तेरा तुझ को अर्पण …

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अमर निवास पर स्थापित महाराजा गणपति।

-प्रकृति को बचाने का संदेश देते अमर निवास के महाराजा गणपति

-शैलेश पाण्डेय-

कोटा। गणेश महोत्सव भारत का एक प्रमुख उत्साह और उमंग वाला त्यौहार है। महाराष्ट्र से शुरू हुई यह परंपरा आज पूरे उत्तर भारत में जोर शोर और उत्साह से कायम है। लेकिन जिस तरह गणेशोत्सव के प्रति लोगों का उत्साह और रूझान बढ़ रहा है इसी के साथ गणेश महोत्सव के दौरान पीओपी और केमिकल के रंग वाली गणेश प्रतिमाओं की स्थापना पर्यावरण के लिए बड़े संकट के तौर पर सामने आई है। क्योंकि गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है इसलिए केमिकल के रंग और पीओपी जल और जमीन को प्रदूषित करते हैं। जब पूरा विश्व पर्यावरण को लेकर चिंतित है तब पर्यावरण के लिए सचेत लोग केमिकल की प्रतिमाओं को चुनौती मान रहे हैं।

पर्यावरण के प्रति चिंतित लोगों की ओर से जब मिट्टी की गणेश प्रतिमाओं की स्थापना का प्रचार प्रसार हो रहा है तब एक युवा आशीष शर्मा ने करीब दो दशक पूर्व प्रकृति से मेल खाती गणेश प्रतिमाओं की स्थापना कर समाज को संदेश देना शुरू किया। वह अमर निवास पर रामधाम मंदिर के पास पर्यावरण के प्रतीक महाराजा गणपति की स्थापना कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं।

आशाीष शर्मा कोटा बैराज स्थित प्रसिद्ध बोट के बालाजी मंदिर के पुजारी परिवार के सदस्य हैं। यह न केवल अपने परिवार की ईश्वर भक्ति की स्थापित परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं बल्कि समाज को स्वच्छ पर्यावरण का संदेश भी दे रहे हैं। उनके पिता हरिओम जी भी पर्यावरण को संदेश देती गणेश प्रतिमाओं की स्थापना के प्रति उनकी परंपरा में सहयोग कर रहे हैं। शुरूआत में उनके प्रयासों को लोगों से सहयोग नहीं मिला लेकिन लगन और समर्पण के उनके प्रयास रंग लाए। हालांकि आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा लेकिन अब खुद लोग सहयोग करने आते हैं।

आशीष शर्मा को इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड तथा एशिया बुक ऑफ रिकार्ड के सर्टिफिकेट भी मिल चुके हैं। जो लोग पर्यावरण के अनुकूल गणेश प्रतिमाओं की स्थापना करना चाहते हैं वे भी अब उनसे सलाह लेने आते हैं। हालांकि आशीष शर्मा खुद मानते हैं कि हर बार नई तरीके से प्रतिमा बनाना चुनौतीपूर्ण है लेकिन गणेश जी ही उन्हें आइडिया भी देते हैं। यह प्रतिमा पर निर्भर करता है कि उसमें कितना समय लगेगा। फिर भी दो से तीन माह का समय लगता है। अब क्योंकि परिवार के सभी सदस्य सहयोग करते हैं इसलिए उन्हें ज्यादा समस्या नहीं होती। फिर भी कई बार देर रात तक प्रतिमा को अंतिम रूप देने के लिए काम करना पडता है। उनका कहना था कि पहले टेंट के लिए नगर निगम सहयोग करता था लेकिन पिछले दो वर्षों से यह सहयोग बंद होने से खर्च का बोझ बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि बहुत ज्यादा पंडाल के बजाय एक मोहल्ले में एक ही गणेश प्रतिमा की स्थापना हो तो अच्छा रहेगा क्योंकि इससे समाज में सहयोग और भाई चारे की भावना भी विकसित होगी। अमर निवास के महाराजा गणपति की अवधि में प्रतिदिन आरती, पूजन और कीर्तन तथा भजन का आयोजन किया जाता है। अनंत चतुदर्शी को गणेश प्रतिमा के विसर्जन के बाद अगले दिन भंडारा आयोजित किया जाता है जिसमें भक्त लोग भाग लेते हैं।

 

 

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