
-देवेंद्र यादव-

गुजरात का निकाय चुनाव बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के लिए भारतीय जनता पार्टी की वार्निंग है। गुजरात निकाय चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी के 82 मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव जीते हैं। गुजरात निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का यह प्रयोग बिहार में कांग्रेस और राजद के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि यदि ऐसा ही प्रयोग भारतीय जनता पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में कर लिया तो क्या होगा।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जाति जनगणना की बात कर रहे हैं लेकिन गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों ने मुस्लिम समुदाय में जाति जनगणना करा ली और निकाय चुनाव में मुस्लिम समुदाय के 100 से अधिक प्रत्याशी खड़े किए। भारतीय जनता पार्टी इनमें से लगभग 82 प्रत्याशियों को जितवाने में कामयाब हो गई। राजनीतिक पंडितों को अब समझ में आ गया होगा कि अमित शाह ने आरिफ मोहम्मद खान को अचानक बिहार का राज्यपाल बनाकर क्यों भेजा।
मुस्लिम समुदाय के पसमांदा समाज को लेकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार लंबे समय से काम कर रहे थे और उन्होंने यह प्रयोग गुजरात से शुरू किया और कामयाब हुए।
गुजरात के निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली कामयाबी वाले प्रयोग को क्या वह बिहार विधानसभा चुनाव में भी करेगी। बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव लड़ते हुए नजर आएंगे और यदि भारतीय जनता पार्टी गुजरात के बाद बिहार विधानसभा चुनाव में भी अपने प्रयोग में सफल हो जाती है तो ऐसा ही प्रयोग भारतीय जनता पार्टी 2029 के लोकसभा चुनाव में भी कर सकती है।
गुजरात निकाय चुनाव से पहले मुस्लिम समुदाय के बड़े नेता अली अनवर कांग्रेस में शामिल हुए थे। उन्होंने पसमांदा समाज का जिक्र करते हुए उन्हें कांग्रेस में वापसी कराने का भरोसा दिलाया था। बिहार विधानसभा का चुनाव उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि गुजरात के निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जो सफलता मिली है वैसी ही सफलता पाने के लिए भारतीय जनता पार्टी बिहार के विधानसभा चुनाव में भी उतर सकती है।
बिहार में कांग्रेस के पास सबसे बड़ी ताकत मुस्लिम समुदाय की है। लोकसभा में कांग्रेस के पास बिहार से तीन में से दो सांसद मुस्लिम समुदाय से हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारीक अनवर, डॉक्टर जावेद दोनों सांसद हैं। वही विधानसभा में कांग्रेस के नेता शकील अहमद हैं। क्या यह तीनों नेता भारतीय जनता पार्टी की गुजरात निकाय चुनाव में आई आंधी को बिहार विधानसभा चुनाव में रोक पाएंगे। क्योंकि बिहार में कांग्रेस के पास बड़ा सहारा मुस्लिम मतदाताओं का ही है, और यदि भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात की तर्ज पर बिहार में भी प्रयोग कर लिया तो सबसे ज्यादा परेशानी कांग्रेस को ही होगी।
राहुल गांधी के भरोसेमंद चुनावी रणनीतिकार बिहार कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी कृष्णा अल्लावरू को, भारतीय जनता पार्टी को गुजरात में मिली निकाय चुनाव की सफलता को गंभीरता से लेते हुए बिहार के लिए योजना बनानी होगी। कांग्रेस को चुनाव की दृष्टि से अपने लिए जैसी भाजपा ने गुजरात में मुसलमान समुदाय की गणना कर मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे और सफल हुए वैसी ही गणना बिहार में कांग्रेस को करनी होगी।
दलित और पिछड़ा वर्ग के वोटो का बिहार में पहले से ही विभाजन है। बिहार में अधिकतर क्षेत्रीय दल इन्हीं समुदायों के हैं जो चुनाव को प्रभावित करते हैं। कांग्रेस को इन क्षेत्रीय दलों के मतों में सेंध लगाने के लिए योजना बनानी होगी, क्योंकि गुजरात भाजपा का सिग्नल कांग्रेस के लिए ना केवल बिहार विधानसभा चुनाव मैं खतरे की घंटी होगा बल्कि इस सिग्नल की रेड लाइट 2029 के लोकसभा चुनाव में भी नजर आ सकती है। इसलिए कांग्रेस और राहुल गांधी को भारतीय जनता पार्टी को गुजरात निकाय चुनाव में मिली सफलता को हल्के में नहीं लेना होगा बल्कि इस पर गंभीर मंथन करना होगा। कांग्रेस 61 साल बाद गुजरात में फिर एक बार महा अधिवेशन अप्रैल महीने में करने जा रही है। कांग्रेस के अधिवेशन से पहले भारतीय जनता पार्टी ने निकाय चुनाव के माध्यम से बता दिया है कि गुजरात में वह कितनी मजबूत है। गुजरात में कांग्रेस केवल एक निकाय जीतने में सफल हुई है, और इसकी वजह भारतीय जनता पार्टी के द्वारा 100 से अधिक मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतार कर 82 सीटों पर सफल होना ही कांग्रेस की हार का बड़ा कारण है।