
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस ने शुक्रवार 30 अगस्त को नए राष्ट्रीय सेक्रेटरी और जॉइंट सेक्रेटरी की घोषणा में राजस्थान से भी चार युवा नेताओं को राष्ट्रीय सचिव बनाया है। राष्ट्रीय सचिवों की घोषणा के बाद, राजस्थान में सर्वाधिक चर्चा पूर्व विधायक दिव्या मदेरणा की नियुक्ति को लेकर हो रही है।
चर्चा इस बात की है कि दिव्या मदेरणा राजस्थान में कांग्रेस के किस गुट से संबंध रखती हैं। क्या वह पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुट की है या फिर कांग्रेस के राष्ट्रीय जनरल सेक्रेटरी सचिन पायलट के गुट की हैं।
एक चर्चा तो यह भी है कि दिव्या मदेरणा राहुल गांधी की राजनीतिक पसंद हैं। सबसे बड़ा सवाल जिसकी चर्चा राजस्थान के राजनीतिक और मीडिया के गलियारों और चैनलों पर नहीं हो रही है वह यह है कि क्या अशोक गहलोत ने राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में, भावी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के सामने राजनीतिक चुनौती खड़ी कर दी।
दिव्या मदेरणा ने एक निजी चैनल के सवाल के जवाब में स्पष्ट कहा है कि मैं किसी गुट की नहीं हूं।मैं कांग्रेस की सच्ची सिपाही हूं और मुझे गहलोत पायलट और डोटासरा तीनों आशीर्वाद देंगे। मैं राजस्थान में हमारे नेता राहुल गांधी की नीतियों पर कार्य करूंगी और कांग्रेस को मजबूत करूंगी।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राजनीती को समझना हर किसी के वश की बात नहीं है। राजनीति में जादूगर की जादूगरी का कमाल अलग ही है। प्रदेश कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर गहलोत और पायलट के बीच विवाद प्रारंभ हुआ और विवाद यहां तक पहुंच गया कि सचिन पायलट को अपना कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष का पद गवाना पड़ा। अशोक गहलोत ने प्रदेश अध्यक्ष के पद पर गोविंद सिंह डोटासरा को बैठाया। डोड़सरा जाट समुदाय से आते हैं मगर डोटासरा जब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने थे तब वह राजस्थान में जाटों के इतने बड़े नेता नहीं थे मगर उन्हें अशोक गहलोत ने प्रदेश अध्यक्ष बनबाकर, सचिन पायलट पर राजनीतिक दबाव बनाए रखा।
2023 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में लड़ा और कांग्रेस चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हो गई। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस गोविंद सिंह डोटासरा के अध्यक्ष रहते हुए आठ लोकसभा सीट जीत गई। विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव हारी और लोकसभा चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के रहते हुए कांग्रेस ने एक दशक बाद आठ लोकसभा सीट जीती। इससे गोविंद सिंह डोटासरा कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी की रेस में प्रबल दावेदार के रूप में देखे जाने लगे। डोटासरा की बॉडी लैंग्वेज से भी कुछ ऐसा ही दिखाई देता है। उन्हें भी भ्रम हो गया कि वह भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं। इसी भ्रम को दूर करने के लिए राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत ने अपनी जादूगरी दिखाई और मारवाड़ की उस बेटी को राष्ट्रीय सचिव बनने दिया, जिसके परिवार से कांग्रेस और प्रदेश में राजनीतिक तौर पर ताकतवर होने के बाद भी प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बन पाया।
राजस्थान की राजनीति में मारवाड़ का मदेरणा और मिर्धा परिवार हमेशा ताकतवर रहा है। मगर इस परिवार से कोई भी नेता प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। इसकी वजह राजस्थान में जाट नेताओं का मारवाड़ और शेखावाटी में बंटना माना जा सकता है। एक तरफ मारवाड़ से परसराम मदेरणा और रामनिवास मिर्धा और नाथूराम मिर्धा जैसे कद्दावर नेता आते थे तो वहीं शेखावाटी से शीशराम ओला और रामनारायण चौधरी, सुमित्रा सिंह जैसे नेता थे।
अब शेखावाटी से जाटों के नए नेता गोविंद सिंह डोटासरा नजर आ रहे हैं मगर अब उनके सामने मारवाड़ से दिव्या मदेरणा के रूप में एक नई चुनौती खड़ी हो गई।
दिव्या मदेरणा गोविंद सिंह डोटासरा के लिए ही बल्कि सचिन पायलट के सामने भी बड़ी चुनौती होगी क्योंकि दिव्या मदेरणा युवा है और गांधी परिवार से उनका भी सीधा संपर्क है।
इतिहास गवाह है जब भी अशोक गहलोत की राजनीति को कांग्रेस के भीतर से प्रदेश में चुनौती मिली है तब अशोक गहलोत उस चुनौती से लड़ने के लिए, अपने राजनीतिक दुश्मनों के सामने जाट नेता को चुनौती के रूप में पेश कर देते हैं। यदि दिव्या मदेरणा का सचिव बनना अशोक गहलोत की राजनीतिक रणनीति है तो अशोक गहलोत ने राजस्थान में एक तीर से दो शिकार कर लिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)