
कांग्रेस का कार्यकर्ता अभी भी कुंठित है क्योंकि उन्हें आशा की किरण दिखाई नहीं दे रही है। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस हाई कमान को जिस रास्ते पर चलना होता है और जो रास्ता तय हो जाता है उस रास्ते से अचानक भटक जाते हैं। फिर कांग्रेस के स्वयंभू नेता हाई कमान को सही रास्ते से भटका देते हैं जिसकी मिसाल राजस्थान में देखी गई। प्रोग्राम होना था प्रदेश भर के कांग्रेस के पोलिंग एजेंटो, ब्लॉक, जिला के कार्यकर्ताओं से मिलने का लेकिन प्रोग्राम हुआ संविधान बचाओ सम्मेलन का।
-देवेंद्र यादव-

राहुल गांधी ने अपने हाल ही के रणथंबोर दौरे के दरमियान कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष मीना से पूछा था कि राजस्थान में कांग्रेस का बडा नेता कौन हैं। तब मैंने अपने ब्लाग में लिखा था कि राहुल गांधी यह सवाल राजस्थान में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से पूछे तो बेहतर होगा। इससे राहुल गांधी को पता चलेगा कि राजस्थान में कांग्रेस कितनी मजबूत है। राहुल गांधी के 28 अप्रैल को राजस्थान के दौरे पर आने और कांग्रेस के ब्लॉक जिला और प्रदेश स्तर के कार्यकर्ताओं और नेताओं से बात करने की सूचना थी। मगर राहुल गांधी तो नहीं आए उनकी जगह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने जयपुर में संविधान बचाओ सम्मेलन को संबोधित किया। लेकिन उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मुलाकात नहीं की।
खबर तो यह थी कि मल्लिकार्जुन खरगे राजस्थान में प्रदेश भर के पार्टी के पोलिंग एजेंटो से मिलेंगे। लेकिन पोलिंग एजेंट का प्रोग्राम संविधान बचाओ सम्मेलन में क्यों तब्दील हो गया यह सवाल खड़ा होता है। इसी से पता चलता है कि राजस्थान में कांग्रेस केवल कागजों में चल रही है। राहुल गांधी ने जो सवाल सवाई माधोपुर जिले के ब्लॉक अध्यक्ष मीना से पूछा था इसका भी संविधान बचाओ सम्मेलन से राहुल गांधी को अनुमान लग गया होगा। सम्मेलन के मंच पर राजस्थान के वह तमाम नेता मौजूद थे जो अपने आप को बड़ा नेता मानते हैं और इसी भ्रम में राहुल गांधी सहित कांग्रेस हाई कमान भ्रम में रहकर राजस्थान कांग्रेस के भीतर नई लीडरशिप डेवलप नहीं कर पाती है। दरअसल, राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की मौजूदगी में मंच के सामने कार्यकर्ताओं की जितनी तादाद नजर आनी चाहिए थी वह भीड़ दिखाई नहीं दी, जबकि राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी में सैकड़ो की संख्या में पदाधिकारी हैं। कमोबेश जिलों में भी यही आलम है। इसके बावजूद संविधान बचाओ सम्मेलन में नेता तो नजर आए मगर कांग्रेस का आम कार्यकर्ता, कांग्रेस का पारंपरिक मतदाता और कांग्रेस की विचारधारा रखने वाले लोगों का अभाव नजर आया। बड़ी बात तो यह है कि राजस्थान कांग्रेस के भीतर सत्ता हो या संगठन लंबे समय से पिछड़ी जाति के नेता ही बड़े पदों पर रहते आए हैं। राजस्थान में बड़े नेता भी इसी समुदाय से हैं। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ का अभियान भी इन्हीं समुदाय के हक और उनकी रक्षा के लिए चला रहे हैं। मगर राजस्थान में बड़े-बड़े नेता होने के बाद भी जितनी भीड़ नजर आनी चाहिए थी वह दिखाई नहीं दी। खरगे ने बिहार के बक्सर में हुए अपने संविधान बचाओ सम्मेलन का हवाला दिया और कहा कि बक्सर में गर्मी अधिक थी इसलिए लोग पेड़ों के नीचे खड़े हुए थे। लेकिन राजस्थान में तो बिहार से कम गर्मी है शायद यह खरगे का राजस्थान कांग्रेस के नेताओं पर व्यंग था। खरगे भी समझ रहे थे कि राजस्थान में नेताओं की हकीकत क्या है। इसका अंदाजा खरगे को मंच के सामने उपस्थित लोगों से लग गया होगा। क्या कांग्रेस माली, गुर्जर और जाट की राजनीति में उलझी हुई है क्योंकि अशोक गहलोत, सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा ओबीसी की इन जातियों से आते हैं। तीनों ही नेता मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। तीनों नेताओं की यह दावेदारी राजस्थान में भी हरियाणा कांग्रेस की राजनीति में तब्दील न हो जाए। यही मैंने अपने पिछले ब्लॉग में लिखा था।
खरगे की मौजूदगी में हवाई अड्डा और मंच पर तो राजस्थान कांग्रेस के नेता एकजुट नजर आए लेकिन क्या यह नेता एकजुट हैं इसकी झलक सम्मेलन में मौजूद भीड़ से प्रकट होती है। जहां बड़े नेताओं के बड़े पन की पोल खुलती नजर आई। कांग्रेस का कार्यकर्ता अभी भी कुंठित है क्योंकि उन्हें आशा की किरण दिखाई नहीं दे रही है। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस हाई कमान को जिस रास्ते पर चलना होता है और जो रास्ता तय हो जाता है उस रास्ते से अचानक भटक जाते हैं। फिर कांग्रेस के स्वयंभू नेता हाई कमान को सही रास्ते से भटका देते हैं जिसकी मिसाल राजस्थान में देखी गई। प्रोग्राम होना था प्रदेश भर के कांग्रेस के पोलिंग एजेंटो, ब्लॉक, जिला के कार्यकर्ताओं से मिलने का लेकिन प्रोग्राम हुआ संविधान बचाओ सम्मेलन का। राजस्थान में तो हाई कमान को जरूरत है कांग्रेस बचाओ सम्मेलन करने की।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)