
-द ओपीनियन डेस्क-
नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का कार्यक्रम तय हो गया है। पार्टी ने इसकी घोषणा कर दी है।
चुनाव के लिए 22 सितंबर को अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। 24 सितंबर से 30 सितंबर तक इसके लिए नामांकन दाखिल किया जा सकेगा और मतदान की नौबत आई तो 19 अक्टूबर को नतीजे घोषित कर दिए जाएंगे। यानी कि पार्टी को 19 अक्तूबर को नया अध्यक्ष मिल जाएगा। लेकिन जिस तरह पार्टी के भीतर राहुल गांधी के पक्ष में सुर मुखर हो रहे हैं, उससे लगता है कि अंततः राहुल को कमान सौंप दी जाएगी। राहुल के मन में क्या है, उनके बार-बार के ना की वजह क्या है, यह तो वही बेहतर जानते हैं, लेकिन पार्टी का एक वर्ग उनके नाम पर ही जोर दे रहा है। हालांकि उनके नेतृत्व को लेकर पार्टी के भीतर सवाल उठते रहे हैं। नवीनतम घटना गुलात नबी आजाद के इस्तीफे की है। उन्होंने अपने इस्तीफे में जो सवाल उठाए हैं, उनमें पार्टी के नेतृत्व का मसला भी है। राहुल की नेतृत्व क्षमता पर उठा सवाल भी है। राहुल के अध्यक्ष पद संभालने के सबसे मुखर पक्षधर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं। वे बार-बार यह कहते रहे हैं कि राहुल गांधी को अध्यक्ष पद संभालना चाहिए। हालांकि खुद गहलोत का नाम भी अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में रहा है लेकिन गहलोत खुद ही इससे इनकार करते रहे हैं। गहलोत के अलावा सलमान खुर्शीद, मल्लिकार्जुन खडगे व अन्य कई नेता राहुल के नाम की हिमायत कर चुके हैं।
राहुल यदि पद स्वीकार नहीं करते हैं तो फिर कौन?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार कांग्रेस में दुविधा यह है कि राहुल यदि पद स्वीकार नहीं करते हैं तो फिर कौन? क्या सोनिया गांधी फिर स्थायी अध्यक्ष का दायित्व संभालेंगी, क्या प्रियंका गांधी को कमान सौंपी जाएगी? कांग्रेस के पास आज भी वरिष्ठ व अनुभवी नेताओं की कमी नहीं है, लेकिन विडम्बना यह है कि अखिल भारतीय पहचान वाले जननेताओं की कमी होती जा रही है। अशोक गहलोत व भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए जननेता की छवि बनाई है लेकिन क्या गांधी परिवार उनको कमान सौंपेगा या वे कमान संभालने के लिए राजी हो जाएंगे। गहलोत

व बघेल के अलावा जिन लोगों के नाम सामने आ रहे हैं, उनमें मल्लिकार्जुन खडगे, मुकुल वासनिक, कुमारी शैलजा या किसी अन्य नेता को सौंपी जाती है तो भी उसके लिए गांधी परिवार की छाया से बाहर निकलकर पार्टी को नई दिशा देना आसान नहीं होगा।
पार्टी में कई खेमे गांधी परिवार की वजह से एकजुट
यदि कोई गैर गांधी व्यक्ति पार्टी की बागडोर संभालता है तो उसको कठपुतली अध्यक्ष के आरोपों से भी जूझना होगा। वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेता इस बात को लेकर भी आशंकित हैं कि अगर गांधी परिवार से अलग कोई कांग्रेस की कमान संभालता है तो पार्टी में फूट पड़ सकती है। पार्टी में कई खेमे हैं और गांधी परिवार की वजह से वे एकजुट होते रहते हैं।अब देखना यह है कि चुनाव प्रक्रिया के इस एक माह में कांग्रेस की अंदरूनी सियासत कौन सी करवट लेती है।
यह सही है कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में गांधी परिवार के वफादार को ही अध्यक्ष का तोहफा मिलना तय है क्योंकि सोनिया/राहुल की सहमति के बिना कोई बागड़ोर चला ही नहीं सकता है। जिस पार्टी में लोकतंत्र नाकाम हो, वहां ऐसा ही होता है।