nitish&kcr
नीतीश कुमार और के चंद्रशेखर राव एक मंच पर

-गजानंद शर्मा-

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 5 अगस्त से तीन दिन के दिल्ली दौरे पर हैं। उनके दौरे की शुरुआत जनतादल यूनाइटेड के मिशन 2024 के तहत हो रही है। यह मिशन क्या है-2024 में नीतीश कुमार को देश के प्रधानमंत्री पद पद आसीन करना? नहीं, मिशन है- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2024 में सत्ता से बाहर करना और इसके लिए विपक्षी दलों को एकजुट करना। राजनीतिक दृष्टि से देखें तो इस मिशन में अनुचित क्या है- हर राजनीतिक दल बडा बनने और पीएम की कुर्सी तक पहुंचने का या इसके लिए सामर्थ्यवान बनने का आकांक्षी हो सकता है। प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए जनता दल यूनाइटेड के समर्थन की जाजम अभी बहुत छोटी है।

गजानंद शर्मा

पूरे बिहार में ही नहीं आती। संभवतः उसे बडा बनाने के लिए ही नीतीश का यह दिल्ली दौरा हो रहा है। यह जाजम बडी कैसे बने तो इसका एक ही रास्ता है विपक्षी दलों की एकजुटता। विपक्षी खेमे से चाहे वह कांग्रेस का हो, तृणमूल कांग्रेस का हो, तेलंगाना राष्ट्र समिति का हो , जद यू का हो या किसी अन्य दल का एक ही सुर उठता है कि 2024 में मोदी को सत्ता से बाहर करना है लेकिन जब साथ बैठने की बात आती है तो एकता के तार छिन्न भिन्न हो जाते हैं।

राष्ट्रपति चुनाव में दिखा बिखराव

विपक्षी एकता के टूटे तार हाल में हुए राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान नजर आए थे। देश में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आसाीन व्यक्ति के खिलाफ सम्पूर्ण विपक्ष से यही स्वर उठे कि उसे सत्ता से बाहर किया जाए। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ भी ऐसे ही सुर उठे थे। और भारतीय राजनीति में एक चमत्कार भी हुआ था। कहा जाता है नदी के दो किनारे कभी नहीं मिलते–लेकिन भारतीय राजनीति ने तब राजनीति के विपरीत ध्रुवों को एक साथ एक लक्ष्य के लिए काम करते देखा गया। इसको आसान बनाया जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति के आह्वान ने। जयप्रकाश नारायण बहुत बडा पुल बने उन विपरीत ध्रुवों को जोडने में। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आज ऐसा कोई व्यक्तित्व है जो इन विपरीत ध्रुवों को जोड सके। क्या उन जैसा बडा कद, उन जैसा नैतिक बल, किसी जन आंदोलन को खडा करने और जनमानस को उससे जोडने का माद्दा समकालीन राजनेताओं में है। शायद नहीं। नीतीश जद यू के मिशन 2024- विपक्षी एकता- के साथ जब दिल्ली में होंगे तो कांग्रेस अपनी भारत जोडो अभियान की तैयारियों व रणनीति को अंतिम रूप देने में व्यस्त होगी। अध्यक्ष के चुनाव में उलझी कांग्रेस अपने खेमों को बांधे रखने में जुटी होगी। यदि इन व्यस्तताओं के बीच नीतीश एकता की जाजम को बडा कर पाते हैं तो यह उनके मिशन की सकारात्मक शुरुआत कही जाएगी। नीतीश की गत दिनों तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से मुलाकात हो चुकी है। राव ने अपने दौरे के दौरान शहीद सैनिकों के परिवारों से मिले और सहायता प्रदान की। राव इससे पहले पंजाब में किसान आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिजनों को भी सहायता प्रदान कर चुके हैं। राव का यह कदम सराहनीय ही कहा जाएगा और इस कदम को राजनीति से चश्मे देखा भी नहीं जाना चाहिए। तेलंगाना से चलकर पंजाब या बिहार पहुंचकर शहीदों के परिवारों के दर्द को बांटना राव को बडा बनाता है। लेकिन राव की यात्रा का दूसरा मकसद निश्चितरूप से विपक्ष की एकता के तारों को टटोलना भी रहा होगा। राव सपा प्रमुख अखिलेश यादव से भी मुलाकात कर चुके हैं। लेकिन क्या यह संभव है कि टीआरएस, जद यू, सपा, आप और कांग्रेस विपक्षी एकता की जाजम पर एक साथ बैठ सकते हैं? जद यू या टीआरएस या आप का कहीं सीधा राजनीतिक टकराव नहीं है, लेकिन इस सांचे में कांग्रेस कहां फिट बैठती है। क्या टीआरएस या आप से कांग्रेस अपने राजनीतिक टकराव से पीछे हटकर एकता की जाजम पर आ जाए क्या ऐसा कोई रास्ता निकल सकता है। इसलिए नीतीश कुमार विपक्ष की एकता की जाजम को कितना बडा कर पाते हैं यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन विपक्ष की एकता की इस जाजम को बडा बनाने के लिए नीतीश को उनकी पार्टी ने अधिकृत कर दिया है। जद यू की राष्टीय परिषद की बैठक के बाद पार्टी के प्रवक्ता के सी त्यागी ने प्रेस कॉन्फ्रेस में कहा कि पार्टी यह मानती है कि बिना कांग्रेस व वामदलों के भाजपा से मजबूत लडाई नहीं लडी जा सकती। इसलिए विपक्षी पार्टियों को मतभेद भूलाकार एक साथ आना ही होगा। साथ तो आना होगा पर साथ आने का रास्ता क्या होगा? क्या नीतीश अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान यह रास्ता खोज पाएंगे?

एकजुट होकर चुनाव लडेंगे तो भारी सफलता हाथ लगेगी

नीतीश ने भी बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा कि विपक्षी दल एकजुट होकर चुनाव लडेंगे तो भारी सफलता हाथ लगेगी। साफ है नीतीश का यह मिशन बडा है और अकेले दिल्ली यात्रा से यह सधने वाला भी नहीं हैै। इसलिए एकता के धागे बांधने के लिए उनको देशभर का दौरा करना पडेगा और वहां की राजनीतिक जटिलताओं से रूबरू भी होना पडेगा। पटना में जद यू की राष्टीय परिषद की बैठक से पहले यह नारे लग चुके हैं कि- आगाज हुआ है बदलाव होगा, प्रदेश में दिखा है देश में दिखेगा-बदलाव की यह पट कथा लिखने के लिए नीतीश को और बडा बनना होगा। हालांकि उनको घेरने के लिए भाजपा की ओर से पहला प्रहार हो चुका है। गत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने केरल दौरे के दौरान विकास परियोजनाओं के लोकार्पण के दौरान आरोप लगाया था कि देश में भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राजनीति में एक नया ध्रुवीकरण हुआ है। कुछ राजनीतिक समूह खुले तौर पर भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करने वालों को बचाने के लिए संगठित होने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री का तीर निशाने पर था। प्रधानमंत्री ने देश के सुदूर दक्षिणी कोने से यह राजनीतिक प्रहार किया तो उसकी प्रतिक्रिया बिहार से आई। संकेत दोनों तरफ से साफ हैं। नीतीश की राह आसान नहीं है।

आम आदमी पार्टी व तृणमूल कांग्रेस को एक मंच पर लाना अहम चुनौती

नीतीश के सामने आम आदमी पार्टी व तृणमूल कांग्रेस को एक मंच पर लाना अहम चुनौती होगी। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने इस समय अपना पूरा ध्यान हिमाचल व गुजतरात पर केंद्रित कर रखा है। गुजरात का वह नियमित दौरा कर रहे हैं। वहां वादों की झडी लगा रखी है। आदिवासी इलाकों के लिए वह खास रणनीति पर आगे बढ रहे हैं जबकि कांग्रेस वहां सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रही है। गुजरात में जीत पार्टी के लिए संजवीनी साबित हो सकती। यही हालत हिमाचल प्रदेश में है। वहां पर भी कांग्रेस सत्ता मे वापसी का स्वप्न देखरही है लेकिन आप ने वहां पर भी अपना राजनीतिक धरातल तैयार करने पर पूरा जोर लगा रखा है। कांग्रेस व आप के हितों में सीधा टकराव है। इसी प्रकार कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस के हितों में कई जगह टकराव है। केजरीवाल की नजर अब पार्टी को अखिल भारतीय स्तर पर खडी करने की है और वे वहां जा रहे हैं जहां कांग्रेस दूसरे नंबर पर है। वह क्षेत्रीय दलों के प्रभाव क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हैं।इसलिए एकता की इस जाजम पर केजरीवाल का बैठना आसान नहीं है। दिल्ली में कथित आबकारी घोटाले के सामने आने के बाद मनीष सिसोदिया से इस्तीफा मंागने वालों में कांग्रेस भी शामिल है। सुलह की राह आसान नहीं। अब देखना यह है कि विपक्षी एकता के मिशन पर निकले नीतीष कहां तक सफल हो पाते हैं।

(साभार सच बेधडक)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments