प्रदेश कांग्रेस: मनमर्जी से जब चाहे तब नियुक्तियां!

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फोटो सोशल मीडिया
राजस्थान में पहली बार देखा गया जब प्रदेश कांग्रेस ने लगभग 192 पदाधिकारी नियुक्त किए। यह तो वह पदाधिकारी थे जिनके नाम पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़गे ने मोहर लगाई थी। मगर इसके बाद राजस्थान कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री सुखविंदर सिंह रंधावा ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को दरकिनार करते हुए अपने हस्ताक्षर से दर्जनों प्रदेश पदाधिकारियों की नियुक्ति कर दी। रंधावा द्वारा नियुक्त किए पदाधिकारी अभी भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठकों में भाग लेते हैं।

-देवेंद्र यादव-

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देवेन्द्र यादव

कांग्रेस हाई कमान के निर्देशों का प्रभाव लंबे इंतजार के बाद 3 मार्च सोमवार के दिन राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक में नजर आया है। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने प्रदेश मुख्यालय जयपुर में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सभी पदाधिकारियों की महत्वपूर्ण बैठक आहूत की। इस बैठक में प्रदेश के सभी जिलों में जिला प्रभारी नियुक्त किए और निर्देश दिया कि वह अपने जिलों में जाकर जिला कांग्रेस कमेटी की बैठक आयोजित करें और बैठक में उपस्थित सभी जिला पदाधिकारियों की उपस्थिति भी लें ताकि पता चले की कौन-कौन पदाधिकारी बैठक में उपस्थित हुआ और वह सक्रिय है या नहीं है। मैंने 24 फरवरी को ब्लॉग में लिखा था कि राजस्थान में अकेले गोविंद सिंह डोडासरा नजर आते हैं। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारी नजर क्यों नहीं आते। ब्लॉक, जिला और प्रदेश के प्रभारी कहां हैं। वह अपने प्रभार वाले क्षेत्रों में नहीं नजर आते।
विगत दिनों कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राष्ट्रीय पदाधिकारियों और प्रदेश अध्यक्षों की महत्वपूर्ण बैठक ली थी। उन्होंने बैठक में प्रदेश अध्यक्षों को निर्देश दिए थे कि वह अपने-अपने प्रदेशों में बूथ कमेटी से लेकर ब्लॉक, जिला और प्रदेश कमेटियों का गठन करें। वे पदाधिकारियों को सक्रिय कर कांग्रेस को मजबूत करें। लेकिन लंबा समय गुजर जाने के बावजूद राजस्थान में कांग्रेस की ब्लॉक, जिला कमेटियों का गठन तो हुआ मगर कमेटियों का गठन हकीकत में हुआ या फिर केवल कागजी खानापूर्ति की गई इसकी ठीक से मॉनिटरिंग नहीं हुई। क्योंकि ना तो जिले के प्रभारी ब्लॉक और प्रदेश प्रभारी जिलों में पहुंचे।
सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के प्रदेश के मुखिया पार्टी हाई कमान के निर्देशों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं या फिर पार्टी हाई कमान के आदेशों को इग्नोर करते हुए अपने मन माने ढंग से पार्टी को चला रहे हैं। इसका उदाहरण राजस्थान है। राजस्थान में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के द्वारा जंबो प्रदेश कार्यकारिणी का गठन किया। राजस्थान में पहली बार देखा गया जब प्रदेश कांग्रेस ने लगभग 192 पदाधिकारी नियुक्त किए। यह तो वह पदाधिकारी थे जिनके नाम पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़गे ने मोहर लगाई थी। मगर इसके बाद राजस्थान कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री सुखविंदर सिंह रंधावा ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को दरकिनार करते हुए अपने हस्ताक्षर से दर्जनों प्रदेश पदाधिकारियों की नियुक्ति कर दी। रंधावा द्वारा नियुक्त किए पदाधिकारी अभी भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठकों में भाग लेते हैं। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस का प्रदेश प्रभारी किसी भी व्यक्ति की अपने मन मर्जी से प्रदेश पदाधिकारी के रूप में जब चाहे नियु​िक्त कर सकता है। यदि ऐसा है तो कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को उनके उस सवाल का जवाब मिल गया होगा जो सवाल वह अक्सर उठाते हैं कि कांग्रेस के भीतर आरएसएस और भाजपा की विचारधारा रखने वाले लोगों का प्रवेश हो गया है। इसकी दो वजह हैं। एक वजह यह है कि राजस्थान में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी ने कांग्रेस कमेटी के गठन के बाद अपनी मनमर्जी से अपने दस्तखत से प्रदेश पदाधिकारी की नियुक्ति की। दूसरी वजह यह है कि जब से कांग्रेस के भीतर प्रदेश और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में जंबो कार्यकारिणी का गठन होने लगा है तब से कांग्रेस मजबूत होने की जगह कमजोर हो रही है। इसका कारण कांग्रेस के रणनीतिकारों ने यह जानने की कोशिश ही नहीं की कि जिनका प्रदेश और राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रवेश हो रहा है वह कांग्रेसी है भी या नहीं या उनकी विचारधारा और पारिवारिक पृष्ठभूमि कांग्रेस की है या नहीं। जिनकी हैसियत ब्लॉक स्तर की भी नहीं थी उन्हें प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर पद देकर नवाजा गया इसको भी जानने की कोशिश नहीं की गई।
जब कांग्रेस के भीतर प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कम पदाधिकारी होते थे तब कांग्रेस मजबूत थी। लेकिन अब पदाधिकारी की संख्या बढाई है तब से कांग्रेस अधिक कमजोर नजर आ रही है।
कांग्रेस हाई कमान को प्रदेश और राष्ट्रीय कार्यकारिणी को लेकर पुनर्विचार और मंथन कर इसके स्वरूप को पहले की तरह सीमित करना होगा और कांग्रेस विचारधारा के जन्मजात कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर पद देने होंगे। जो अभी नजर नहीं आ रहा है, और शायद यही वजह है कि कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है क्योंकि प्रदेश में बैठे मुखिया कांग्रेस को अपने मन मुताबिक चला रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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