
-धीरेन्द्र राहुल-

मैं जानता हूं कि राहुल गांधी के अमरीका में दिए भाषण पर भक्तजन मेरे कपड़े फाड़ देंगे लेकिन उन्होंने दुखती हुई रग पर हाथ धरा है।
उन्होंने कहा है कि हमारे देश में सब कुछ मेड इन चायना है, इसलिए रोजगार की परेशानी बढ़ी। चीन ने प्रोडक्शन पर ध्यान दिया, इसलिए वहां रोजगार की दिक्कतें नहीं।
मैंने उनके बयान की पड़ताल की तो लगा कि चीन हमारे युवा बेरोजगारों के लिए कितनी बड़ी समस्या बन गया है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव की रिपोर्ट में बताया गया कि 2024 की पहली छह माही में भारत ने चीन को 8.5 अरब डॉलर का निर्यात किया जबकि 50.4 अरब डॉलर का आयात किया। इसके चलते भारत को 41.9 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ।
चीन के साथ व्यापार में असंतुलन सिर्फ आर्थिक मुद्दा नहीं रह गया है बल्कि यह देश की सुरक्षा और भावी पीढ़ी की समृद्धि के लिए भी गंभीर खतरा बन गया।
बड़े पैमाने पर हो रहे आयात से भारतीय MSME (मीडियम एंड स्माल स्केल इंडस्ट्रीज ) को भारी नुकसान पहुंच रहा है। सस्ते चीनी उत्पादों से प्रतिस्पर्धा के चलते उनका न सिर्फ लाभ कम हो रहा है बल्कि उनका अस्तित्व भी खतरे में नजर आ रहा है। इससे नौकरियां खत्म हो रही हैं और देश का आर्थिक विकास भी अवरूद्ध हो रहा है।
यहां हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन हमारा दुश्मन पड़ोसी है। अब भी जब तब वह हमें आंखें दिखाता रहता है। उस पर इतनी निर्भरता, कभी हमें भारी परेशानी में भी डाल सकती है।
पिछले 11 साल से नरेन्द्र मोदी सत्ता में हैं लेकिन व्यापार असंतुलन में कोई कमी नहीं आई। ऐसा नहीं है कि मोदी ने कुछ किया नहीं है, उन्होंने 2016 से 500 आयटम पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी लेकिन इसके बावजूद चीनी उत्पादों पर निर्भरता कम नहीं हुई है। क्योंकि देश में एक मजबूत इम्पोर्ट लाॅबी तैयार हो गई है जो सस्ते चीनी सामानों पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाने का विरोध करती है, क्योंकि उनका मुनाफा कम हो जाता है।
उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि देश में उत्पादन बढ़े और हमारे युवा लोगों को रोजगार मिलें।
हकीकत यह है कि भारत दुनिया की पांचवीं आर्थिक महाशक्ति होने के जुमलों और नारों के बीच चीन की गुंजलक में फंस गया है।
हम अपना घर जलाकर चीन के घर रोशन कर रहे हैं। वहां MSME फलफूल रहे हैं, करोड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है और हमारे पूत बिना काम के कुंवारे डोल रहे हैं।
वास्तविकता यही है, भक्तजनों अब आप को जितनी गालियां बकनी हो आप बक सकते हैं,
स्वागत है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)
( पुणे के पुराने हिन्दी दैनिक ‘आज का आनन्द ‘ के संपादक श्याम अग्रवाल के काॅलम -‘हमें कुछ कहना है’ के कुछ अंश इस पोस्ट में लिए गए हैं- साभार )।