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गुलाम नबी आजाद

-द ओपिनियन डेस्क-

भारत जोड़ो यात्रा की तैयारी कर रही कांग्रेस को एक और झटका लगा है। उसके वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने पार्टी के साथ अपना करीब पांच दशक का रिश्ता तोड़ दिया है। आजाद ने अपने इस्तीफे के साथ पांच पृष्ठ का एक पत्र भी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखा है। आजाद ने भारतीय राजनीति और संसद में एक उम्दा पारी खेली है और अपने लिए एक मुकाम भी बनाया है। मीडिया में छनछनकर आ रही खबरों के अनुसार आजाद ने अपने इस्तीफे में कई सवाल उठाए हैं और कई बातें कही बताते हैं।

राहुल गांधी को लेकर टिप्पणी

उनमें सबसे अहम सवाल राहुल गांधी को लेकर टिप्पणी है। उन्होंने राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाया और कहा कि उनके आने के साथ ही पार्टी में सलाह मशविरा की चल आ रही परंपरा ही समाप्त हो गई। आजाद के आरोपों की सच्चाई तो खुद आजाद और कांग्रेस का आला नेतृत्व ही जानता है लेकिन जब किसी शीर्ष नेता पर बार-बार उसकी नेतृत्व क्षमता को लेकर सवाल उठाए जाते हैं तो वह चिंतनीय बात है। पार्टी देश जोड़ने का अभियान शुरू कर रही है और खुद उसके अपने हिस्से टूटकर अलग हो रहे हैं। पार्टी के उदयपुर में आयोजित चिंतन शिविर के बाद हालात में सुधार कहां नजर आ रहा है। पहले कपिल सिब्बल ने अलग राह पकड़ी अब आजाद अलग हो गए हैं। इस बीच कुलदीप बिश्नोई  ने भाजपा की राह पकड़ ली। दो दिन पहले पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयबीर शेरगिल अलग हो गए। पंजाब में सुनील जाखड साथ छोड गए। ऐसे मे एकएक कर लोग छोडकर जाते हैं तो सवाल उठने स्वाभाविक हैं; इसलिए जरूरी है कि कांग्रेस भारत जोडो जैसी यात्रा पार्टी के भीतर भी शुरू करे पार्टी जोडो यात्रा ताकि उसका अनुभवी या नया पार्टी को छोडने की बात नहीं सोचे।

कांग्रेस अपनी अनुभवी व युवा संपदा को अपने से दूर जाने से रोके

कांग्रेस जैसी अनुभव सिद्ध पार्टी के कमजोर देश का लोकतंत्र भी कमजोर होता है। इसलिए आजाद के जाने के अवसर को पार्टी को अपने भीतर जाने के अवसर के रूप में लेना चाहिए। आजाद के सामने सक्रिय राजनीति में रहने के बहुत अवसर हैं। जैसे कि खबरे आ रही हैं आजाद जम्मू कश्मीर लौटना चाहते हैं और अपनी पार्टी बनाना चाहते हैं। यदि वे ऐसा करते हैं तो भी अपने दीर्घकालीन अनुभव से देश सेवा का नया अध्याय लिख सकते हैं। कश्मीर में भी निकट भविष्य में चुनाव होने हैं। आजाद वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया को शुरू कराने में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि वह यह भूमिका कांग्रेस के मंच से भी निभा सकते हैं लेकिन उसमें बाधा कहां थी यह वही जानें। कुछ बात तो रही होगी कि तभी उन्होंने कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति के प्रमुख का पद ठुकरा दिया। इसलिए जरूरत इस बात की है कि कांग्रेस अपनी अनुभवी व युवा संपदा को अपने से दूर जाने से रोके।

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