
-देवेंद्र यादव-

बंद हो मुट्ठी तो लाख की, खुल गई तो फिर खाक की! 12 अप्रैल शनिवार के दिन राजनीतिक रणनीतिकार और स्वराज पार्टी के मुखिया प्रशांत किशोर के साथ यह कहावत बिहार के गांधी मैदान में चरितार्थ होते हुए देखी गई। भारतीय जनता पार्टी सहित देश के विभिन्न क्षेत्रीय दलों के लिए लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में जीत के लिए चुनावी रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर बिहार में अपनी जन स्वराज पार्टी बनाकर पहली बार राजनीति में अपना भाग्य आजमाने के लिए उतरे। उन्होंने बिहार की स्वराज परिवर्तन यात्रा की। जब गांधी मैदान में परिवर्तन रैली का आयोजन किया तो उसमें उम्मीद के मुताबिक भीड़ जुटाने में सफल नहीं हो सके। इससे सबसे अधिक कांग्रेस को खुश होना चाहिए, क्योंकि 2014 के बाद कांग्रेस की बर्बादी का सबसे बड़ा कारण शायद प्रशांत किशोर का राजनीतिक जाल ही है। यह जाल शायद 2014 की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी ने बुना था और राजनीतिक गलियारों और मीडिया के भीतर यह चर्चा शुरू हुई की 2014 में भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का अवसर प्रशांत किशोर और उनकी टीम की चुनावी रणनीति के कारण मिला था।
राजनीतिक गालियारो और मीडिया में मचे इस शोर से प्रशांत किशोर को राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में शोहरत मिली और विभिन्न दल अपने अपने राज्यों के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर का सहारा लेने लगे। प्रशांत किशोर भारतीय जनता पार्टी का दामन छोड़कर अन्य दलों के लिए राजनीतिक रणनीति बनाने में जुट गए। प्रशांत किशोर को भाजपा ने छोड़ा और अन्य दलों ने अपनाया मगर कांग्रेस ने प्रशांत किशोर पर पूर्ण रूप से भरोसा तो नहीं किया मगर उनके कारण कांग्रेस को नुकसान बहुत हुआ।
एक समय तो ऐसा भी लगा जैसे भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नारा कांग्रेस मुक्त भारत सफल हो जाएगा। कांग्रेस 2014 का लोकसभा चुनाव बुरी तरह से हारी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कमोबेश यही स्थिति हुई। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, उड़ीसा जैसे राज्यों में कांग्रेस लगभग खत्म हो गई। देश के विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूती के साथ पनपने लगे और उन राज्यों में कांग्रेस कमजोर होती चली गई।
अब सवाल उठता है कि क्या प्रशांत किशोर भारतीय जनता पार्टी के द्वारा कांग्रेस को खत्म करने के लिए बुना गया एक बड़ा राजनीतिक जाल था। इस जाल में कांग्रेस तो नहीं फंसी मगर क्षेत्रीय दल इस जाल में फंसकर पहले मजबूत हुए और उसके बाद दिल्ली और उड़ीसा में कांग्रेस को कमजोर कर भारतीय जनता पार्टी को मजबूत करके स्वयं कमजोर हो गए और सत्ता से बाहर हो गए। प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनावी रणनीति बनाने के अनेक प्रयास किए, कांग्रेस के साथ प्रशांत किशोर के द्वारा बारगेनिंग करने के भी समाचार सुनाई दिए मगर कांग्रेस प्रशांत किशोर के झांसे में नहीं आई। प्रशांत किशोर की राहुल गांधी के साथ बैठक करने के भी समाचार सुनाई दिए।
बिहार में भी 2025 के विधानसभा चुनाव में दबी जुबान खबर निकल रही थी कि कांग्रेस यदि प्रशांत किशोर को जिम्मेदारी दे तो बिहार में कांग्रेस सत्ता में वापसी कर सकती है। लेकिन कांग्रेस ने किसी प्रकार का मुगालता नहीं पाला और कन्हैया कुमार को पलायन रोको रोजगार दो के साथ बिहार की यात्रा पर निकाल दिया जो सफल रही वहीं कांग्रेस को समर्थन दे रहे कांग्रेस विचारधारा के साथ हमेशा चलने वाले नेता पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने भी यह साबित कर दिया कि बिहार का युवा और मुस्लिम ओबीसी दलित के लोग उन पर भरोसा करते हैं। कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार की पलायन रोको रोजगार दो यात्रा भी पप्पू यादव के कारण सफल रही क्योंकि पप्पू यादव लंबे समय से सड़क से लेकर संसद तक पलायन और रोजगार को लेकर आवाज बुलंद कर रहे थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)