
-धीरेन्द्र राहुल-

देश में गणेशोत्सव मनाने की शुरुआत पुणे से हुई थी। बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को संगठित करने के लिए गणेशोत्सव का श्रीगणेश किया था।
काॅन्फेडेरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स की रिपोर्ट के अनुसार इस साल पुणे में गणेशोत्सव के दौरान एक लाख करोड़ का कारोबार होने की संभावना है। जिसमें गणेश मूर्तियों का कारोबार ही 500 करोड़ के आसपास है। गणेशोत्सव में भाग लेने के लिए देश विदेश के लोग पुणे आए हैं। इसमें पुणेकर के साथ विदेशी पर्यटक भी शामिल हैं।
लेकिन यह पोस्ट मैंने पर्यावरण के दृष्टिकोण से लिखी है। जिससे हम कोटावासी बहुत कुछ सीख सकते हैं। हर साल पीओपी की हजारों मूर्तियां चम्बल नदी में विसर्जित की जाती हैं। हमारे मित्र डॉक्टर सुधीर गुप्ता हर साल मिट्टी की मूर्तियां बनाने के लिए प्रेरित करते हैं ताकि वे गलकर जल में समा जाए और चम्बल नदी व किशोर सागर तालाब प्रदूषित होने से बच जाए। लेकिन उनके प्रयासों को आंशिक सफलता ही मिल पाती है।
पुणे महानगर पालिका ने इस साल गणपति के लिए 15 विघटन केन्द्र (कृत्रिम तालाब ) बनाए हैं। इसके अलावा स्थानीय समितियों ने भी ऐसे विघटन केन्द्र बनाए हैं। जिसमें अमोनियम बाइकार्बोरेट के माध्यम से मूर्तियों का विघटन किया जा रहा है। यह बात हम पुणेकरों से सीख सकते हैं। वैसे भी गणेशोत्सव मनाना हमने पुणेकरों से ही सीखा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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