मैं किसी के भी साथ चल न सका। था अलग सबसे रास्ता मेरा।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

देखता कौन हौसला मेरा।
सबने देखा है डूबना मेरा।।
*
मैं किसी के भी साथ चल न सका।
था अलग सबसे रास्ता मेरा।।
*
ये ज़माना तो ख़त्म कर देता।
आगे आया लिया-दिया* मेरा।।
*
मैं ये समझा कहीं पे रख आया।
वो तो दिल में ही था ख़ुदा मेरा।।
*
ज़ीस्त गुज़री सनम-परस्ती* में।
फिर भी रूठा है देवता मेरा।।
*
क्या डराता है ऐ ज़माने सुन।
जो भी होना था हो चुका मेरा।।
*
जो नहीं हूंँ वो ही दिखाता है।
है ख़फ़ा मुझसे आईना* मेरा।।
*
कितना बिखरा हुआ हूँ अब “अनवर”।
कितना मुश्किल था टूटना मेरा।।
*

लिया दिया* करनी का फल

ज़ीस्त* ज़िंदगी जीवन
सनम परस्ती*मूर्ति पूजा,प्रेमिकाओं के नखरे उठाना
आईना*दर्पण

शकूर अनवर
9460851271

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