
-देवेंद्र यादव-

विपक्ष की बीमारी एक है मगर इलाज के लिए वे एक नहीं हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम से एक दिन पहले कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर जबरदस्त हमला किया और कहा कि अचानक महाराष्ट्र और हिमाचल में मतदाताओं की संख्या कैसे बढ़ गई। राहुल गांधी ने शुक्रवार 7 फरवरी को एनसीपी शरद पवार की नेता सुप्रिया और शिवसेना उद्धव ठाकरे के नेता संजय राउत के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग पर मतदाता सूचि में हेर फेर करने का आरोप लगाया।
सवाल यह है कि जब विपक्ष की बीमारी एक है तो फिर बीमारी का इलाज एक क्यों नहीं है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल वोटर लिस्ट में धांधलीकर कर भाजपा को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा रहे हैं। जब विपक्ष की बीमारी एक है तो एकजुट होकर विपक्ष के नेता बीमारी का स्थाई इलाज क्यों नहीं करते दिखाई दे रहे हैं। क्यों अलग-अलग रहकर बीमारी का केवल बखान कर रहे हैं, इलाज नहीं कर रहे हैं।
हरियाणा चुनाव की हार के बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि कांग्रेस देशभर में ईवीएम मशीन हटाओ बैलट पेपर से चुनाव कराओ अभियान चलाएगी। तब मैंने अपने ब्लॉग में लिखा था कि देश में अब चुनाव ईवीएम मशीनों से हो या बैलट पेपर से यदि विपक्ष ने मतदाता सूचियों पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया तो विपक्ष के लिए भाजपा को हराना मुश्किल होगा। 12 दिसंबर को लिखा था कि कांग्रेस को अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना होगा और मतदाता सूचियो पर गंभीरता से ध्यान देना होगा। कांग्रेस को घर-घर जाकर देखना होगा कि कितने लोगों के नए नाम जुड़े और कितनों के कटे हैं।
राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा तो किया है मगर उन्हें अपनी पार्टी के नेताओं को भी जनता के बीच मतदाता सूचियों के साथ खड़ा करना चाहिए जो यह देखें की घर में कितने मतदाता है, कितने नए मतदाता हैं। उनका नाम जुड़वाएं और मतदाता सूची से कटे नाम को वापस जुड़वाएं।
कांग्रेस के नेता इस महत्वपूर्ण काम को या तो चुनाव आयोग के भरोसे छोड़ देते हैं या अपने कार्यकर्ताओं के भरोसे। कांग्रेस के नेता स्वयं इस काम के लिए कभी सक्रिय नहीं रहते हैं। यही वजह है कि कांग्रेस का मतदाता घट रहा है और भाजपा का मतदाता बढ रहा है। कांग्रेस इसके लिए विशेष अभियान क्यों नहीं चलाती है। लगता है कांग्रेस इस पर तो गंभीरता से ध्यान ही नहीं देती है कि उसे मतदाता सूचियो में अपने पारंपरिक मतदाताओं के नाम जुड़वाने हैं। जब मतदाता सूचियों में नाम जुड़वाने का चुनाव आयोग का अभियान चलता है तब कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता सक्रिय नजर नहीं आते हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता घर-घर जाकर अपने लोगों के नाम जुड़वाते है।
कांग्रेस का पारंपरिक मतदाता कांग्रेस को छोड़कर कहीं गया नहीं है बल्कि कांग्रेस के नेताओं की उदासी के कारण कांग्रेस का मतदाता बड़ी संख्या में मतदाता सूचियो से गायब हो गया है। इस पर कांग्रेस ने ध्यान ही नहीं दिया और जब सब लुट गया तब कांग्रेस को याद आ रहा है कि चुनाव आयोग मतदाता सूचियां में हेर फेर कर भाजपा को फायदा पहुंचा रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)
कांग्रेस के रणनीतिकार घिसे पिटे नेता हैं जो कभी लोक सभा का क्या पंचायत का चुनाव नहीं लड़ा है, यह एअर कंडीशन आफिस में बैठकर रीति नीति बनाते हैं, कांग्रेस के जमीनी स्तर के कार्यकर्ता निराश हैं, यह जनता के बीच जाते नहीं,हाई कमांड इनको घास डालता नहीं,तो फिर कांग्रेस की दिल्ली जैसी हालत, देश के अन्य राज्यों में होगी