-कृष्ण बलदेव हाडा-

कापरेन। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज रविवार को बूंदी जिले में अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ग्रामीण भारत में परंपरागत यातायात का साधन रही बैलगाड़ी की सवारी का लुत्फ उठाया। श्री राहुल गांधी ने आज बूंदी जिले के बलदेवपुरा गांव से सुबह अपनी भारत जोड़ो यात्रा शुरू की थी बलदेवपुरा से चलकर वे पहले देहीखेड़ा गांव पहुंचे और वहां से आड़ा गेला गांव के बालाजी के स्थान पर आए।
यहीं पर बूंदी के पूर्व जिला प्रमुख रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महावीर मीणा खुद बैलगाड़ी चलाते हुये श्री राहुल गांधी की यात्रा में शामिल होने के लिए जब उनके पास पहुंचे तो श्री गांधी बीती कई सदियों से ग्रानीण भारत में यातायात का परंपरागत साधन रही बैलगाड़ी को चलाने और उसकी सवारी करने का लोभ संवरण नहीं कर पाए। वह बैलगाड़ी में चढ़ गए। उन्होंने महावीर मीणा के हाथों से बैलों की रास अपने हाथ में लेकर कुछ दूरी तक बैलगाड़ी को चलाया और बाद में महावीर मीणा बैलगाड़ी चलाने लगे तो कुछ समय का सफर बैलगाड़ी से ही पूरा किया। जिस समय राहुल गांधी बैलगाड़ी को चला रहे थे या उसमें बैठे थे तो उनका चेहरा खुशी से काफी खिला हुआ था। वह बड़े हल्के-फुल्के मजाकिया मूड में नजर आ रहे थे।
अतीत के ग्रामीण भारत के इस परंपरागत साधन पर सफर करने के थोड़ी देर बाद श्री राहुल गांधी ने यातायात के आधुनिक यातायात के साधनों में शामिल हेलीकॉप्टर से अपना सफर शुरू किया। वे कापरेन के पास बनाए गए अस्थाई हेलीपैड पर पहुंचे जहां से वे हेलीकॉप्टर में बैठकर सवाई माधोपुर के लिए रवाना हो गए जहां से उनका कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव श्रीमती प्रियंका गांधी को साथ लेकर शिमला जाने का कार्यक्रम है। उन्हें हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की नवगठित होने जा रही सरकार के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेना है।
उल्लेखनीय है कि पहिए के आविष्कार के बाद कई सदियों तक ग्रामीण भारत में आवागमन का प्रमुख साधन रही बैलगाड़ियां अब धीरे-धीरे गांव से भी विलुप्त होती जा रही है। पहले यातायात के साधन के अलावा गांव में किसान बैलों का खेतों में फसल के लिए बीज की रोपाई में भी व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल करते थे लेकिन अब उनकी जगह तेजी से ट्रैक्टरों में ले ली है क्योंकि एक तो हो बैल के उपयोग से खेती-बाड़ी करना और बैलों को गाड़ी से जोत कर उसका आवागमन के साधन के रूप में इस्तेमाल करना दोनों में ही समय की खूब खपत होती है।
इसके अलावा अब बैलों का रखरखाव भी काफ़ी महंगा पड़ने लगा है और उनकी सार-संभाल कर पाना भी लोगों को मुश्किल प्रतीत होने लगा है। खासतौर से युवा पीढ़ी बैलों के इस्तेमाल से पूरी तरह से कतराती है। नतीजा यह निकला है कि बैलगाड़ी और बैलों का स्थान अब ट्रैक्टरों ने ले लिया है और बैलगाड़ियां अब चुनिंदा किसानों के पास ही बची हैं और खेती के कामों में बैलों का उपयोग अब बहुत कम रह गया है। अब तो स्थिति यह है कि बड़े शहरों खासतौर से महानगरों में भी लगने वाली हस्तकलाओं की प्रदर्शन के लिए लोगों को दिखाने हेतु बैलगाड़ी को प्रदर्शित किया जा रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब ग्रामीण भारत में भी बैलगाड़ियां धीरे-धीरे लुप्त होने की ओर बढ़ रही हैं। आम तौर पर ग्रामीण भारत से अछूते रहने वाले शहरी इलाकों में ऐसे युवाओं की संख्या अनगिनत है जिन्होंने शायद ही कभी किसी बैलगाड़ी को देखा हो, उसमें बैठना या उसका सफर करना तो बहुत दूर की बात है।