
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने स्वीकार किया है कि कांग्रेस ने दलित, आदिवासी और ओबीसी के लिए जितना करना चाहिए था उतना नहीं किया।
यदि राजस्थान को देखें तो राजस्थान में दो दशक से भी अधिक समय से कांग्रेस के भीतर प्रभावशाली नेता ओबीसी वर्ग से आते हैं। तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने जो माली जाति से आते हैं। माली जाति ओबीसी वर्ग में है। राजस्थान में कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष ज्यादातर समय ओबीसी वर्ग से रहा है और वर्तमान में भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जाट हैं जो ओबीसी वर्ग से आते हैं। राजस्थान कांग्रेस की तरफ से जिस नेता को मुख्यमंत्री बनाने की जोरदार आवाज सुनाई देती है वह नेता भी सचिन पायलट गुर्जर जाति से हैं जो ओबीसी वर्ग से आते हैं। पूर्व में सचिन पायलट भी लंबे समय तक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।

सवाल यह है कि राहुल गांधी क्यों कह रहे हैं कि हमसे कमी रह गई। जबकि राजस्थान में कांग्रेस की लीडरशिप की बात करें तो ओबीसी की लीडरशिप प्रभावशाली रही है। चाहे वह संगठन की बात हो या फिर सत्ता की बात हो दोनों जगह ओबीसी नेता ही प्रभावशाली रहे हैं।इसके बाद भी राजस्थान में कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी की अपेक्षा कमजोर है। यदि लोकसभा चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी ने एक बार नहीं कई बार राजस्थान में कांग्रेस का सफाया किया है। एक बार को छोड़ दे तो कांग्रेस राजस्थान में विधानसभा की 150 सीट से अधिक सीट कभी नहीं जीत पाई। बल्कि ज्यादातर बार कांग्रेस ने बैसाखियों पर रहकर अपनी सरकार बनाई। यह तब हुआ जब कांग्रेस में वर्चस्व ओबीसी के नेताओं का अधिक रहा। कांग्रेस ने ओबीसी नेताओं के चलते विधानसभा चुनाव में शर्मनाक हार भी देखी। कांग्रेस को 200 में से 26 विधानसभा सीट जितने को मिली। यह तब की बात है जब ओबीसी वर्ग के अशोक गहलोत राज्य के मुख्यमंत्री थे। जब वह पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने तब कांग्रेस ने 200 में से 156 विधानसभा सीट जीती थी। उनके नेतृत्व में राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ा गया तब कांग्रेस ने एक बार 56 और दूसरी बार 26 विधानसभा की सीट जीती।
यदि राजस्थान में कांग्रेस की राजनीति की बात करें तो पार्टी ने राजस्थान में ओबीसी वर्ग के लिए कोई कमी नहीं छोड़ी। बल्कि कांग्रेस ने जरूरत से ज्यादा दिया। राजस्थान में कांग्रेस भाजपा की अपेक्षा कमजोर क्यों है इस पर समय रहते राहुल गांधी और कांग्रेस हाई कमान को ध्यान देना होगा। ध्यान इस बात पर देना होगा कि राजस्थान कांग्रेस के नेता एकजुट क्यों नहीं है। इसका नजारा 14 अप्रैल को बाबा साहब अंबेडकर की जयंती के अवसर पर आयोजित प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में देखने को मिला। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा की मौजूदगी में प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली तो मौजूद थे मगर राजस्थान में रहते हुए भी सचिन पायलट और अशोक गहलोत मौजूद नहीं थे। अंबेडकर जयंती पर आयोजित कांग्रेस कार्यालय में गोष्ठी में अधिकांश वह नेता थे जो विधानसभा का चुनाव हार कर बैठे हुए हैं। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की जंबो कार्यकारिणी के अधिकांश पदाधिकारी नदारत थे।
बात यह भी नहीं है कि अंबेडकर जयंती पर आयोजित गोष्ठी में कौन आया कौन नहीं आया। असल बात यह है और आम कार्यकर्ताओं को चिंता है कि राजस्थान कांग्रेस भी हरियाणा कांग्रेस ना बन जाए। राजस्थान में हरियाणा की तरह जाट और दलित जैसे समीकरण ना बन जाएं। इसका पता आगामी दिनों में होने वाले पंचायत राज और निकाय चुनाव में ठीक से चलेगा। जिस प्रकार से प्रदेश कांग्रेस कमेटी में जाटों को स्थान मिला है उसकी चर्चा सड़कों पर सुनाई देना आम बात है। गोविंद सिंह डोटासरा जाट नेता हैं लेकिन जाटों के प्रभाव वाले क्षेत्र में कांग्रेस अभी भी कमजोर है। गोविंद सिंह डोटासरा इसलिए प्रदेश अध्यक्ष बने थे क्योंकि सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाना था। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर जाट नेता ही सूट करता है, इसलिए अशोक गहलोत ने गोविंद सिंह डोटासरा को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनवाया था। राजस्थान में अशोक गहलोत और गोविंद सिंह डोटासरा के नेतृत्व में 2023 का विधानसभा चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। राजस्थान में कांग्रेस इसलिए हारी क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा और अशोक गहलोत प्रत्याशियों के चयन और कांग्रेस विधानसभा कैसे जीते इसकी रणनीति कांग्रेस कार्यालय में नहीं बना कर कांग्रेस के वार रूम में बैठकर बनाते थे। इन नेताओं ने कांग्रेस के टिकटों की बंदर बांट कर ली और नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस चुनाव हार गई। जीतने वाले प्रत्याशियों का चयन नहीं हुआ बल्कि चयन उनका हुआ जो नेता इन तीन नेताओं के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते थे। अभी भी कई बार कांग्रेस की बैठक कांग्रेस कार्यालय में नहीं होकर वार रूम में की जाती है इसीलिए राजस्थान कांग्रेस कार्यालय आम कार्यकर्ताओं से दूर होता चला गया और आम कार्यकर्ताओं के लिए कांग्रेस के वार रूम के दरवाजे बंद नजर आते हैं। आम कार्यकर्ताओं की हैसियत नहीं है कि वह कांग्रेस के वार रूम में अपना कदम भी रख दे। राजस्थान कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर अभी से नेताओं ने पावर पॉलिटिक्स का खेल शुरू कर दिया है। जिस पर पार्टी हाई कमान को समय रहते ध्यान देने की जरूरत है। वरना राजस्थान में जो कांग्रेस के पास बचा है वह भी बचा नहीं रहेगा। राजस्थान की राजनीति से सबसे ज्यादा यदि कोई वाकिफ है तो खुद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हैं। वह 2023 के विधानसभा चुनाव के पहले जब वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बने थे तब पर्यवेक्षक के रूप में राजस्थान आए थे और राजस्थान के नेताओं ने उनको बैरंग (विधायकों से बात किए बगैर) दिल्ली लौटा दिया था।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)