राजस्थान में कांग्रेस के हालात हरियाणा जैसे बनने के आसार!

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अशोक गहलोत। फोटो सोशल मीडिया

-देवेंद्र यादव-

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देवेन्द्र यादव

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का यह सवाल कि राजस्थान का बडा नेता कौन 2028 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए हरियाणा की तरह राजनीतिक संकट खड़ा करेगा। जैसे हरियाणा में जाट और दलित नेताओं के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर जंग चली और कांग्रेस जीती हुई बाजी को हार गई। वही स्थिति राजस्थान में होने की आशंका बन रही है।
हालांकि राजस्थान में हरियाणा की तरह जाट और दलित नहीं बल्कि माली और गुर्जर होगा। अशोक गहलोत माली जाति से तो सचिन पायलट गुर्जर जाति से आते हैं। दोनों ही नेता ओबीसी समुदाय से हैं और दोनों ही मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। अशोक गहलोत तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उनकी हसरत अभी भी मुख्यमंत्री बनने की है, जबकि सचिन पायलट 2018 मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे और उनके नेतृत्व में राजस्थान में सरकार भी बनी मगर हाई कमान ने सचिन पायलट के बजाय अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया। 2028 के विधानसभा चुनाव में दोनों नेता मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार होंगे और दोनों की महत्वाकांक्षा इतनी बड़ी होगी कि कांग्रेस को हरियाणा की तस्वीर राजस्थान में नजर आएगी।

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सचिन पायलट। फोटो सोशल मीडिया

दोनों राजस्थान कांग्रेस में प्रभावशाली नेता है, और दोनों ही नेताओं का प्रभाव अपनी-अपनी जातियों में है। भले ही दोनों नेताओं की जातियों के अधिकतर मतदाता भाजपा के समर्थक हैं लेकिन जब अपने नेता को मुख्यमंत्री बनाने की बात आती है तब इन नेताओं की जाति के मतदाता एकजुट होकर कांग्रेस को वोट करते हैं। इसका नजारा 2018 के विधानसभा चुनाव में देखा था जब पार्टी हाई कमान ने राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाकर भेजा था। कांग्रेस ने राज्य में भाजपा को हराकर अपनी सरकार बनाई थी मगर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया। परिणाम यह हुआ कि 2019 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो कांग्रेस राजस्थान की सभी 25 सीट हार गई।
कांग्रेस हाई कमान ने 2023 में राजस्थान विधानसभा चुनाव का नेतृत्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाथों में सौंप दिया। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस को अपनी सरकार गंवानी पड़ी लेकिन 2024 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो सचिन पायलट ने अपनी राजनीतिक ताकत दिखाई और कांग्रेस ने 9 लोकसभा की सीट जीती।
जब से सचिन पायलट कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव बनकर दिल्ली बैठे तब से अशोक गहलोत राजनीतिक रूप से कमजोर दिखाई देने लगे। सचिन पायलट को यह बात बड़ी देर से समझ में आई की दिल्ली में बैठना राजनीतिक दृष्टि से कितना फायदेमंद होता है। जब सचिन पायलट राजस्थान में रहकर राजनीति करते थे तब वह अशोक गहलोत से कमजोर नेता के रूप में नजर आते थे क्योंकि दिल्ली दरबार में सचिन पायलट की वकालत करने वाला कोई नहीं था। अशोक गहलोत के समर्थक नजर आते थे और अशोक गहलोत जो चाहते थे वह अपने राजनीतिक समर्थकों से करवा लिया करते थे।
अशोक गहलोत दिल्ली दरबार में मजबूत इसलिए थे क्योंकि वह अपने समर्थकों की मजबूत फौज रखते थे और उन्हें राजनीतिक सौगात दिया करते थे। जैसे आनंद शर्मा, डॉ मनमोहन सिंह, मुकुल वासनिक, रणदीप सिंह सुरजेवाला, केसी वेणुगोपाल, प्रमोद तिवारी और अब श्रीमती सोनिया गांधी। इन नेताओं को अशोक गहलोत ने राजस्थान से राज्यसभा में पहुंचाया था इसलिए अशोक गहलोत मजबूत नेता थे और यही वजह है कि वह राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री बने। जबकि सब जानते थे कि अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस ने राजस्थान में अपनी सरकार रिपीट नहीं की बल्कि कांग्रेस की शर्मनाक हार भी हुई।
लेकिन अब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे हैं और उसके नेता राहुल गांधी हैं जिन्होंने सचिन पायलट को राष्ट्रीय महामंत्री बनाकर अपने पास बैठाया है।
लेकिन सवाल तो यह है कि क्या 2028 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के भीतर माली और गुर्जर के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर बड़ा पेच फंसेगा। परिणाम हरियाणा की तरह का होगा। 28 अप्रैल को राहुल गांधी का संभावित राजस्थान दौरा है। इस दौरे के दरमियान राहुल गांधी राजस्थान कांग्रेस कार्यकर्ताओं से रूबरू होंगे और कांग्रेस को कैसे मजबूत करें इस पर चर्चा करेंगे। राहुल गांधी को अभी से इस पर भी मंथन करना चाहिए की राजस्थान में हरियाणा की तरह स्थिति ना बने क्योंकि जब से राहुल गांधी का यह सवाल आया है कि राजस्थान कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता कौन अशोक गहलोत या सचिन पायलट उसके बाद से नेताओं के बीच राजनीतिक जंग छिड़ने के संकेत दिखाई देने लगे हैं। कांग्रेस को ज्यादा खतरा हरियाणा की तर्ज पर जाट और दलित के बीच का नहीं होगा बल्कि खतरा होगा माली वर्सेस गुर्जर का। राजस्थान में माली और गुर्जर मतदाता बड़ी संख्या में विधानसभा सीटों को प्रभावित करते हैं, और किसी भी पार्टी की जीत और हार में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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