
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस के नेताओं को हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी की लंबे समय के बाद सत्ता में में वापसी दिखाई दे रही है, लेकिन हरियाणा में कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर विवाद और गुटबाजी भी नजर आ रही है।
इसी को लेकर 2 सितंबर को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर नेताओं ने गहन मंत्रणा और मंथन किया।
29 अगस्त को मैंने अपने ब्लॉग में लिखा था कि हरियाणा में कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा ध्यान आम आदमी पार्टी पर देना होगा। दिल्ली और पंजाब की तरह आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ हरियाणा में भी कहीं खेला ना कर दें। सूत्रों से पता चला है कि राहुल गांधी इस पर गंभीर हैं और उन्होंने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करने की संभावनाओं को खोजने के लिए अपने चुनावी रणनीतिकारों को कहां है। कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार, अभी तक यह नहीं समझे कि जहां भी भाजपा को लगता है कि वह चुनाव हारेगी और कांग्रेस सत्ता में आ सकती है उन राज्यों में आम आदमी पार्टी आकर खड़ी हो जाती है और कांग्रेस को बड़ा नुकसान करती है। दिल्ली और पंजाब इसके बड़े उदाहरण हैं।
इन दोनों ही राज्यों में भाजपा का सत्ता में आना मुश्किल और कांग्रेस का सत्ता में आना तय था। इन दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता छीन कर अपनी सरकार बना ली। भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार शायद यही चाहते थे कि भाजपा नहीं तो कांग्रेस भी सत्ता में नहीं आनी चाहिए।
गोवा में भी यही नजारा देखने को मिला। गुजरात में भी आम आदमी पार्टी नजर आई और अब हरियाणा में भी आम आदमी पार्टी के चुनाव लड़ने की चर्चा है।
हरियाणा में कांग्रेस वापसी तो कर सकती है मगर तभी जब मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर नेताओं के बीच चल रहे विवाद के थमने के बाद नेता एक जुट होकर चुनाव लड़ें।
भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीति कारों की नजर शायद इसी पर है। यदि कांग्रेस के नेताओं के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर विवाद चला तो भाजपा के रणनीतिकारों की नजर आम आदमी पार्टी पर होगी जो दिल्ली पंजाब और गोवा की तरह कांग्रेस को हरियाणा में भी सत्ता में नहीं आने देगी।
इसीलिए राहुल गांधी ने आम आदमी पार्टी को गंभीरता से लेते हुए हरियाणा में आम आदमी पार्टी से गठबंधन करने की संभावनाओं को टटोलने के लिए प्रदेश के नेताओं को कहा है।
कांग्रेस के भीतर एक और बड़ी मुश्किल यह है। कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार, स्थानीय बड़े नेताओं से मिलकर चुनावी और प्रत्याशियों के चयन की रणनीति बनाते हैं। इस कारण ना तो चुनाव की रणनीति ठीक से बन पाती है और ना ही जीतने वाले प्रत्याशियों का चयन हो पाता है। होता यह है कि उन छत्रपो के अनुरूप रणनीति बनती है जो मुख्यमंत्री बनने का मुगालता पाले बैठे हुए होते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ इसके बड़े उदाहरण हैं। 2023 में संपन्न हुए तीनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों ने मुख्यमंत्री के दावेदारों के साथ मिलकर चुनावी रणनीति बनाई और प्रत्याशियों का चयन किया। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता से बाहर हो गई और मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस के भीतर ऐसे चुनावी रणनीतिकारों की अलग से टीम बनानी होगी जिनके पास सत्ता और संगठन के भीतर किसी भी प्रकार का कोई पद ना हो। कांग्रेस के भीतर अक्सर देखा गया है, जिन राज्यों में चुनाव के समय राष्ट्रीय प्रभारी बनाए जाते हैं वह प्रभारी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों से सेटिंग कर प्रत्याशियों का चयन करते हैं और बदले में यदि उन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बन जाती है और मुख्यमंत्री उनके अनुरूप बन जाता है तो प्रभारी जी को उस राज्य से मुख्यमंत्री बने नेताजी राज्यसभा में पहुंचा देते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)