
-देवेंद्र यादव-

क्या यह मान लिया जाए कि कांग्रेस के राजनीतिक रणनीतिकार चुनाव में कांग्रेस की जीत के लिए रणनीति बनाने के लिए सक्षम नहीं है। यह जरूरी है कि ये रणनीतिकार कांग्रेस की शर्मनाक हार के बाद बहाने बनाने में सक्षम हैं। इसके लिए कांग्रेस के रणनीतिकार चुनाव की घोषणा होने से पहले ही यह रणनीति बनाने में जुट जाते हैं कि कांग्रेस हारी तो हार के लिए बहाना क्या बनाएंगे।
इसका ताजा नजारा दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक हार के बाद देखने को मिला। कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार मीडिया से बातचीत और सार्वजनिक रूप से यह कहते हुए सुनाई दे रहे हैं कि हमने आम आदमी पार्टी को दिल्ली की सत्ता से बाहर कर दिया। सवाल तो यह है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने उन नेताओं को भी मैदान में उतारा था जो कांग्रेस के लिए चुनावी रणनीति बना रहे थे। यदि एक नेता को छोड़ दे तो उनमें से तीन नेता ऐसे हैं जिनके 10000 वोट भी नहीं आए। अब यह नेता बता रहे हैं कि हमारी वजह से आम आदमी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। यदि कांग्रेस इन नेताओं की जगह कांग्रेस के साधारण कार्यकर्ता को भी प्रत्याशी बनाती तो वह कार्यकर्ता इन नेताओं से अधिक वोट प्राप्त करता। क्या इन नेताओं की राजनीतिक औकात इतनी ही है इसे राहुल गांधी को समझना होगा। आम आदमी पार्टी के दिल्ली की सत्ता से बाहर होने पर जश्न नहीं बल्कि मंथन करना होगा क्योंकि देश में एक अकेली आम आदमी पार्टी ही नहीं है जो कांग्रेस को लगातार नुकसान पहुंचा रही है। इसके अलावा भी अनेक राजनीतिक दल है जिनके कारण कांग्रेस उन राज्यों की सत्ता से बाहर हुई और अभी तक उन राज्यों में कांग्रेस को सत्ता प्राप्त नहीं हुई। कांग्रेस किस-किस दल को अपना सब कुछ लूटा कर सत्ता से बाहर रहकर अपने सबसे बड़े राजनीतिक दुश्मन भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनवाती रहेगी। कांग्रेस स्वयं जीतने के लिए कब रणनीति बनाएगी। यह कांग्रेस हाई कमान और राहुल गांधी को समझना होगा। दिल्ली चुनाव के परिणाम राहुल गांधी के लिए आत्म चिंतन करने के हैं, क्योंकि कांग्रेस को उम्मीद थी कि उसे दलित और मुसलमानों का बड़ी संख्या में वोट मिलेगा। लंबे समय से कांग्रेस अपने अनुसूचित जाति विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश लिलोठिया की रणनीति पर विश्वास कर रही थी। लेकिन दिल्ली में कांग्रेस को दलितों का मत नहीं मिला। यदि दलितों का मत मिलता तो राजेश लिलोठिया स्वयं सीमापुरी से चुनाव नहीं हारते। उन्हें जितने मत मिले उससे लगता है कि दलितों ने भी कांग्रेस के दलित नेता को वोट नहीं दिया। कांग्रेस ऐसे नेता को इतने बड़े पद पर रख कर उसके अभियान पर इतना भरोसा क्यों कर रही है। जो व्यक्ति स्वयं चुनाव नहीं जीत सकता वह कांग्रेस को देशभर में दलितों का वोट कैसे दिलवा सकता है।
कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग ने संविधान रक्षक सम्मेलन करवाए। नतीजा क्या निकला। दिल्ली में स्वयं कांग्रेस का सबसे बड़ा संविधान रक्षक राजेश लिलोठिया बुरी तरह से चुनाव हार गए।
दिल्ली चुनाव में कांग्रेस की स्थिति क्या होगी इसकी झलक उस समय देखने को मिल गई थी जब दिल्ली चुनाव के लिए कांग्रेस ने एक सोंग लॉन्च किया था। तब कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता चुनावी जीत पर सीटियां बजाकर ठुमके लगा रहे थे। इसीलिए सवाल उठता है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों के पास कांग्रेस को जीत दिलवाने के लिए दिमाग नहीं है। दिमाग है कांग्रेस की हार के बाद बहाने क्या बनाने हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)