
-विष्णुदेव मंडल-
(तमिलनाडु निवासी स्वतंत्र पत्रकार)
चेन्नई। वैसे तो राज्य सरकार और राज्यपालों के बीच मतभेद कोई नई बात नहीं है, लेकिन तमिलनाडु के सत्ताधारी दल डीएमके और उनके सहयोगी दल राज्यपाल आर एन रवि के खिलाफ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन सौपने की तैयारी में हैं! डीएमके और उनके सहयोगी दलों ने मौजूदा राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ 50 से भी अधिक सांसदों के हस्ताक्षरित ज्ञापन तैयार किया है जिनमें राज्यपाल के ऊपर आरोप लगाया गया है कि वह संवैधानिक पद पर बैठकर असंवैधानिक कार्यों में लगे हुए हैं। उनके वक्तव्य एकता और अखंडता के बीच खाई पैदा कर रहे हैं। वह सनातन धर्म और संस्कृत के प्रचारक के रूप में काम कर रहे हैं। जबकि हमारा देश पूर्णरूपेण सेक्युलर है, ऐसे में संवैधानिक पद पर बैठे राज्यपाल किसी खास धर्म का प्रचार कैसे कर सकते हैं? डीएमके और सहयोगी दलों का यह भी आरोप है कि विधानसभा से पारित 20 से भी अधिक बिल जिन पर राज्यपाल के स्वीकृति और हस्ताक्षर की जरूरत है वह पेंडिग में रख दिया गया है, जिनके कारण जन कल्याणकारी कार्य रुके हुए हैं। ज्ञापन मे इस बात का भी जिक्र है कि तमिलनाडु अनेकता में एकता में विश्वास करता है, यहाँ धर्म, भाषा और जाति को लेकर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है। यहाँ के लोग सर्वधर्म समभाव में विश्वास करते है, लेकिन राज्यपाल आर एन रवि का वक्तव्य समाज में खाई पैदा कर रहा है। उनके उनके बयान धर्मनिरपेक्ष देश और राज्य के लिए अनुचित हैं। उनके द्वारा दिए जा रहे बयानों से ऐसा लगता है कि वह किसी खास धर्म और समुदाय के लिए काम कर रहे हैं।

ज्ञापन मे इस बात का भी जिक्र है कि राज्यपाल संवैधानिक पद बैठकर केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं। वह तमिल सभय्ता और भावनाओं को आहत कर रहे हैं, जो किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
राज्यपाल और तमिलनाडु के बीच तकरार को लेकर कई लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस तरह दी है
-आज कल जहाँ भी विपक्ष की सरकार है वो अपनी विफलता का ठीकरा केंद्र सरकार पे फोड़ देता है। वहाँ के राज्यपाल के कार्यकलाप पर प्रश्नचिन्ह उठाता है। राज्यपाल पर आरोप आप लगा सकते हैं क्योंकि यहाँ प्रजातंत्र है लेकिन बहुसंख्यक के भले की बात आप नहीं कर सकते क्योंकि देश का सेकुलरिज़्म ख़तरे में आ जाता है। कल्याणकारी योजना अगर सरकार के पास है तो उसको क्या राज्यपाल ने रोक रखा है। ऐसा तो सम्भव ही नहीं है सब टाल मटोल और बहानेबाज़ी है।सरकार को अपना काम अपने अधिकार के दायरे में रहकर सबके सहमति और सहयोग करते रहना चाहिए और कुछ हद तक यहाँ की सरकार शुरुआती दौर में उसी मोड में दिख रही थी।
पंकज झा, बिजनेस मैन, कोलातूर!
-तमिलनाडु सरकार एक कठपुतली राज्यपाल की अपेक्षा रखती है। लेकिन संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को पता होता है कि उनका अधिकार और कर्तव्य क्या है। आजकल हर विपक्षी पार्टियों जहां पर दूसरी पार्टी के सरकार हैं उन्हें राज्यपाल से परेशानी है। राज्यपाल पुराने ब्यूरोक्रेट्स रह चुके हैं। उन्होंने तमिलनाडु में बढ़ रहे आतंक के खिलाफ बयान दिया हैं इसलिए तथाकथित धर्मनिरपेक्षियों को खटकने लगे हैं। ये पीएफआई जैसे आतंकी संगठन का समर्थन करते हैं लेकिन जब तमिलनाडु के राज्यपाल आतंकवाद के खिलाफ कुछ बोलते हैं तो इन्हें बुरा लगता है इसलिए तमिलनाडु सरकार चाहती है ककि राज्यपाल को वापस बुलाया जाए। ऐसे राज्यपाल नियुक्त किए जाएं जो सिर्फ रबर स्टांप हो!
संदीप पांडे, समाजिक कार्यकर्ता, माधवरम
-तमिलनाडु आतंकवाद की चपेट में है। सप्ताह भर पहले दीपावली के समय कोयंबतूर के एक मंदिर के सामने बम विस्फोट हुआ जिनमें आईएसआईएस के लिए काम कर रहे आतंकवादी मारे गए। एनआईए के छापेमारी में कई ऐसे सबूत मिल रहे हैं जो स्पष्ट करता है कि तमिलनाडु में आतंकवादियों के समर्थक हैं। यहां की राजनीतिक पार्टियां कभी आतंकवाद पर कुछ बोलना नहीं चाहती क्योंकि इन्हें अपनी सत्ता की पडी है,इसलिए राज्यपाल पर सवाल उठा रहे जो कि गलत है।
ए.एन मिश्रा, भाजपा नेता, उत्तर चेन्नई
-राज्यपाल को किसी धर्म का प्रचार नहीं करना चाहिए। उन्हें संवैधानिक पद की गरिमा बरकरार रखनी चाहिए। े कुछ महीने पूर्व राज्यपाल ने सनातन धर्म के बारे में जो वक्तव्य दिया था वह गैर संवैधानिक है क्योंकि हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष है। इसलिए राज्यपाल को किसी खास धर्म के प्रचार नहीं करनी चाहिए। विधानसभा में पारित बिलों पर हस्ताक्षर करना चाहिए लेकिन ऐसा राजपाल नहीं कर रहे हैं!
एस राजशेखर, डीएमके समर्थक
यहां उल्लेखनीय है कि डीएमके सांसद टी आर बालू ने डीएमके मुख्यालय अन्ना अरावालियम में सभी पार्टी सांसदों समेत सहयोगी दलों के सांसदों की बैठक बुलाई थी जिसमें राज्यपाल के खिलाफ ज्ञापन पर हस्ताक्षर के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपा जाएगा। आरोप पत्र पर डीएमके, कांग्रेस,वीसीके, एमडीएमके,एसडपीआई, एवं अन्य वामपंथी सांसदों के हस्ताक्षर की बात कही जा रही है।