
#सर्वमित्रा_सुरजन
विश्व की भयावह आतंकी घटनाओं की साक्षी बनी तारीखों में अब एक तारीख 17 सितंबर 2024 भी दर्ज हो गई है। लेबनान की राजधानी बेरुत में मंगलवार, 17 सितंबर को सिलसिलेवार पेजर धमाके हुए, जिसमें नौ लोगों की मौत क़रीब 2800 लोगों के घायल होने की खबर है। मृतकों में दो व्यक्ति हिज़्बुल्लाह के दो सांसदों के बेटे हैं। वहीं घायलों में लेबनान में ईरानी राजदूत मुजतबा अमानी भी शामिल हैं। इस हमले में मौतों का आंकड़ा अतीत की आतंकी घटनाओं से भले कम दिखे, लेकिन इसे भयावहतम घटनाओं में इसलिए रखा जा सकता है क्योंकि जिस तरीके से इसमें आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल हुआ है, उस बारे में आम इंसान सोच भी नहीं सकता। 11 सितंबर 2001 को जब न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में सीधे दो-दो हवाई जहाज टकरा दिए गए थे, या 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में धमाके हुए थे, या 2016 में फ्रांस में बैस्टिल डे का जश्न मना रहे लोगों को 19 टन का मालवाहक ट्रक रौंदते हुए चला गया, या 26 नवंबर, 2008 को मुंबई को चार दिनों तक बंधक बना कर आतंकी हमला हुआ, तब भी लोगों को एकबारगी यकीन नहीं आया था कि आतंकवाद का सामना इस तरह से करना पड़ेगा। आतंकवादी इसी रणनीति पर चलते हैं कि कुछ ऐसा करें, जिनसे आम लोग न केवल दहशत में आ जाएं, बल्कि उनका इंसानियत पर से भरोसा ही उठ जाए।
ऊपर उल्लिखित तमाम हमलों में बंदूक, बम, बारुद का इस्तेमाल हुआ है, लेकिन बेरूत में हुआ हमला इन सबसे भयानक इसलिए कहा जा सकता है कि क्योंकि रोजमर्रा में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए बनाए गए पेजर को हैक करके लोगों को मारा गया, घायल किया गया। कुछ बरस पहले स्कूलों में निबंध का एक अहम विषय हुआ करता था, विज्ञान अभिशाप है या वरदान। जिसमें विद्यार्थी अक्सर हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए अणु बम का उल्लेख करके इस निष्कर्ष पर पहुंचते थे कि अगर हिंसा के लिए विज्ञान का इस्तेमाल किया जाए तो वह अभिशाप बन जाता है। मेरा ख्याल है विज्ञान को अभिशाप बताने की जगह इंसान की नीयत पर विचार करने पर जोर दिया जाना चाहिए। ज्ञान और इंसानियत के विकास का गहरा संबंध है। जब मनुष्य गुफाओं और जंगलों में रहता था, तब दो पत्थरों को रगड़कर उसने आग जलाना सीखा और उन्हीं पत्थरों को नुकीला बनाकर शिकार करने के लिए भी इस्तेमाल किया। लेकिन तब यह सवाल करना बेमानी था कि पत्थर वरदान या है अभिशाप। क्योंकि पत्थर ने आग जलाकर या शिकार करके, दोनों तरीकों से इंसान की मदद ही की। अब अगर इंसान उसी पत्थर का इस्तेमाल दूसरे इंसान को मारने के लिए करे, तो इसमें पत्थर पर नहीं, नीयत पर सवाल उठने चाहिए। आदिम काल में जो उपयोगिता पत्थर की थी, अब विज्ञान की है।
इस विज्ञान के कारण आज दुनिया किस तरह मुठ्ठी में समाई हुई है, यह सभी जानते हैं। अमूमन सभी के हाथों में मोबाइल है। मोबाइल से पहले पेजर का इस्तेमाल बहुतायत में होता था। इसके जरिए लिखित या मौखिक संदेश भेजे जाते थे। बेरुत के हमले में इसी पेजर को माध्यम बनाया गया है। दरअसल हिज़्बुल्लाह अपने लड़ाकों को सुरक्षा कारणों से पेजर इस्तेमाल करने के लिए कहता रहा है, क्योंकि मोबाइल के जरिए किसी की लोकेशन का पता करने या मोबाइल हैक करके सारा डेटा चुराने में वक्त नहीं लगता। मोबाइल में विस्फोटक डालकर हत्या भी हो चुकी है। 1996 में हमास नेता याहया अयाश के फोन में 15 ग्राम आरडीएक्स विस्फोटक भरा गया था और जब याहया ने अपने पिता को फोन किया, उसी समय उसमें विस्फोट हो गया था। इस हत्या के पीछे इजरायल का हाथ था। अब एक बार फिर पेजर के जरिए हुए धमाकों के लिए भी इजरायल को ही जिम्मेदार माना जा रहा है, क्योंकि हिज्बुल्लाह लगातार इजरायल की उत्तरी सीमा पर रॉकेट और मिसाइल के हमले कर रहा है। हिज्बुल्लाह ईरान का सहयोगी है और ईरान की इजरायल के साथ दुश्मनी जाहिर है। हालांकि इज़रायल ने अब तक इन हमलों की जिम्मेदारी नहीं ली है। लेकिन पेजर के जरिए विस्फोट करने का काम मोसाद जैसी अत्याधुनिक तकनीकी से लैस एजेंसी ही कर सकती है, ऐसा माना जा रहा है।
पेजर से विस्फोट को अंजाम कैसे दिया गया, इस बारे में अब कई किस्म के अनुमान लगाए जा रहे हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि पेजर को हैक करके उसकी बैटरी को बेहद गर्म कर दिया गया हो, जिस वजह से धमाका हुआ हो, वहीं कुछ का मानना है कि जब पेजर खरीदे गए हों, तभी उनमें किसी तरह की गड़बड़ी कर दी गई हो ताकि बाद में एक साथ धमाका हो। खबर है कि कुछ महीने पहले हिज्बुल्लाह ने ताइवान में बने 5000 पेजर के ऑर्डर दिए थे, जानकार मानते हैं कि मोसाद ने उसी समय इन पेजरों में विस्फोटक डाला होगा। अनुमान है कि इसमें लिथियम ऑयन बैटरी के साथ एक छोटा विस्फोटक छिपाया गया, जिसे बस एक संदेश के जरिये विस्फोट कराया गया।
बड़ी खतरनाक और चिंताजनक बात है कि हमला किस तरह हुआ, इसी का पता नहीं लग पा रहा है और जब तरीका पता न चले तो भविष्य में उसकी रोकथाम के इंतजाम किस तरह होंगे। इससे पहले रेडियो, घड़ी, टीवी, मोबाइल जैसी किसे भी उपकरण से हमला किया गया तो उसमें बनाने के दौरान ही गड़बड़ी कर दी गई। इसके अलावा कंप्यूटर या मोबाइल के सॉफ्टवेयर को हैक करके आक्रमण हुए। लेकिन हार्डवेयर यानी पेजर जैसे उपकरणों की सप्लाई चेन पर अगर हमला हुआ है तो इसका मतलब है कि अब आतंकवाद कुछ और गंभीर स्तर पर पहुंच गया है। इजरायल इस हमले की जिम्मेदारी भले न ले, लेकिन दुनिया की तमाम खुफिया एजेंसियां और सरकारें जानती हैं कि मोसाद किस तरह आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करता है। हाल ही में हमास के चीफ इस्माइल हानिया की ईरान की राजधानी तेहरान में हत्या हुई थी। तेहरान से 15 सौ किमी दूर इजरायल के एक अनजान ठिकाने से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और सेटेलाइट इमेज के जरिए मोसाद ने इस हत्या को अंजाम दिया था।
इजरायल किसी भी तरह हमास के खात्मे में लगा है और इसके लिए अपनी हर हरकत को जायज ठहराता है। गज़ा में जो नरसंहार उसने किया है, वो अकल्पनीय है। अफसोस की बात यह है कि विश्व समुदाय इस अमानवीयता को चुपचाप देख रहा है। वैश्विक पटल पर कोई ऐसा नेता नहीं दिख रहा जो क्षुद्र स्वार्थ से ऊपर उठकर केवल इंसानियत और शांति की बात करे। नोबेल शांति पुरस्कार के आकांक्षी घर से लेकर बाहर तक बहुतेरे हैं, लेकिन उसके लिए कोई प्रयास करता नहीं दिख रहा। इजरायल के ही पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल किस तरह राजनैतिक विरोधियों या सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों पर किया गया, यह सब जानते हैं। पेगासस तो मोबाइल को हैक करता है, अब इजरायल ही शायद खुलासा करेगा कि पेजर को हैक कैसे किया गया। गंभीर सवाल यह है कि अगर यह तकनीक दूसरे आतंकी समूहों के हाथ भी लग गई, तब क्या विनाश के सिलसिले को रोकना संभव हो सकेगा।
(देवेंद्र सुरजन की वाल से साभार)