
-सुनील कुमार Sunil Kumar
अभी से कुछ घंटे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच हुई मुलाकात एक बहस में बदलते हुए जिस तरह मीडिया के कैमरों के सामने आई है, और जिस तरह से उसका वीडियो चारों तरफ फैला है, वह हक्का-बक्का करता है। अमेरिकी राष्ट्रपति और अमेरिकी विदेश मंत्री दोनों बैठकर जिस तरह से यूक्रेन के राष्ट्रपति पर दबाव डाल रहे थे, यूक्रेन के राष्ट्रपति को अमेरिका की मनमानी शर्तों को मानने के लिए तैयार करने की कोशिश कर रहे थे, वह भयानक था। अमेरिकी विदेश मंत्री भी लगातार यूक्रेन के राष्ट्रपति को अपमानित करने पर लगे हुए थे। इसके पहले ऐसा कोई नजारा दो देशों के प्रमुख लोगों के बीच खड़ा हुआ हो, ऐसा याद नहीं पड़ता। और खासकर जब किसी दूसरे देश का राष्ट्रपति आया हो तो उस मेजबान दफ्तर के मुखिया को मेहमान के साथ ऐसा बर्ताव कभी भी नहीं करना चाहिए। यह कूटनीति अगर तो छोड़ दें, तो भी यह तो सामान्य शिष्टाचार के भी खिलाफ है। जिस तरह से यूक्रेन के राष्ट्रपति को अपमानित करके वहां से तकरीबन निकाल ही दिया गया, उससे यह पता चलता है कि अमेरिका आज पूरी दुनिया के लिए किस-किस्म का हमलावर तेवर रखता है और किस तरह वह पूरी दुनिया को एकध्रुवीय बनाकर चलना चाहता है, ताकि सब कुछ उसकी मर्जी से हो।
यूक्रेन को नाटो के सदस्य यूरोपीय देशों ने फौजी मदद की थी जिसकी वजह से वह रूस के हमले के सामने खत्म हो जाने के बजाय उसे एक आत्मरक्षा की जंग में तब्दील कर पाया था। और पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पूरी तरह से यूक्रेन के साथ खड़े रहने का वायदा किया था, और ऐसा ही वायदा नाटो के दूसरे यूरोपीय सदस्यों ने भी किया था। यही वजह है कि तीन दिनों में जंग को खत्म कर देने का रूसी राष्ट्रपति पुतिन का दावा तीन बरस बाद भी अभी तक पूरा नहीं हो पाया। लेकिन ट्रम्प ने इस बात को चुनाव के पहले ही एक बहुत बड़ा मुद्दा बनाया था कि वे यूक्रेन की जंग को 24 घंटे में खत्म करवा देंगे, अमेरिका का जो पैसा यूक्रेन को जा रहा है उसको खत्म कर देंगे, और उन्होंने ठीक वही किया है। उन्होंने चुनाव के पहले अमेरिकी जनता के सामने जो वायदा किया था वह उसी को पूरा कर रहे हैं। लेकिन इससे दुनिया का नक्शा जिस तरह से बदल रहा है, वह अभी किसी को समझ नहीं पड़ रहा है। आज हालात यह है कि दुनिया के इतिहास में सबसे लंबे समय से एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी या दुश्मन चले आ रहे रूस और अमेरिका, यूक्रेन जैसे सबसे बड़े मुद्दे पर एक साथ दिख रहे हैं। ट्रम्प सौ कदम आगे जाकर आज रुस का वकील बन बैठा है, और उसे उसके यूक्रेन पर अवैध कब्जे पर मालिकाना हक दिलाने का फैसला लिखने वाले जज भी बन गया है, और जल्लाद भी। और तो और, जो चीन और अमेरिका एक दूसरे के मुकाबले खड़े रहते हैं, वह चीन भी अमेरिका और रूस के साथ इस मामले पर खड़ा हो गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति की दखल से, गुंडागर्दी से यह शांति समझौता किया जाए। दरअसल यह कोई शांति समझौता है नहीं, यह यूक्रेन को रूस के हाथ बेच देने की एक रणनीति है और यूक्रेन की खदानों पर कब्जा करने के लिए जिस बेशर्म अंदाज से अमेरिकी राष्ट्रपति ने धमकी दी है, उसने तो अंतरराष्ट्रीय शिष्टाचार को पूरी तरह से खत्म कर दिया है।
कल की बैठक में भी ट्रम्प ने जेलेंस्की को जिस तरह से यह बार-बार कहा कि वहां की खदानों का आधा हिस्सा अमेरिका के हवाले किया जाए ऐसा तो दुनिया में किसी देश ने किसी देश से नहीं कहा था। फिर जो अमेरिका अपने देश के भीतर लोकतांत्रिक मूल्यों की बड़ी बात करता है जिसने बड़ी सी स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी लगाकर रखी है, वह यूक्रेन की लिबर्टी को, फिलिस्तीन की लिबर्टी को, और दुनिया में जो देश ट्रंप को नापसंद होगा उन तमाम देशों की लिबर्टी को जिस अंदाज में खत्म कर रहा है, बंदूक की नोंक पर, परमाणु बमों की नोंक पर, आर्थिक प्रतिबंधों की नोंक पर जिस तरह से खत्म कर रहा है, उससे ऐसा लगता है कि अमेरिका को अब किसी स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी की जरूरत नहीं है। आज तो खुद अमेरिकी जनता की कोई लिबर्टी देश के भीतर नहीं बची है। राष्ट्रपति ट्रंप का एक गैर सरकारी सलाहकार जो कि निर्वाचित संसद तक नहीं है, वह एलन मस्क अपनी सनक से यह तय कर रहा है कि किस तरह लाखों अमेरिकियों की नौकरी खत्म हो जानी चाहिए, और किस तरह दशकों से अमेरिका की मदद से दुनिया के दूसरे देशों में जिस तरह एड्स के मरीजों को दवाइयां मिल रही हैं, एड्स की जांच हो रही है, उन सबको यूएसएड नाम की संस्था की ग्रांट पूरी तरह खत्म कर दी गई है। एड्स के ऐसे तमाम मरीज के लिए जो मदद जाती थी उसको खत्म कर दिया गया है, आज उन दूसरे मरीजों के लिए रातों-रात कोई दूसरा इंतजाम भी नहीं हो सकता। यह समझ आता है कि अमेरिका ने लंबे समय से चली आ अपनी परंपरागत अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही को पल भर में पहने हुए कपड़े की तरह उतारकर फेंक दिया है।
अभी इस मामले के एक दूसरे सकारात्मक और दिलचस्प पहलू की तरफ देखना चाहिए कि अमेरिकी राष्ट्रपति की ऐसी बदसलूकी के बाद राष्ट्रपति भवन छोडक़र बिना खाना खा निकल गए यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का यूरोप के कई देशों ने, और वहाँ के बड़े-बड़े देशों ने जिस तरह से साथ दिया है, वह काबिले तारीफ है। दोस्तों को किसी कमजोर वक्त पर पटक नहीं दिया जाता है, यह बात यूरोप की यह देश साबित कर रहे हैं। दूसरी तरफ जो लोग अमेरिका से दोस्ती की वकालत करते हैं उनको यह समझना चाहिए कि ट्रंप के बाद भी अगर कोई इसी तरह का सनकी बददिमाग तानाशाह अगर आएगा, तो वह किसी भी पुरानी दोस्ती, किसी भी पुराने गठबंधन की अपनी भागीदारी को पल भर में खत्म करेगा। फिलहाल हमने बात शुरू की थी यूरोप की, तो यूरोप में जर्मनी और फ्रांस जैसे बड़े देशों ने यह कहा है कि वे यूक्रेन के साथ खड़े हुए हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति ने तथ्य की बात कही है, उन्होंने कहा कि हमला करने वाला रुस है, यूक्रेन नहीं। जर्मनी के चांसलर ने कहा है कि यूक्रेन जर्मनी और यूरोप पर भरोसा कर सकता है। जर्मनी के अगले संभावित चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने एक्स पर एक पोस्ट में जेलेंस्की का साथ देते हुए कहा है कि हमें इस युद्ध में कभी भी हमलावर और पीडि़त को लेकर भ्रमित नहीं होना चाहिए। पोलैंड ने यूक्रेन का साथ दिया है वहां के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टास्क करने खुलकर कहा है कि यूक्रेन अकेला नहीं है, उन्होंने सोशल मीडिया पर यह लिखा- प्रिय जेलेंस्की, प्रिय यूक्रेनी दोस्तों, आप अकेले नहीं हैं। ऐसा ही समर्थन चेक गणराज्य ने भी किया है। फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा है कि रूस आक्रामक है, और यूक्रेन के लोग आक्रामकता के शिकार हैं। उन्होंने कहा कि हमें उन लोगों का सम्मान करना चाहिए जो शुरू से संघर्ष करते रहे। नीदरलैंड्स ने कहा है कि यूक्रेन के लिए उनके देश का समर्थन कम नहीं हुआ है और वह रूस द्वारा शुरू की गई आक्रामकता का अंत चाहते हैं। स्पेन के प्रधानमंत्री ने कहा है-यूक्रेन, स्पेन आपके साथ खड़ा हुआ है।
विश्व इतिहास में मवाली किस्म के किसी राष्ट्रपति, चाहे वह अमेरिका का ही राष्ट्रपति क्यों ना हो, उसका नाम सम्मान से दर्ज नहीं होता क्योंकि दुनिया का इतिहास सभ्यता का इतिहास है, और इस सभ्यता को एक हमलावर सभ्यता की तरफ ले जाने वाले लोगों का नाम कालिख से लिखा जाता है। ट्रम्प का नाम विश्व इतिहास में इस तरह लिखा जाएगा जिस तरह इजराइल के प्रधानमंत्री का नाम लिखा जाएगा, जिस तरह से हिटलर का नाम लिखा गया था, जिस तरह से अफ्रीका के कुछ देशों के तानाशाहों का नाम लिखा गया था, उनकी एक लंबी फेहरिस्त है। लेकिन अमेरिका जो कि अपने तथाकथित लोकतांत्रिक मूल्यों और परंपराओं को लेकर लंबे समय से एक अहंकारी की तरह जीता था, आज उसका अहंकार चूर-चूर हो गया है। उसके निर्वाचित राष्ट्रपति ने मानवता के खिलाफ, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के खिलाफ, अमेरिका की अपनी लंबे समय से की गई प्रतिबद्धता के खिलाफ, जिस तरह की हरकत की है वह बहुत भयानक है। हम इस पूरे मामले की जटिलता पर अभी टिप्पणी नहीं कर रहे हैं कि आगे क्या होगा, लेकिन हम यूरोप की तारीफ करना चाहते हैं कि जिस तरह से वह एक कमजोर पड़ते हुए देश, यूक्रेन के साथ खड़ा हुआ है, सच के साथ खड़ा हुआ है, हमलावर रूस के खिलाफ खड़ा हुआ है, और बिना ट्रम्प की परवाह किए हुए ट्रम्प की मनमर्जी के खिलाफ भी यूरोप खड़ा हुआ है, यह काबिले तारीफ बात है। अब दुनिया के सामने एक नए तालमेल का मौका आकर खड़ा हुआ है कि रूस और अमेरिका अगर एक हो रहे हैं अगर वह मिलजुल कर एक नया शक्ति संतुलन बनाना चाहते हैं, तो इस गिरोहबंदी के खिलाफ दुनिया के बाकी देशों को अपना भला सोचना चाहिए। वह भला चीन यूरोप और बाकी देश यह किस तरह से कर सकते हैं यह सोचना अभी आसान नहीं है क्योंकि विश्व इतिहास में ऐसी कोई नौबत पहले आई नहीं थी। लेकिन रूस के साथ अपने रिश्ते मजबूत रखते हुए भी चीन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक बड़ी ताकत की तरह उभरते चल रहा था, और आगे उसका उभरना जारी रहेगा, ऐसा लगता है। यह तस्वीर बहुत ही धुंध भरी हुई है अभी हमको भी समझ नहीं आ रहा है कि आज से साल 2 साल बाद कौन सा देश किसके साथ रहेगा, लेकिन फिलहाल यह बात तो तय है कि एक मवाली के अंदाज में यूक्रेन के राष्ट्रपति की बाँह मरोडक़र वहां की खदानों पर कब्जा करने की ट्रंप की खुली कोशिश को यूक्रेनी राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया है और यह नौबत एक छोटे कमजोर और जंग झेल रहे देश की बहादुरी बताती है। देखते हैं आगे क्या होता है।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)