैं।

तंबाकू सेवन के कारण प्रतिवर्ष विश्व में लगभग अस्सी लाख लोग अपनी जान गंवा देते हैं। इनमें से भारत में ही लगभग तेरह लाख लोगों की मृत्यु प्रतिवर्ष तंबाकू से संबंधित बीमारियों से होती है। यह एक ऐसा संकट है जो न केवल उपभोक्ता को बल्कि उसके आसपास के लोगों को भी अपनी चपेट में ले लेता है। अनुमानित आंकड़ों के अनुसार भारत में हर वर्ष लगभग बारह लाख लोग ऐसे होते हैं जो स्वयं तंबाकू का सेवन नहीं करते, लेकिन दूसरों के धुएं के संपर्क में आकर गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं।

तंबाकू से उत्पन्न बीमारियाँ अत्यंत खतरनाक होती हैं। यह मुंह, गले, फेफड़ों, ग्रसनी, यकृत और पाचनतंत्र के कैंसर का प्रमुख कारण है। भारत में मुंह के कैंसर के मामलों में निरंतर वृद्धि हो रही है, जो मुख्यतः गुटखा, खैनी, बीड़ी और तंबाकू मिश्रित पान के सेवन से होते हैं। तंबाकू हृदय प्रणाली को गंभीर क्षति पहुँचाता है। यह धमनियों को संकुचित कर देता है, जिससे उच्च रक्तचाप, हृदयघात और मस्तिष्काघात की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

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बहुत कम लोग जानते हैं कि तंबाकू आंखों की सेहत को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। धूम्रपान करने वालों में धब्बेदार अँध:दृष्टि (एज-रिलेटेड मैक्युलर डिजनरेशन) होने की संभावना तीन गुना तक अधिक होती है, जिससे धीरे-धीरे व्यक्ति की केंद्रीय दृष्टि समाप्त हो जाती है। इसके अलावा लंबे समय तक तंबाकू सेवन करने वालों में मोतियाबिंद, ऑप्टिक न्यूरोपैथी (दृष्टि तंत्रिका की क्षति) और ड्राय आई सिंड्रोम जैसी समस्याएं आम पाई जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय शोध-पत्रों जैसे कि ब्रिटिश जर्नल ऑफ ओप्थैल्मोलॉजी और अमेरिकन जर्नल ऑफ ओप्थैल्मोलॉजी में तंबाकू के कारण नेत्रों को होने वाली क्षति का विस्तृत विवरण दिया गया है।

तंबाकू उद्योग ने युवाओं को अपने जाल में फँसाने के लिए बड़ी ही चतुराई से रणनीतियाँ बनाई हैं। वे आकर्षक डिब्बों, फ्लेवर युक्त ई-सिगरेट, सोशल मीडिया विज्ञापनों और फिल्मी सितारों के ज़रिए इस ज़हर को मीठा बनाकर परोसते हैं। हाल ही में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, भारत में 15 से 24 वर्ष के युवाओं में ई-सिगरेट और वाइपिंग का चलन बढ़ा है और उनमें से लगभग 35 प्रतिशत युवाओं ने इसे सोशल मीडिया या मित्रों के दबाव में आकर अपनाया। यह एक खतरनाक संकेत है जो हमारी अगली पीढ़ी को असमय अंधकार में धकेल सकता है।

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तंबाकू केवल स्वास्थ्य ही नहीं, आर्थिक दृष्टि से भी देश के लिए भारी नुकसान का कारण बनता है। तंबाकू सेवन से उत्पन्न बीमारियों के इलाज पर भारत में हर वर्ष लगभग एक लाख अस्सी हज़ार करोड़ रुपये खर्च होते हैं। यह राशि यदि शिक्षा, पोषण और स्वच्छता में निवेश की जाए तो देश की दिशा और दशा दोनों में सुधार आ सकता है। यह भी विचारणीय है कि तंबाकू से संबंधित बीमारियाँ व्यक्ति की कार्यक्षमता को कम कर देती हैं जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

इस समस्या से लड़ने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रस्तुत एमपावर मॉडल एक प्रभावी दिशा निर्देश है, जिसमें निगरानी, संरक्षण, उपचार सहायता, चेतावनी, विज्ञापन निषेध और कर व्यवस्था जैसे छह स्तंभ शामिल हैं। यदि इन उपायों को प्रभावी रूप से लागू किया जाए, तो तंबाकू नियंत्रण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की जा सकती है। सरकार द्वारा सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध, सिगरेट और गुटखा पर कर वृद्धि, चेतावनी चित्र, और तंबाकू से जुड़े विज्ञापनों पर रोक जैसे प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन इन्हें और अधिक कठोर तथा व्यापक बनाने की आवश्यकता है।

हमें यह समझने की आवश्यकता है कि तंबाकू केवल एक व्यक्तिगत आदत नहीं है, यह एक सामाजिक समस्या है। हर व्यक्ति को यह संकल्प लेना चाहिए कि वह स्वयं तंबाकू से दूर रहेगा और अपने परिवार, मित्रों और समाज को भी इससे दूर रखने का प्रयास करेगा। विशेष रूप से युवाओं को इस विषय में सही जानकारी देना और उन्हें प्रेरित करना अत्यंत आवश्यक है। माता-पिता, शिक्षक, चिकित्सक, और समाज के सभी जागरूक नागरिक मिलकर इस बुराई के विरुद्ध एक जनआंदोलन खड़ा कर सकते हैं।

आज आवश्यकता इस बात की है कि हम आकर्षक प्रचारों के पीछे छुपे तंबाकू के ज़हरीले चेहरे को पहचानें। हमें युवाओं को बताना होगा कि असली आकर्षण तंबाकू में नहीं, बल्कि अच्छे स्वास्थ्य, स्वच्छ सांसों और स्वस्थ जीवनशैली में है। इस वर्ष 31 मई तंबाकू निषेध दिवस के अवसर पर आइए हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हम धुएं और ज़हर को नहीं, बल्कि जीवन और स्वास्थ्य को चुनेंगे। अब समय आ गया है कि तंबाकू की चालाक दुनिया की परतें हटाई जाएँ और समाज को इस धीमे ज़हर से बचाया जाए। यह केवल एक दिन का अभियान नहीं, बल्कि एक सतत प्रयास होना चाहिए। अगर हम आज जाग गए, तो हम न केवल अपना बल्कि अगली पीढ़ियों का जीवन भी बचा सकते हैं।

डॉ. सुरेश पाण्डेय, डॉ विदुषी शर्मा
प्रेरक वक्ता, सायक्लिस्ट, नेत्र सर्जन
सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा

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