खेल जुबां का…!

"कितना आसान होता हैं ना रिश्ते बनाना, लेकिन उस से कहीं ज्यादा मुश्किल होता हैं उस रिश्ते को निभाना।" माना कि ताली दोनो हाथों से बजती हैं। लेकिन शुरुआत किसी एक को ही करनी होती हैं।

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प्रतीकात्मक फोटो साभार अखिलेश कुमार

-कृतिका शर्मा-

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कृतिका शर्मा

आज का यह लेख हम मे से उन सभी लोगों के लिए है, जो बोलने से पहले एक मिनट सोचते नहींं। माना कि, सबकी अपनी निजी ज़िंदगी है, अपने निजी मामले है। आज के समय में ना तो कोई किसी को इतना हक देता, ना ही किसी को पसंद होता की उसके निजी मामले में कोई भी दखल अन्दाज़ी करे। लेकिन क्या जब हम किसी बड़े या छोटे से कुछ भी बोलते है तो ज़रा सा भी नहीं सोचना, सही हैं?
लोग कहते हैं कि इंसान को मैच्योर होना चाहिए। पर मैच्योर होने का मतलब ये नहीं कि हमें क्या बोलना है, कब बोलना हैं, ये समझ आये। बल्कि मैच्योर का मतलब होता हैं कि हमें ये भी समझ आये कि हमें कब और क्या नहीं बोलना हैं।
इंसान गुस्से या अपने घमंड मे किसी से भी चाहे वह छोटा हो या बड़ा बिना सोचे समझे कुछ भी बोल जाता हैं। ज़रा सोचिये, जब कोई आप से कोई ऊँची आवाज़ मे बोल जाए, या किसी के भी सामने अपमानजनक शब्द कह दे, तो आप को कितना बुरा लगता हैं।। तो क्या आपको भी कुछ कहने से पहले एक बार सोचना नहीं चाहिए?अरे! किस बात का गुस्सा और किस बात का घमंड?अगर गुस्सा हैं ही तो तो जिस वजह से गुस्सा हैं उस बात को हल करो। और रही बात घमंड की, तो वह तो ज्यादा देर किसी का नहीं टिका।
“कितना आसान होता हैं ना रिश्ते बनाना, लेकिन उस से कहीं ज्यादा मुश्किल होता हैं उस रिश्ते को निभाना।” माना कि ताली दोनो हाथों से बजती हैं। लेकिन शुरुआत किसी एक को ही करनी होती हैं। एक लाइन है– give respect then take respect…
अनुभवी लोगों का कहना हैं कि इंसान की सूरत से कहीं ज्यादा उसकी सीरत को ध्यान मे रखा जाता हैं। इंसान अमर नहीं होता, उसकी इंसानियत अमर रहती हैं। किसी महफ़िल मे इंसान चर्चित नही होता,बाल्कि उसके गुण और व्यवहार चर्चित होते हैं।
अब यह निर्भर करता हैं आप पर, कि आप अपनी सूरत के साथ साथ अपनी सीरत को भी संवारना चाहते हैं या नहीं,
यह आपको सोचना हैं कि आप अपने बाद अपनी इंसानियत को लोगों के बीच ज़िन्दा रखना चाहते है या नहीं। यह आप विचारें कि हर जगह आप अपने गुण और व्यवहार को महफ़िल मे चर्चा का विषय बनना चाहते हैं या फिर सिर्फ इस दुनिया मे लोगों की तरह भीड़ मे कहीं खोना चाहते हैं।
माना की आज के समय में किसी के पास इतना वक़्त नहीं, कि कोई आपको रोज़ याद करे। लेकिन कई ऐसे मौके होते हैं जब इंसान अपनों को या जिन से ज्यादा करीब होता हैं उनको याद ज़रूर रखता हैं। ये पूरा खेल बस एक जुबां का हैं, एक नयी शुरुआत का हैं। वो कहते हैं ना सीखने का कभी कोई समय नहीं होता। लेकिन मौका मिले तो कुछ नया और अच्छा सिख लेना चाहिए।

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