
-धीरेन्द्र राहुल-

सारे चुनाव पूर्व अनुमानों को धता बताते हुए महाराष्ट्र में महायुति की सरकार भारी बहुमत से पुन: सत्ता में लौट रही है। लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा ? यही आकर आंटी फंस गई है। क्या फिर से 2019 दौहराया जाएगा?
2019 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 105 और शिव सेना को 56 सीटें मिली थी। सहज स्वाभाविक था कि भाजपा दल के नेता देवेन्द्र फडनवीस को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था लेकिन शिव सेना के नेता उद्धव ठाकरे अड़ गए कि मुख्यमंत्री तो वे ही बनेंगे। जब भाजपा पीछे हटने को तैयार नहीं हुई तो उद्धव ठाकरे ने शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी की सरकार बना ली थी।
लेकिन उद्धव सत्ता का सुख ज्यादा दिन नहीं भोग सके। भाजपा ने शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी को ही तोड़ दिया और टूटकर साथ आए एकनाथ शिन्दे के नेतृत्व में सरकार बना लीं। अजीत पवार और देवेन्द्र फडनवीस को उपमुख्यमंत्री बना दिया गया।
अबकी बार भाजपा को 130, शिव सेना शिन्दे गुट को 54 और अजीत पवार की एनसीपी को 41 सीटें मिली हैं। एकनाथ शिन्दे की चाल ढाल से लग रहा है कि वे मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा छोड़ने को राजी नहीं है। साफ संदेश है कि भले ही बीजेपी के विधायकों से मेरी संख्या आधी से भी कम है लेकिन चुनाव तो मेरे ही नेतृत्व में लड़ा गया है, इसलिए सिर पर ताज भी मेरे ही धरा जाना चाहिए।
लेकिन यहां महत्वपूर्ण फैक्टर यह है कि बीजेपी 2019 की तरह इस बार मजबूर नहीं है कि वह किसी की ब्लैकमेलिंग के आगे समर्पण करे।
महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं, स्पष्ट बहुमत के लिए 145 सीटें चाहिए। भाजपा को इस बार सीटें मिली हैं – 130 यानी अपनी सरकार बनाने के लिए उन्हें सिर्फ 15 विधायकों का समर्थन चाहिए। जो भाजपा अजीत पवार गुट के 40 विधायकों को साथ लेकर भी वे सरकार बना सकते हैं। उन्हें शिवसेना शिन्दे गुट के 55 विधायकों की जरूरत शायद ही पड़े। यह गणित एकनाथ शिन्दे और उनके विधायकों के सामने भी स्पष्ट है।
अब देखना यह है कि भाजपा बड़ा दिल दिखाएगी और तश्तरी में रखकर मुख्यमंत्री का ताज एकनाथ शिन्दे को सौंप देगी या देवेन्द्र फडनवीस को मुख्यमंत्री बनाएगी जो सीएम के सहज दावेदार हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)