
-भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत अभियान
-देवेंद्र यादव-

2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, जिस प्रकार से एक के बाद एक कांग्रेस और विपक्ष के नेताओं को भारतीय जनता पार्टी में शामिल करने का दौर शुरू हुआ उसने देश के राजनीतिक पंडित, राजनीतिक विश्लेषक और भारतीय जनता पार्टी के उन तमाम नेताओं को नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीतिक रणनीति पर सोचने को विवश कर दिया। यह सभी अभी तक भी नहीं समझ पाए की मोदी और शाह की इसके पीछे राजनीतिक रणनीति क्या है। 2014 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाई और कांग्रेस की शर्मनाक हार हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा की बंपर जीत पर इतने खुश नजर आए और जीत की खुशी में वह मंच से देश में कांग्रेस मुक्त भारत का ऐलान करने लगे। लेकिन जब एक-एक कर कांग्रेस के बड़े नेता भाजपा में शामिल होकर सत्ता में बड़े पद पाने लगे तो, राजनीतिक गलियारों में चर्चा होने लगी कि भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत चाहती है या फिर कांग्रेस युक्त भाजपा चाहती है। भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं को राजनीतिक रूप से हाशिए पर धकेला जा रहा था वहीं कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए नेताओं को राज्यों का मुख्यमंत्री और केंद्र की सत्ता में मंत्री बनाया जा रहा था।
कांग्रेस मुक्त भारत करने के लिए शायद मोदी और शाह की जोड़ी दो स्तर पर काम कर रही थी। एक कांग्रेस के बड़े नेताओं को भाजपा में शामिल करना और दूसरा जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को बाहर किया वहां के क्षेत्रीय दलों को अघोषित रूप से तब तक ताकतवर रखा जाए जब तक की कांग्रेस उन राज्यों में पूरी तरह से खत्म ना हो जाए। उत्तर प्रदेश, ओड़ीशा, नॉर्थ ईस्ट के राज्य और दिल्ली, पश्चिम बंगाल इसके बड़े उदाहरण हैं। इन राज्यों में कांग्रेस लगभग पूरी तरह से साफ हो चुकी है। दिल्ली और ओडिशा में क्षेत्रीय दलों को सहारा देकर भारतीय जनता पार्टी ने पूरी तरह से कांग्रेस को खत्म किया और उसके बाद इन दोनों ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई। जबकि दिल्ली और ओडिशा में आम आदमी पार्टी और बीजू जनता दल ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर अपनी सरकार बनाई थी। अब दोनों ही दल अपने-अपने राज्यों की सत्ता से बाहर हैं, और दोनों ही राज्यों में कांग्रेस लगभग खत्म हो चुकी है। अब भारतीय जनता पार्टी की नजर पश्चिम बंगाल और बिहार पर है। इन दोनों राज्यों में भी कांग्रेस की स्थिति बेहतर नहीं है। बिहार मे कांग्रेस की हालत कमजोर है लेकिन ज्यादा खराब नहीं है। मगर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस लगभग खत्म है। बिहार और पश्चिम बंगाल की सत्ता से भी कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों ने ही बाहर किया था। कांग्रेस से निकलकर तृणमूल कांग्रेस का गठन कर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी लंबे समय से सत्ता में हैं। भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीति कारों की नजर अब पश्चिम बंगाल पर है। भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों की रणनीति से लगता है कि उनको बड़ा राजनीतिक खतरा क्षेत्रीय दलों से नहीं है बल्कि बड़ा खतरा कांग्रेस से है। जबकि क्षेत्रीय दल के नेता इस गफलत में है कि वह अपने राज्यों में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों को चुनाव मैदान में हरा सकते हैं। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली और ओडिशा में आम आदमी पार्टी और बीजू जनता दल के नेताओं की गलतफहमी को दूर किया और सरकार बनाई।
दिल्ली और ओडिशा में भले ही जीत भारतीय जनता पार्टी को मिली और उसने सरकार बनाई मगर दोनों ही राज्यों में भाजपा की जीत ने यह बता दिया कि भाजपा से टक्कर लेकर यदि कोई पार्टी जीत सकती है तो वह पार्टी है कांग्रेस। भाजपा को कांग्रेस ही हरा सकती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)