
-देवेंद्र यादव-

देश की सबसे पुरानी और देश पर सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली कांग्रेस मात्र 10 सालों में नोट और वोट से कमजोर क्यों हो गई। क्या इस पर कांग्रेस हाई कमान और राजनीतिक पंडितों ने विश्लेषण और मंथन किया है।
2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक कांग्रेस लोकसभा के लगातार तीन चुनाव हार चुकी है। कमोबेश राज्यों में भी कांग्रेस की यही स्थिति है। कुछ एक राज्यों को छोड़ दें तो कांग्रेस अन्य राज्यों में भी लगातार विधानसभा के चुनाव हार रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस की ऐसी स्थिति थी कि उसके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसा भी नहीं था। इसीलिए सवाल खड़ा होता है कि आखिर कांग्रेस नोट और वोट से कमजोर क्यों हो गई। और क्यों वह लोकसभा और राज्यों के विधानसभा के चुनाव हार रही है।
कांग्रेस के पास अब सीताराम केसरी और मोतीलाल वोरा जैसे खजांची नहीं हैं जो पार्टी के खजाने को सुरक्षित रख पाए और जरूरत के आधार पर सही जगह पैसे का उपयोग किया।
2014 में कांग्रेस की सरकार जाने के बाद, पार्टी् के भीतर नए-नए चुनावी रणनीतिकारों ने जन्म लिया और उन्होंने चुनाव लड़ने के नए-नए तरीके गढे और योजनाएं बनाई। उन्होंने कांग्रेस के खजाने को खाली किया। कांग्रेस को नोट और वोट की चोट देने वाले एक ही प्रकार के नेता थे जिन्हें आज कांग्रेस का स्लीपर सेल कहा जाता है। इन्होंने पहले कांग्रेस के नोट पर चोट की फिर पार्टी वोट पर चोट की। जब कांग्रेस के पास नोट खत्म हुए तो, इन्होंने कांग्रेस हाई कमान से सौदे की नीति अपनाई। कांग्रेस हाई कमान उन नेताओं के जाल में फंस गया और राज्यों के विधानसभा चुनाव में इन नेताओं से सौदा करने पर विवश हुआ। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब में अपनी जीती हुई बाजी को हार गई।
यदि सौदेबाजी नहीं होती तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस लगातार दूसरी बार सरकार बनाती और मध्य प्रदेश और हरियाणा में कांग्रेस सत्ता में वापसी कर सकती थी।
इसलिए बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस को नोट और वोट की चोट पहुंचाने वाले और कोई नहीं है कांग्रेस के भीतर बैठे सौदेबाज नेता हैं, जिन्हें स्लीपर सेल कहा जाता है। इसलिए कांग्रेस को सौदा नहीं समस्या का समाधान ढूंढना होगा और करना होगा।
कांग्रेस नोट और वोट से कमजोर भारतीय जनता पार्टी के कारण नहीं हुई है। कांग्रेस कमजोर हुई है अपने सौदेबाज नेताओं के कारण, इसलिए राहुल गांधी को सौदेबाज नेताओं से सावधान रहना होगा। यदि राहुल गांधी कठोर फैसला ले रहे हैं तो सबसे कठोर फैसला उनका यही है कि वह इन नेताओं की सौदेबाजी में न फंसे और कठोर फैसला लेकर शीघ्र समाधान करें क्योंकि आने वाले दिनों में प्रमुख राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। 2029 में देश का आम चुनाव होना है।समय निकलते देर नहीं लगती और जब समय निकल जाता है तब कांग्रेस हाथ मलती रह जाती है। कुछ समय पहले दिल्ली में विधानसभा के चुनाव हुए जिस राज्य में लगातार कांग्रेस ने 15 साल तक शासन किया उस राज्य में लगातार दूसरी बार कांग्रेस को एक भी विधानसभा सीट जीतने का अवसर नहीं मिला। कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जमानत जप्त होने का रिकॉर्ड भी बनाया। इससे पहले पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस के साथ दिल्ली जैसा हर्ष हुआ था इसीलिए सवाल उठता है कि कांग्रेस हाई कमान जानते हुए भी फैसला लेने में देरी क्यों करता है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)