#सर्वमित्रा_सुरजन
कर्नाटक हारने और अगले कई विधानसभा चुनाव और आम चुनाव से पहले मोदी सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। कानून मंत्री के पद से किरन रिजिजू को मुक्त कर अब उन्हें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय दिया गया है। श्री रिजिजू की जगह अब राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है, संस्कृति मंत्रालय वे पहले से ही संभाल रहे हैं।
भाजपा के एक समर्पित कार्यकर्ता की तरह किरन रिजिजू ने इस बदलाव पर प्रतिक्रिया दी कि ‘प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में क़ानून मंत्री के रूप में काम करना मेरे लिए सम्मान की बात है। मैं चीफ़ जस्टिस समेत सुप्रीम कोर्ट के जजों, हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस, निचले कोर्ट के जजों और सभी क़ानून अधिकारियों का भी शुक्रगुज़ार हूं। मैं अर्थ साइंसेज मंत्रालय में भी उसी उत्साह से काम करूंगा, जैसा बीजेपी कार्यकर्ता के रूप में करता रहा हूं।’ कानून मंत्रालय बमुश्किल दो साल तक किरन रिजिजू के पास रहा। उन्हें 2021 में कानून मंत्री बनाया गया था, इससे पहले रविशंकर प्रसाद के जिम्मे ये मंत्रालय था, मगर वे भी अचानक इसी तरह हटा दिए गए थे।
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में चार साल में दो बार कानून मंत्री बदल दिए गए, तो सवाल उठना लाजिमी है कि इस महत्वपूर्ण मंत्रालय को संभालने वाले क्या जिम्मेदारियों को निभा नहीं पा रहे या फिर उनसे कुछ उम्मीदें सरकार और भाजपा की हैं, जो पूरी नहीं हो पा रही हैं। और जहां तक सवाल किरन रिजिजू के उत्साह का है, तो इसके कई उदाहरण उन्होंने अपने कार्यकाल में प्रस्तुत किए हैं।
देश में अतीत में ऐसे अनेक मौके आए, जब सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेद हुए, एक-दूसरे के कार्यक्षेत्र में दखल के आरोप लगे, टकराव हुए लेकिन लोकतंत्र के स्तंभों में परस्पर सम्मान और विश्वास बना रहा। मगर किरन रिजिजू ने अपने कार्यकाल के दौरान ऐसे कई बयान न्यायिक व्यवस्था पर दिए, जिससे विवाद खड़े हुए और अप्रिय स्थिति निर्मित हुई।
इसी साल 18 मार्च को किरन रिजिजू ने एक कार्यक्रम में कहा था कि ‘कुछ रिटायर्ड जज हैं, जो एंटी इंडिया ग्रुप का हिस्सा बन गए हैं।’ जो लोग देश के खिलाफ़ काम करेंगे, उन्हें उसकी क़ीमत चुकानी होगी।’ भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ कि कानून मंत्री के ओहदे पर बैठे किसी व्यक्ति ने सेवानिवृत्त जजों को लेकर ऐसी टिप्पणी की हो। उनके इस बयान के बाद सुप्रीम कोर्ट और कई हाई कोर्ट के 300 से अधिक वरिष्ठ वकीलों ने एक बयान जारी कर कहा था, ‘क़ानून मंत्री रिटायर्ड जजों को धमकी दे कर नागरिकों को ये संदेश देना चाहते हैं कि आलोचना की किसी भी आवाज़ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’ इसी तरह 16 जनवरी 2023 को टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक रिपोर्ट छपी, जिसमें दावा किया गया कि किरन रिजिजू ने भारत के चीफ़ जस्टिस को एक पत्र लिखकर कॉलेजियम में केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव दिया था। इस मामले को लेकर विपक्षी पार्टियां, भाजपा पर हमलावर हो गई थीं।
इस तरह के बयानों से देश में अनावश्यक विवाद तो खड़े हुए ही, मोदी सरकार भी बार-बार सवालों के दायरे में आई, कि जो विचार किरन रिजिजू व्यक्त कर रहे हैं, वो उनके अपने हैं या किसी के इशारे पर वे ऐसा कह रहे हैं। न्यायपालिका और सरकार के बीच लगातार टकराव बने रहने की स्थिति से भी अच्छा संदेश नहीं जा रहा था। मुमकिन है मोदी सरकार अपने लिए विपरीत हो रहे हालात में विवादों से बचने की युक्ति तलाश रही हो और इसमें पहला कदम किरन रिजिजू को कानून मंत्री के पद से हटाना हो। बीते कुछ समय में न्याय क्षेत्र से सरकार के अनुकूल खबरें आ भी नहीं रही हैं।
कर्नाटक चुनाव में भाजपा सरकार ने आरक्षण का दांव खेलते हुए मुस्लिमों को मिलने वाले 4 प्रतिशत आरक्षण को ख़त्म कर लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों में बांटने का फैसला लिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया था कि कर्नाटक सरकार का मुस्लिमों के लिए चार प्रतिशत कोटा खत्म करने का फै़सला नौ मई तक लागू नहीं होगा। आरक्षण के दांव को एक फैसले से विफल कर दिया गया और बाकी तीर भी बेकार ही गए, लिहाजा भाजपा कर्नाटक हार गई। इससे पहले महाराष्ट्र विवाद में सुप्रीम कोर्ट से शिंदे सरकार को बरकरार रहने का फैसला तो सुनाया गया, लेकिन जिस तरह तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की गलती पर अदालत ने टिप्पणी की, उससे भाजपा को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी।
दिल्ली मामले में भी शीर्ष अदालत ने एलजी की जगह प्रशासनिक सेवाओं को दिल्ली सरकार के पास रखने का फैसला सुनाया। हाल ही में दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन की नियुक्ति का फैसला सुनाते हुए अदालत ने टिप्पणी की कि उपराज्यपाल को दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन नामित करने की शक्ति देने का मतलब होगा कि वह एक निर्वाचित नागरिक निकाय को अस्थिर कर सकते हैं। तीन महीने पहले चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था कि इनकी नियुक्ति अब सीबीआई निदेशक की तरह होगी जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई का पैनल नियुक्ति करेगा। यह मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका था, क्योंकि निर्वाचन आयोग पर सरकार दबाव बनाती है, ये आरोप सरकार पर लगते रहे हैं।
कुल मिलाकर कानून मंत्री के तौर पर किरन रिजिजू का सफर उबड़-खाबड़ रहा, विवादों और बाधाओं के ढेले-पत्थर लगातार उछलते रहे। इससे मोदी सरकार पर दाग लगने का खतरा बना हुआ था। अभी अदानी-हिंडनबर्ग प्रकरण, राहुल गांधी को मानहानि पर सजा के खिलाफ दायर याचिका ऐसे कुछ मामले हैं, जिन पर फैसला आना बाकी है और इनका सीधा असर भाजपा और मोदी सरकार पर होगा। संभवत: इन सारी वजहों से यह बड़ा फैसला अचानक लिया गया। दूसरी ओर राजस्थान चुनाव को ध्यान में रखते हुए संभवत: अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया है।
श्री मेघवाल दलित समुदाय से हैं और इनके जरिए राजस्थान की 16 प्रतिशत दलित आबादी को भाजपा साध सकती है। कर्नाटक में जिस तरह एससी, एसटी समुदायों ने भाजपा को किनारे लगाया है, उसके बाद छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, और तेलंगाना की आदिवासी और दलित आबादी के बीच पैठ बनाना भाजपा के लिए चुनौती है। भाजपा इसी की तैयारी कर रही है। अक्सर साइकिल से चलने वाले श्री मेघवाल पूर्व नौकरशाह हैं तो उन्हें सरकार और प्रशासन दोनों का अच्छा तर्जुबा है। देखना होगा कि भाजपा को चुनाव में इस फेरबदल का क्या लाभ होता है।
(देवेन्द्र सुरजन की फेसबुक वाल से साभार)