
ग़ज़ल
शकूर अनवर
कैसे जीते हैं लोग नफ़रत में।
अपनी तो कट गई मुहब्बत में।।
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आदमी आदमी की ज़द पर* है।
इतनी शिद्दत* है क्यूॅं अदावत* में।।
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उसकी बातें हैं ज़ह्र आलूदा*।
क्या ये शामिल है उसकी आदत में।।
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ये मियाॅं कारोबार ए उल्फ़त है।
बस ख़सारा* है इस तिजारत*में।।
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अपना अंदाज़ है फ़क़ीरी का।
चैन मिलता नहीं है दौलत में।।
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हम अभी मैकदे में ठहरेंगे।
जिनको जाना है जाये जन्नत में।।
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फूल कोई नहीं है तुम जैसा।
तुम बनाये गये हो फ़ुर्सत में।।
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इश्क़ तो जान ले के छोड़ेगा।
पड़ गये हम भी किस मुसीबत में।।
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जो मिटाने पे तुल गया “अनवर”।
मिट गये हम उसी की चाहत में।।
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ज़द पर* निशाने पर
शिद्दत*तीव्रता
अदावत*दुश्मनी
ज़ह्र आलूदा* ज़हरीली
ख़सारा* नुक़सान घाटा
तिजारत* व्यापार
शकूर अनवर
9460851271