
महाराष्ट्र चुनाव की हार के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी के भीतर कड़े फैसले लेने का जिक्र किया था। लग रहा था कि कांग्रेस के भीतर बड़े पैमाने पर सफाई अभियान चलेगा और दिल्ली सहित कई राज्यों में कांग्रेस का नेतृत्व बदलेगा। मगर यह बदलाव तब होगा जब राहुल गांधी फ्री होंगे और गंभीर मंथन और मंत्रणा करेंगे। कांग्रेस के स्वयंभू और नवजात राजनीतिक रणनीतिकार राहुल गांधी को ऐसे मुद्दों में उलझाते हैं जिन मुद्दों से कांग्रेस को फायदा नहीं होकर नुकसान अधिक होता है।
-देवेंद्र यादव-

यदि कांग्रेस को दिल्ली और बिहार में विधानसभा का चुनाव लड़ना है तो राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश के संभल के विवाद से ज्यादा ध्यान दिल्ली और बिहार में कांग्रेस कैसे जीते इसकी रणनीति बनाने पर अधिक देना होगा। बिहार में कांग्रेस चार दशक से भी अधिक समय से सत्ता से बाहर है। वहीं दिल्ली में भी कमोवेश ऐसा ही हाल है। दोनों ही जगह संघटनात्मक दृष्टि से कांग्रेस की हालत पतली है। जहां कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता बैठकर सारे देश पर हुकूमत चलाने की बात करते हैं, इस दिल्ली में विधानसभा के चुनाव नजदीक हैं मगर कांग्रेस के पास मजबूत और स्थाई प्रदेश अध्यक्ष नहीं है। जब दिल्ली का यह हाल है जहां हाई कमान और कांग्रेस के रणनीतिकार बैठे हो वहां कांग्रेस में अभी तक अपना स्थाई अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया हो वहां पर कैसे उम्मीद की जा सकती है कि कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर गंभीर है। जब दिल्ली में ऐसा हाल है तो फिर बिहार की स्थिति तो समझ ही सकते हैं जहां कांग्रेस लंबे समय से आरजेडी पर निर्भर है। कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार राहुल गांधी को उन मुद्दों में अधिक व्यस्त रखती है जिन मुद्दों से कांग्रेस को चुनाव में फायदा होने की जगह नुकसान अधिक होता है। महाराष्ट्र चुनाव की हार के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी के भीतर कड़े फैसले लेने का जिक्र किया था। लग रहा था कि कांग्रेस के भीतर बड़े पैमाने पर सफाई अभियान चलेगा और दिल्ली सहित कई राज्यों में कांग्रेस का नेतृत्व बदलेगा। मगर यह बदलाव तब होगा जब राहुल गांधी फ्री होंगे और गंभीर मंथन और मंत्रणा करेंगे। कांग्रेस के स्वयंभू और नवजात राजनीतिक रणनीतिकार राहुल गांधी को ऐसे मुद्दों में उलझाते हैं जिन मुद्दों से कांग्रेस को फायदा नहीं होकर नुकसान अधिक होता है।
राहुल गांधी और कांग्रेस हाई कमान को समझना होगा कि कहीं यह मुद्दे राहुल गांधी को उलझा कर रखने के लिए भाजपा के द्वारा बिछाया गया राजनीतिक जाल तो नहीं है। संभल के मुद्दे को समाजवादी पार्टी और उनके नेता अखिलेश यादव संसद से लेकर सड़क पर उठा रहे हैं। इंडिया गठबंधन के भीतर चर्चा भी अखिलेश यादव को लेकर हो रही है। ऐसे में राहुल गांधी को कांग्रेस के रणनीतिकारों को संभल भेजने की रणनीति बनानी ही नहीं चाहिए थी, क्योंकि समाजवादी पार्टी इंडिया ब्लॉक की पार्टी है। भारतीय जनता पार्टी के नेता मीडिया के सामने बतियाने और मजा लेने लगे कि इंडिया गठबंधन के घटक दल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एकजुट नहीं हैं।
यदि कांग्रेस गंभीरता से दिल्ली और बिहार में आगामी दिनों में होने वाला विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहती है तो राहुल गांधी और हाई कमान को सबसे पहले दोनों राज्यों में मजबूत नेतृत्व खड़ा करना चाहिए।
दिल्ली में महाजन, जाट और ब्राह्मण नेताओं को चुनावी रणनीति बनाने वाली टीम में शामिल करना चाहिए और बड़ी जिम्मेदारी देनी चाहिए। कांग्रेस को दिल्ली जैसे प्रदेश में दलित, पिछड़ा वर्ग और मुसलमान पर ही निर्भर नहीं होना चाहिए। हालांकि यह समुदाय कांग्रेस का पारंपरिक वोटर रहा है मगर आम आदमी पार्टी ने बड़े पैमाने पर कांग्रेस के पारंपरिक वोटो पर अपना कब्जा किया है। केजरीवाल सरकार की योजनाओं का लाभ भी इन्हीं वर्ग के लोगों को अधिक मिल रहा है।
कांग्रेस के पास मौजूदा वक्त में देने के लिए केवल वादे हैं। ऐसे में कांग्रेस को दिल्ली की सत्ता में वापसी के लिए गंभीर और मजबूत रणनीति बनाने की जरूरत है और यह तभी होगा जब राहुल गांधी को कांग्रेस के रणनीतिकार बेकार के मुद्दों में उलझा कर नहीं रखें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)