महू से संविधान-रक्षा की निर्णायक लड़ाई

rahul

-देशबन्धु में संपादकीय 

मध्यप्रदेश के इंदौर के निकट स्थित बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली महू से कांग्रेस ने संविधान की रक्षा की निर्णायक लड़ाई छेड़ दी, जब सोमवार को आयोजित एक विशाल सभा को सम्बोधित करते हुए कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने देश की मौजूदा राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों का व्यापक चित्रण करते हुए चेताया कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार दलितों, आदिवासियों, एवं कमज़ोर वर्गों का हक़ मार रही है। वंचितों के लिये संविधान के महत्व को समझाते हुए राहुल ने बतलाया कि जिस दिन देश का संविधान खत्म हो जायेगा उस दिन इन वर्गों के लिये कुछ भी नहीं बचेगा। वैसे तो कांग्रेस ने सामाजिक न्याय की लड़ाई पिछले कुछ समय से कई-कई मोर्चों पर और अनेक स्वरूपों में छेड़ रखी है, लेकिन महू की सभा में राहुल ने जिस स्पष्टता व व्यापकता से संविधान की अहमियत प्रतिपादित की तथा उस पर छाये संकटों का ब्यौरा दिया, उसके चलते उम्मीद की जा सकती है कि कांग्रेस का संदेश इन वर्गों तक ही नहीं वरन समग्र समाज तथा देश को समझ में आयेगा कि किस प्रकार से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी संविधान को समाप्त कर लोक अधिकारों का सम्पूर्ण खात्मा करना चाहती है।

इस सभा में ‘जय बापू जय भीम जय संविधान’ का जो नारा दिया गया है, वह कोई रातों-रात गढ़ा गया अथवा एकाएक सोची गयी थीम न होकर एक वैचारिक प्रक्रिया से निकली हुई यह सोद्देश्य लड़ाई है। याद हो कि राहुल ने 7 सितम्बर, 2022 को कन्याकुमारी से लगभग चार हजार किलोमीटर का दक्षिण से उत्तर की ओर पैदल मार्च किया था और जिसका समापन कश्मीर के श्रीनगर में 30 जनवरी, 2023 को हुआ था, उसे ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का नाम दिया गया था। वह देश में नफरत के खिलाफ मोहब्बत की यात्रा थी। साम्प्रदायिक सौहार्द्र के लिये निकली उस यात्रा के दौरान अनेक मुद्दों पर राहुल चर्चा करते दिखे जिसमें यह तथ्य सामने आया कि भाजपा एवं उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक खास एजेंडे के तहत देश में ऐसा माहौल बना रही है। एक ओर तो वह हिन्दू-मुस्लिमों को लड़ा रही है तो वहीं वह दूसरी ओर अगड़ों-पिछड़ों के बीच खाई को चौड़ा करने के बड़े षडयंत्र और कुचक्र रच रही है।

जैसे-जैसे यह यात्रा बढ़ी तो लोगों को यह बात स्पष्ट होने लगी कि इसके पीछे का असली खेल देश के सारे संसाधन मुट्ठी भर कारोबारियों को सौंप देने का है। लाभकारी सार्वजनिक उपक्रम दो बड़े व्यवसायियों के हाथों में देने के दुष्परिणाम ये हैं कि देश में गरीबी, बेकारी और बेहाली छाई है। शिक्षा व स्वास्थ्य सहित सारे जनहित के कार्य ठप पड़े हैं और धर्म व जाति के जरिये भाजपा केवल धुव्रीकरण में व्यस्त है। विपक्षी दलों सहित सभी तरह की विरोध व असहमतियों की आवाजों को सरकार दबा रही है। आर्थिक शक्तियों पर आधिपत्य करने के लिये भाजपा व उसकी केन्द्र सरकार राजनीतिक ताकत को अपनी मुट्ठी में ले चुकी है। यह कार्य आसानी से करने के लिये ही उसने सामाजिक ताने-बाने को ध्वस्त कर दिया है। इसलिये जब राहुल गांधी ने उस यात्रा का सीक्वल हाई ब्रीड (पैदल व वाहन के जरिये) के रूप में मणिपुर से 14 जनवरी, 2024 से प्रारम्भ कर दो माह बाद मुम्बई में समाप्त किया, तो उसे ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ नाम दिया गया जो समय की आवश्यकता एवं समय के अनुरूप ही था। सामाजिक सौहार्द्र की लड़ाई को कांग्रेस ने केवल सामाजिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक व आर्थिक न्याय की लड़ाई के रूप में भी बड़ा विस्तार दिया।

लोकसभा के लिये पिछले साल के मध्य में हुए चुनाव में भाजपा ने जो ‘400 पार’ का नारा दिया था उससे एक तरह से संविधान को पहला बड़ा और साफ़ ख़तरा उभरकर आया। वैसे तो पहले से यह दिख रहा था कि भाजपा व संघ की पसंद भारत का संविधान नहीं वरन मध्ययुगीन संहिता मनुस्मृति है। कई मौकों पर वह संविधान को कोसती आई थी। उसके कई नेता तथा चुनावी प्रत्याशी उसे बदलने की मंशा जतला चुके थे। वे यह कहकर वोट मांग रहे थे कि ‘मोदी को 400 सीटें चाहिये क्योंकि संविधान को बदलना है।’ इस बात को कांग्रेस व उसके नेतृत्व में बने प्रतिपक्षी गठबन्धन इंडिया के साथ जनता ने भांप लिया जिसके कारण भाजपा की सीटें इतनी घट गयीं कि मोदी को तेलुगु देसम पार्टी व जनता दल यूनाइटेड के समर्थन से सरकार बनानी पड़ी। भाजपा के मंसूबे ध्वस्त होने का परिणाम यह हुआ; और भाजपा को संविधान की ताकत का एहसास भी हो गया कि उसे संविधान के आगे सिर झुकाना पड़ा।

फिर भी, भाजपा-संघ की संविधान के प्रति वास्तविक श्रद्धा तो कभी थी ही नहीं; जो थी वह अस्थायी व कृत्रिम थी। अवसर आने पर उसकी कलई खुलती गयी। राज्यसभा में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा विपक्षी सदस्यों पर यह कहकर तंज कसना कि, ‘अंबेडकर का नाम लेना फैशन हो गया है… ’, यह बतलाने के लिये काफ़ी था कि भाजपा व संघ संविधान निर्माता का कितना सम्मान करते हैं। दूसरी तरफ मोहन भागवत ने हाल ही में यह बयान दिया था कि “देश को असली आज़ादी 22 जनवरी, 2024 को मिली है।” उनका आशय अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से था। यह बतलाता है कि उनके लिये 1947 में प्राप्त स्वतंत्रता और संविधान दोनों ही अमान्य हैं। वैसे भी दोनों संगठनों के लिये महात्मा गांधी तथा जवाहरलाल नेहरू के अलावा अंबेडकर हमेशा निशाने पर रहे हैं। हाल ही में बेलगावी (कर्नाटक) में आयोजित अपने अधिवेशन में कांग्रेस ने संविधान की रक्षा का जो संघर्ष छेड़ा है, वह महू में और आगे बढ़ता हुआ नज़र आया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह लड़ाई और भी आगे बढ़ेगी और निर्णायक भी होगी।

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