वाकई धरती के लाल और जमीन से जुड़े थे नेताजी

हमारी उनसे कोई जान पहचान नहीं थी और न ही पिता जी की। था तो सिर्फ इटावावासी होने का टैग।  वहां पहुंच कर संतरी ने पूछा तो बताया कि नेताजी से मिलने आए हैं और इटावा से हैं। इटावा शब्द पर मैंने खास जोर दिया। इटावा सुनकर संतरी बोला, आइए और एक कमरा दिखाते हुए बोला, वहां बैठ जाइए, वहां सब इटावा के ही लोग थे। पता चला कि उनके यहां इटावावासियों के लिए विशेष व्यवस्था थी।

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-संजीव कुमार-

संजीव कुमार

धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव का निधन हम सब इटावासियों के लिए अपूर्णीय क्षति है। वे कहीं भी रहे हों, किस भी पद पर हों, इटावा हमेशा उनके दिल में रहा है। बहुत कम ऐसे राजनेता हैं जिनका जमीन से इस हद तक जुड़ाव रहा हो। उनकी खासियत थी कि वे एक बार जिनसे मिल लेते थे, उसे उसके नाम से याद रखते थे और भीड़ में भी उसे नाम से आवाज देकर बुला लेते थे, ऐसा न सिर्फ उनके सैफई के बचपन के मित्रों के साथ, बल्कि इटावा के हर उस नागरिक के साथ था जिनसे मुलायम कभी मिले हों।

मुझे भी एक बार नेताजी से मिलने का सौभाग्य मिला, वो मुलाकात मेरे दिल में हमेशा के लिए अमिट छाप छोड़ गई।
यह वर्ष 2001 के उत्तरार्ध की बात है, हाल ही में मैंने भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की थी और नौकरी तलाशने की जद्दोजहद में था। तभी पता चला कि सहारा वाले एक न्यूज चैनल ला रहे हैं। उस समय हालात ये थे कि अगर आपका जुगाड़ हो तो नौकरी आसानी से मिल जाया करती थी। मैं भी जुगाड़ में लग गया। लेकिन ऐसा कोई नहीं मिला, जो मेरी सिफारिश न्यूज चैनल के लिए कर दे। तब पापा ने कहा कि मुलायम सिंह यादव से बात कर लेते हैं, सुना है कि वे इटावा वालों की मांग पर खास गौर करते हैं। मुझे भी लगा कि अगर वे सिफारिश कर देंगे तो कोई दिक्कत नहीं आनी है।

उस समय मुलायम सिंह यादव पूर्व रक्षामंत्री हो चुके थे और दिल्ली के कृष्णमेनन मार्ग पर उनका बंगला था। तय हुआ कि उनसे उनके बंगले पर संसद निकलने से पहले सुबह-सुबह मिला जाए। तो हम और पापा दोनों एक बायोडाटा लेकर उनसे मिलने बंगले पर पहुंच गए। हमारी उनसे कोई जान पहचान नहीं थी और न ही पिता जी की। था तो सिर्फ इटावावासी होने का टैग।  वहां पहुंच कर संतरी ने पूछा तो बताया कि नेताजी से मिलने आए हैं और इटावा से हैं। इटावा शब्द पर मैंने खास जोर दिया। इटावा सुनकर संतरी बोला, आइए और एक कमरा दिखाते हुए बोला, वहां बैठ जाइए, वहां सब इटावा के ही लोग थे। पता चला कि उनके यहां इटावावासियों के लिए विशेष व्यवस्था थी। उस कमरे में एसी चल रहा था। वहां मौजूद कर्मचारी ने हम लोगों को चाय-बिस्किट दिया। करीब आधे घंटे इंतजार करने के बाद हम लोगों का नम्बर आ गया। वहां पहंुचने की जल्दबाजी मेें पापा, एक व्यक्ति से टकरा गए, देखा तो अखिलेश थे, उनने कहा कि जल्दी जाइए, पिताजी को निकलना है। उस समय तक अखिलेश का राजनीति में पदार्पण नहीं हुआ था।
कमरे मेें पहुंचे तो देखा कि बड़ा सा हॉल है, जो करीने से सजा हुआ था। सामने मुलायम सिंह बैठे थे और उसके पास उनके सचिव थे जो कि फाइल वगैरह लिए हुए थे। नेताजी को देखकर मैंने उनके पैर छुए और पापा ने राम-राम कहा। नेताजी बोले, कैसे आना हुआ, बताया कि इटावा से आए हैं। फिर पापा बोले, साहब, लड़के ने आईआईएमसी, जेएनयू कैम्पस से कोर्स किया है, सहारा का चैनल चालू होने वाला है, अगर आप थोड़ी सिफारिश कर दें तो बच्चा नौकरी पर लग जइए । पापा की बात खत्म होते-होते मैंने अपना बायोडाटा उनकी ओर बढ़ा दिया। मुलायम सिंह अपनी देहाती भाषा में बोले, अभी शुरू नहीं हो रहा है, उसमें टैम है, हवाई जहाज (सहारा एयरलाइंस) में कहो तो बोल दूं। इतना सुनकर मैंने मना कर दिया, मैंने कहा कि सर, नौकरी तो टीवी में ही करनी है, हवाई जहाज में नहीं। कोई बात नहीं, बाद में आ जाऊंगा। इतना कहकर हम लोग बाहर आ गए। बाद में पता चला कि सहारा टीवी चैनल का मामला करीब दो साल के लिए लटक गया। बाहर आकर मैंने मन ही मन सोचा कि ऐसा सरल हदय का नेता और सरल व्यक्तित्व नेताजी मुलायम सिंह का ही हो सकता है। कोई दूसरा नेता मुलायम नहीं बन सकता।
(लेखक मुलायम सिंह यादव के गृह जिले इटावा निवासी स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं)
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